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हम कानून के शासन का पालन कर रहे लोकतांत्रिक देश में हैं : सुप्रीम कोर्ट

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि सरकार के पास अधिकरण में रिक्त पदों को भरने के लिए चयन समिति की अनुशंसा को स्वीकार न करने की शक्ति है. इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए न्यायालय ने कहा, 'हम एक लोकतांत्रिक देश में कानून के शासन का पालन कर रहे हैं.'

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Published : Sep 16, 2021, 8:27 PM IST

सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली: ट्रिब्यूनल के पदों पर नियुक्ति मामले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र की मोदी सरकार को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो हफ्ते में सभी नियुक्तियों से संबंधित जानकारी देने को कहा है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के खिलाफ अवमानना केस चलाने की भी चेतावनी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार (Modi Government) से सवाल पूछा कि जब कमेटी ने उम्मीदवारों के नामों को सुझाए हैं, तब अभी तक इन पदों पर नियुक्ति क्यों नहीं की गई है.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि सरकार के पास अधिकरण में रिक्त पदों को भरने के लिए चयन समिति की अनुशंसा को स्वीकार न करने की शक्ति है. इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए न्यायालय ने कहा, 'हम एक लोकतांत्रिक देश में कानून के शासन का पालन कर रहे हैं.' चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने कहा, 'हम संविधान के तहत काम कर रहे हैं. आप ऐसा नहीं कह सकते.' खंडपीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा कुछ न्यायाधिकरणों में की गई नियुक्तियां उपयुक्त उम्मीदवारों की अनुशंसित सूची से 'पसंदीदा लोगों के चयन' का संकेत देती हैं. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी पीठ के सदस्य हैं.

ये भी पढ़ें: केंद्र दो सप्ताह में देशभर के ट्रिब्युनल में नियुक्ति करे : सुप्रीम कोर्ट

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने कोविड-19 के दौरान नामों का चयन करने के लिए व्यापक प्रक्रिया का पालन किया और सभी प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं. न्यायमूर्ति रमण ने रोष व्यक्त करते हुए कहा, 'हमने देशभर की यात्रा की, इसमें बहुत समय दिया. कोविड-19 के दौरान आपकी सरकार ने हमसे जल्द से जल्द साक्षात्कार लेने का अनुरोध किया. हमने समय व्यर्थ नहीं किया.'

पीठ ने कहा, 'यदि सरकार को ही अंतिम फैसला करना है, तो प्रक्रिया की शुचिता क्या है ? चयन समिति नामों को चुनने की लिए एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करती है. 'विभिन्न प्रमुख न्यायाधिकरणों और अपीली न्यायाधिकरणों में लगभग 250 पद रिक्त हैं. वेणुगोपाल ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम की धारा 3 (7) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि तलाश-सह-चयन समिति अध्यक्ष या सदस्य, जैसा भी मामला हो, पर नियुक्ति के लिए दो नामों की सिफारिश करेगी और केंद्र सरकार अधिमानतः ऐसी सिफारिश की तारीख से तीन महीने के भीतर इस पर निर्णय लेगा.

उन्होंने कहा कि प्रावधान के तीन भाग हैं - यह दो नामों की एक समिति के लिए प्रदान करता है, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया है, फिर यह कहता है कि सरकार ‘तीन महीने के भीतर’ सिफारिशों पर फैसला करेगी, जिसे रद्द कर दिया गया है; लेकिन यह कि केंद्र सरकार समिति द्वारा की गई सिफारिश पर निर्णय लेगी, उसे रद्द नहीं किया गया है. उनकी दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए, न्यायमूर्ति नागेश्वर राव ने कहा, 'एक पद के लिए, दो नाम नहीं हो सकते हैं, लेकिन केवल एक नाम की सिफारिश की जानी चाहिए और ‘अधिमानतः तीन सप्ताह के भीतर’ को भी हटा दिया गया है.

उन्होंने कहा, 'आपको तीन महीने के भीतर नियुक्ति करनी होगी. लेकिन चयन किए जाने और सिफारिशें किए जाने के बाद भी, आप उन्हें नियुक्त नहीं करते हैं, और प्रतीक्षा सूची से लोगों को चुनते हैं. वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार के पास सिफारिशों को स्वीकार नहीं करने की शक्ति है और इस बारे में उच्च न्यायालयों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संबंध में कॉलेजियम प्रणाली का हवाला दिया.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: ट्रिब्यूनल के पदों पर नियुक्ति मामले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र की मोदी सरकार को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने केंद्र सरकार को दो हफ्ते में सभी नियुक्तियों से संबंधित जानकारी देने को कहा है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के खिलाफ अवमानना केस चलाने की भी चेतावनी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार (Modi Government) से सवाल पूछा कि जब कमेटी ने उम्मीदवारों के नामों को सुझाए हैं, तब अभी तक इन पदों पर नियुक्ति क्यों नहीं की गई है.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि सरकार के पास अधिकरण में रिक्त पदों को भरने के लिए चयन समिति की अनुशंसा को स्वीकार न करने की शक्ति है. इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए न्यायालय ने कहा, 'हम एक लोकतांत्रिक देश में कानून के शासन का पालन कर रहे हैं.' चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने कहा, 'हम संविधान के तहत काम कर रहे हैं. आप ऐसा नहीं कह सकते.' खंडपीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा कुछ न्यायाधिकरणों में की गई नियुक्तियां उपयुक्त उम्मीदवारों की अनुशंसित सूची से 'पसंदीदा लोगों के चयन' का संकेत देती हैं. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी पीठ के सदस्य हैं.

ये भी पढ़ें: केंद्र दो सप्ताह में देशभर के ट्रिब्युनल में नियुक्ति करे : सुप्रीम कोर्ट

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने कोविड-19 के दौरान नामों का चयन करने के लिए व्यापक प्रक्रिया का पालन किया और सभी प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं. न्यायमूर्ति रमण ने रोष व्यक्त करते हुए कहा, 'हमने देशभर की यात्रा की, इसमें बहुत समय दिया. कोविड-19 के दौरान आपकी सरकार ने हमसे जल्द से जल्द साक्षात्कार लेने का अनुरोध किया. हमने समय व्यर्थ नहीं किया.'

पीठ ने कहा, 'यदि सरकार को ही अंतिम फैसला करना है, तो प्रक्रिया की शुचिता क्या है ? चयन समिति नामों को चुनने की लिए एक विस्तृत प्रक्रिया का पालन करती है. 'विभिन्न प्रमुख न्यायाधिकरणों और अपीली न्यायाधिकरणों में लगभग 250 पद रिक्त हैं. वेणुगोपाल ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम की धारा 3 (7) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि तलाश-सह-चयन समिति अध्यक्ष या सदस्य, जैसा भी मामला हो, पर नियुक्ति के लिए दो नामों की सिफारिश करेगी और केंद्र सरकार अधिमानतः ऐसी सिफारिश की तारीख से तीन महीने के भीतर इस पर निर्णय लेगा.

उन्होंने कहा कि प्रावधान के तीन भाग हैं - यह दो नामों की एक समिति के लिए प्रदान करता है, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया है, फिर यह कहता है कि सरकार ‘तीन महीने के भीतर’ सिफारिशों पर फैसला करेगी, जिसे रद्द कर दिया गया है; लेकिन यह कि केंद्र सरकार समिति द्वारा की गई सिफारिश पर निर्णय लेगी, उसे रद्द नहीं किया गया है. उनकी दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए, न्यायमूर्ति नागेश्वर राव ने कहा, 'एक पद के लिए, दो नाम नहीं हो सकते हैं, लेकिन केवल एक नाम की सिफारिश की जानी चाहिए और ‘अधिमानतः तीन सप्ताह के भीतर’ को भी हटा दिया गया है.

उन्होंने कहा, 'आपको तीन महीने के भीतर नियुक्ति करनी होगी. लेकिन चयन किए जाने और सिफारिशें किए जाने के बाद भी, आप उन्हें नियुक्त नहीं करते हैं, और प्रतीक्षा सूची से लोगों को चुनते हैं. वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार के पास सिफारिशों को स्वीकार नहीं करने की शक्ति है और इस बारे में उच्च न्यायालयों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के संबंध में कॉलेजियम प्रणाली का हवाला दिया.

(पीटीआई-भाषा)

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