नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एक 'आश्रम' में रह रहीं महिलाओं के अधिकारों और कल्याण की रक्षा के लिए एक समिति गठित करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में दखल देने से सोमवार को इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों से कहा, 'यह मामला उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है. आप वहां दलील दीजिए. हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे.'
इस 'आश्रम' की स्थापना स्वयंभू आध्यात्मिक गुरु वीरेंद्र देव दीक्षित ने की है. उच्च न्यायालय ने 26 अप्रैल को दिए अपने आदेश में एक समिति गठित की थी और कहा था कि उत्तर-पश्चिम दिल्ली के प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश या उनकी ओर से नामित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/अतिरिक्त जिला न्यायाधीश समिति के अध्यक्ष होंगे. उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस समिति के कामकाज की निगरानी सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी किरण बेदी करेंगी. उसने यहां रोहिणी में 'आध्यात्मिक विश्व विद्यालय' की गतिविधियों से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था.
यह भी पढ़ें-आजम खान के बेटे के फर्जी जन्म प्रमाण पत्र का मामला: उच्चतम न्यायालय ने खारिज की याचिका
अदालत ने कहा था कि संस्था अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक प्रथाओं को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र होगी, और समिति यह सुनिश्चित करेगी कि किसी महिला या आश्रम में बच्चे, यदि कोई हों तो, उनके साथ ऐसा व्यवहार न किया जाए जो उनके मौलिक या कानूनी अधिकारों का उल्लंघन हो. दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था, 'साथ ही, हम यह स्पष्ट करते हैं कि संस्था अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक प्रथाओं को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र होगी, बशर्ते उनमें से कोई भी वहां रहने वालों या किसी अन्य व्यक्ति के मौलिक और अन्य अधिकारों का उल्लंघन न करे.' अदालत ने पहले आश्रम के प्रबंधन पर हैरानी व्यक्त की थी, आश्रम में कई महिलाओं के 'पशु जैसी स्थिति' में रहने के बारे में बताया गया था.