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स्नातकोत्तर चिकित्सा दाखिला: शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में सेवारत कर्मियों का 20 प्रतिशत कोटा रखा बरकरार

महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) ने राज्य में स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों (Postgraduate Medical Courses) में दाखिले के लिए सेवारत अधिकारियों के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया था. इसके विरोध में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस फैसले को बरकरार रखा है.

उच्चतम न्यायालय
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Published : Oct 20, 2022, 4:52 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने राज्य में स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों (Postgraduate Medical Courses) में दाखिले के वास्ते सेवारत अधिकारियों के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के फैसले को गुरूवार को बरकरार रखा. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की इस दलील को स्वीकार करना कठिन है कि बीच में ही नियमों में बदलाव के कारण सरकार का प्रस्ताव चालू शैक्षणिक वर्ष में लागू नहीं होना चाहिए.

पीठ ने कहा कि 'हमारा मानना है कि बंबई उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है.' शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दूसरे दौर के बाद नहीं भरी जाने वाली कोई भी स्नातकोत्तर मेडिकल सीट सामान्य श्रेणी में जाएगी. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने दलील दी कि सेवारत अभ्यर्थियों के लिए आरक्षण को बीच में पेश किया गया था, जो शीर्ष अदालत के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें कहा गया था कि दाखिला प्रक्रिया शुरु होने के बाद उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा कि सेवारत अधिकारियों के लिए राज्य सरकार का 20 प्रतिशत कोटा प्रदान करने का निर्णय मेधावी अभ्यर्थियों के लिए ठीक नहीं था. ग्रोवर ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई आंकड़ा एकत्र नहीं किया है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि स्नातकोत्तर (पीजी) के लिए 1,416 सीटों में से 286 सीट सेवा के दौरान (इन-सर्विस) कोटा के लिए उपलब्ध थीं, लेकिन केवल 69 अभ्यर्थी नीट पीजी के लिए उपस्थित हुए.

महाराष्ट्र की ओर से पेश अधिवक्ता सिद्धार्थ अभय धर्माधिकारी ने इस तर्क का खंडन करते हुए कहा कि दाखिले के बीच में नियमों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. धर्माधिकारी ने कहा कि संविधान पीठ के फैसले के बाद सेवारत उम्मीदवारों के लिए आरक्षण बहाल कर दिया गया है. उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ कुछ अभ्यर्थियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया गया था.

पढ़ें: अमेजन की फ्यूचर कूपन के साथ डील रद्द करने के खिलाफ याचिका पर 10 जनवरी को होगी सुनवाई

महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव में कहा गया था कि 'शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से राज्य के शासकीय एवं नगरीय चिकित्सा महाविद्यालयों में स्नातकोत्तर चिकित्सा एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में दाखिले के वास्ते सेवारत अभ्यर्थियों के लिए 20 प्रतिशत सीट आरक्षित करने को सरकार की मंजूरी प्रदान दी जा रही है.'

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने राज्य में स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों (Postgraduate Medical Courses) में दाखिले के वास्ते सेवारत अधिकारियों के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के फैसले को गुरूवार को बरकरार रखा. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की इस दलील को स्वीकार करना कठिन है कि बीच में ही नियमों में बदलाव के कारण सरकार का प्रस्ताव चालू शैक्षणिक वर्ष में लागू नहीं होना चाहिए.

पीठ ने कहा कि 'हमारा मानना है कि बंबई उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है.' शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दूसरे दौर के बाद नहीं भरी जाने वाली कोई भी स्नातकोत्तर मेडिकल सीट सामान्य श्रेणी में जाएगी. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने दलील दी कि सेवारत अभ्यर्थियों के लिए आरक्षण को बीच में पेश किया गया था, जो शीर्ष अदालत के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें कहा गया था कि दाखिला प्रक्रिया शुरु होने के बाद उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा कि सेवारत अधिकारियों के लिए राज्य सरकार का 20 प्रतिशत कोटा प्रदान करने का निर्णय मेधावी अभ्यर्थियों के लिए ठीक नहीं था. ग्रोवर ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने 20 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई आंकड़ा एकत्र नहीं किया है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि स्नातकोत्तर (पीजी) के लिए 1,416 सीटों में से 286 सीट सेवा के दौरान (इन-सर्विस) कोटा के लिए उपलब्ध थीं, लेकिन केवल 69 अभ्यर्थी नीट पीजी के लिए उपस्थित हुए.

महाराष्ट्र की ओर से पेश अधिवक्ता सिद्धार्थ अभय धर्माधिकारी ने इस तर्क का खंडन करते हुए कहा कि दाखिले के बीच में नियमों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. धर्माधिकारी ने कहा कि संविधान पीठ के फैसले के बाद सेवारत उम्मीदवारों के लिए आरक्षण बहाल कर दिया गया है. उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ कुछ अभ्यर्थियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया गया था.

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महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव में कहा गया था कि 'शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से राज्य के शासकीय एवं नगरीय चिकित्सा महाविद्यालयों में स्नातकोत्तर चिकित्सा एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में दाखिले के वास्ते सेवारत अभ्यर्थियों के लिए 20 प्रतिशत सीट आरक्षित करने को सरकार की मंजूरी प्रदान दी जा रही है.'

(पीटीआई-भाषा)

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