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जीएन साईबाबा की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के 14 अक्टूबर के आदेश को निलंबित कर दिया, जिसने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को आरोप मुक्त कर दिया था.

Supreme Court suspends the October 14 order of the Nagpur bench of Bombay High Court which discharged former Delhi University professor GN Saibaba
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के आदेश को निलंबित किया, डीयू पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा मामला
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Published : Oct 15, 2022, 12:44 PM IST

Updated : Oct 15, 2022, 1:57 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक विशेष सुनवाई में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के 14 अक्टूबर के आदेश को निलंबित कर दिया, जिसने कथित माओवादी लिंक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 8 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.

उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को निलंबित कर दिया जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को माओवादी संबंधों के आरोप से बरी कर दिया गया था. अदालत ने साईंबाबा को घर में नजरबंद रखने की मांग को भी ठुकरा दिया है. अदालत ने कहा,'आरोपी को पहले ही एक बहुत ही गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया जा चुका है.'

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने कल बंबई उच्च न्यायालय द्वारा कल बरी किए जाने के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए आज शनिवार को विशेष सुनवाई की. अदालत ने आज लगभग 3 घंटे तक मामले की सुनवाई की और पाया कि अपराध बहुत गंभीर हैं और समाज और देश के खिलाफ हैं.

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आज अदालत में कहा कि जीएन साईबाबा को यूएपीए के तहत दोषी ठहराया गया है, उन्होंने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन में हथियारों को प्रोत्साहित किया, नक्सली नेताओं के साथ बैठकें कीं और बरी करने से पहले उच्च न्यायालय द्वारा किसी भी तथ्य पर विचार नहीं किया गया.

वहीं, साईंबाबा की ओर से पेश हुए अधिवक्ता आर बसंत ने तर्क दिया, 'उन्होंने सम्मानजनक जीवन व्यतीत किया. साईंबाबा 90फीसदी तक विकलांग हैं और उन्हें शौचालय जाने के लिए लोगों की आवश्यकता पड़ती है. उन्हें कई बीमारियां हैं जो न्यायिक रूप से स्वीकार्य हैं. वे अपनी व्हील चेयर तक ही सीमित हैं और उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है.

उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि आदेश को निलंबित न करें और यदि उन्हें गिरफ्तार किया जाना है तो उनकी चिकित्सा स्थिति को देखते हुए उन्हें नजरबंद किया जाए. अदालत ने हालांकि उन अपराधों की गंभीरता को देखते हुए प्रार्थना स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिनके तहत उन पर आरोप लगाया गया है. न्यायाधीश एमआर शाह ने कहा कि जमानत याचिका अभी भी उनके द्वारा दायर की जा सकती है, जिस पर अदालत विचार करेगी. मामले की सुनवाई अब 8 दिसंबर को होगी.

बता दें, कि बंबई हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को माओवादियों से संबंध रखने के आरोप से बरी कर दिया था. कोर्ट ने उनकी रिहाई के आदेश दे दिए थे. पीठ ने आदेश दिया था कि यदि याचिकाकर्ता किसी अन्य मामले में आरोपी नहीं हैं तो उन्हें जेल से तत्काल रिहा किया जाए.

बंबई उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रोहित देव और न्यायमूर्ति अनिल पानसरे की खंडपीठ ने साईबाबा को दोषी करार देने और आजीवन कारावास की सजा सुनाने के निचली अदालत के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका स्वीकार कर ली थी. साईबाबा शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर की मदद लेते हैं. उन्हें नागपुर केंद्रीय कारागार में रखा गया है.

ये भी पढ़ें- माओवादियों से संबंध मामले में अदालत ने डीयू के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा को बरी किया

पीठ ने मामले के पांच अन्य दोषियों की याचिका भी स्वीकार कर ली थी और उन्हें बरी कर दिया था. इनमें से एक याचिकाकर्ता की मामले में सुनवाई लंबित होने के दौरान मौत हो चुकी है. महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने मार्च 2017 में साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित अन्य को माओवादियों से कथित संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने का दोषी ठहराया था. अदालत ने साईबाबा और अन्य को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी करार दिया था.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक विशेष सुनवाई में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के 14 अक्टूबर के आदेश को निलंबित कर दिया, जिसने कथित माओवादी लिंक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 8 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.

उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को निलंबित कर दिया जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और पांच अन्य को माओवादी संबंधों के आरोप से बरी कर दिया गया था. अदालत ने साईंबाबा को घर में नजरबंद रखने की मांग को भी ठुकरा दिया है. अदालत ने कहा,'आरोपी को पहले ही एक बहुत ही गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया जा चुका है.'

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने कल बंबई उच्च न्यायालय द्वारा कल बरी किए जाने के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए आज शनिवार को विशेष सुनवाई की. अदालत ने आज लगभग 3 घंटे तक मामले की सुनवाई की और पाया कि अपराध बहुत गंभीर हैं और समाज और देश के खिलाफ हैं.

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आज अदालत में कहा कि जीएन साईबाबा को यूएपीए के तहत दोषी ठहराया गया है, उन्होंने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन में हथियारों को प्रोत्साहित किया, नक्सली नेताओं के साथ बैठकें कीं और बरी करने से पहले उच्च न्यायालय द्वारा किसी भी तथ्य पर विचार नहीं किया गया.

वहीं, साईंबाबा की ओर से पेश हुए अधिवक्ता आर बसंत ने तर्क दिया, 'उन्होंने सम्मानजनक जीवन व्यतीत किया. साईंबाबा 90फीसदी तक विकलांग हैं और उन्हें शौचालय जाने के लिए लोगों की आवश्यकता पड़ती है. उन्हें कई बीमारियां हैं जो न्यायिक रूप से स्वीकार्य हैं. वे अपनी व्हील चेयर तक ही सीमित हैं और उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है.

उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि आदेश को निलंबित न करें और यदि उन्हें गिरफ्तार किया जाना है तो उनकी चिकित्सा स्थिति को देखते हुए उन्हें नजरबंद किया जाए. अदालत ने हालांकि उन अपराधों की गंभीरता को देखते हुए प्रार्थना स्वीकार करने से इनकार कर दिया जिनके तहत उन पर आरोप लगाया गया है. न्यायाधीश एमआर शाह ने कहा कि जमानत याचिका अभी भी उनके द्वारा दायर की जा सकती है, जिस पर अदालत विचार करेगी. मामले की सुनवाई अब 8 दिसंबर को होगी.

बता दें, कि बंबई हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को माओवादियों से संबंध रखने के आरोप से बरी कर दिया था. कोर्ट ने उनकी रिहाई के आदेश दे दिए थे. पीठ ने आदेश दिया था कि यदि याचिकाकर्ता किसी अन्य मामले में आरोपी नहीं हैं तो उन्हें जेल से तत्काल रिहा किया जाए.

बंबई उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रोहित देव और न्यायमूर्ति अनिल पानसरे की खंडपीठ ने साईबाबा को दोषी करार देने और आजीवन कारावास की सजा सुनाने के निचली अदालत के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका स्वीकार कर ली थी. साईबाबा शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर की मदद लेते हैं. उन्हें नागपुर केंद्रीय कारागार में रखा गया है.

ये भी पढ़ें- माओवादियों से संबंध मामले में अदालत ने डीयू के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा को बरी किया

पीठ ने मामले के पांच अन्य दोषियों की याचिका भी स्वीकार कर ली थी और उन्हें बरी कर दिया था. इनमें से एक याचिकाकर्ता की मामले में सुनवाई लंबित होने के दौरान मौत हो चुकी है. महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने मार्च 2017 में साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक छात्र सहित अन्य को माओवादियों से कथित संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने का दोषी ठहराया था. अदालत ने साईबाबा और अन्य को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी करार दिया था.

Last Updated : Oct 15, 2022, 1:57 PM IST
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