नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने अनुचित अभियोजन के शिकार लोगों को मुआवजे के लिए दिशानिर्देश तैयार करने और आपराधिक मामलों में झूठी शिकायत करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने का सरकार को निर्देश देने संबंधी दो याचिकाओं की सुनवाई से बृहस्पतिवार के इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित (Justice UU Lalit) और न्यायमूर्ति एसआर भट (Justice SR Bhat) की पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून बनाये जाने की जरूरत होगी और इससे तमाम जटिलताएं पैदा होंगी.
इस मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने दलील दी कि दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के मामले में सुरक्षा के कोई उपाय उपलब्ध नहीं हैं. शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और भाजपा नेता कपिल मिश्रा की ओर से दायर याचिकाओं में से एक पर 23 मार्च, 2021 को केवल केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोगों को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया था.
उपाध्याय ने सरकारी तंत्र द्वारा 'अनुचित अभियोजन' के शिकार लोगों को मुआवजा दिलाने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने और उस पर अमल को लेकर केंद्र सरकार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी करने की मांग की थी. मिश्रा ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के जरिये दायर एक अन्य याचिका में आपराधिक मामलों में फर्जी शिकायत दर्ज कराने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने और ऐसे फर्जी मामलों के शिकार लोगों को मुआवजे के लिए केंद्र को दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया था.
शीर्ष अदालत में ये याचिकाएं उस मामले के परिप्रेक्ष्य में दायर की गयी थीं, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में बलात्कार के अपराध में 20 साल की जेल काट चुके व्यक्ति को निर्दोष साबित किया था और कहा था कि संबंधित प्राथमिकी का मुख्य मकसद भूमि-विवाद था.
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