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मोदी सरकार को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नोटबंदी की प्रक्रिया में त्रुटि नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार के 2016 के 1,000 और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को सही ठहराया. न्यायमूर्ति एस.ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी.वी. नागरत्ना शामिल थे. जस्टिस नागरत्ना ने अपना फैसला अलग से सुनाया. बहुमत का फैसला सुनाते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया को सिर्फ इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि प्रस्ताव केंद्र सरकार की ओर से आया था.

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Published : Jan 2, 2023, 9:43 AM IST

Updated : Jan 2, 2023, 3:36 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2016 में 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने संबंधी सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुनाया है. अदालत ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है. जस्टिस एस. ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया. शीर्ष अदालत का कहना है कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था. अदालत का कहना है कि इस तरह के उपाय को लाने के लिए एक उचित सांठगांठ थी, और हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित नहीं हुई थी.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सात दिसंबर को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करें. पीठ ने केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, आरबीआई के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदम्बरम तथा श्याम दीवान समेत याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनी थीं और अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

एक हजार और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को ‘गंभीर रूप से दोषपूर्ण’ बताते हुए चिदंबरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है. वर्ष 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के सर्वोच्च न्यायालय के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब ‘बीते वक्त में लौट कर’ कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है.

चिदंबरम ने दी प्रतिक्रिया - पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि फैसले का असहमति वाला हिस्सा अनियमितताओं की ओर इशारा करता है. चिदंबरम ने एक बयान में कहा, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को सही ठहराया है, हम इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं. लेकिन यह इंगित करना आवश्यक है कि बहुमत ने निर्णय के ज्ञान को बरकरार नहीं रखा है और न ही बहुमत ने निष्कर्ष निकाला कि नोटबंदी के घोषित उद्देश्य हासिल किए गए थे.

इस मामले में अहम घटनाक्रम इस प्रकार रहे:

08 नवंबर, 2016 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया और 500 रुपये और 1000 रुपये के उच्च मूल्य वाले नोटों को चलन से बाहर किए जाने की घोषणा की.

09 नवंबर, 2016 : सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई.

16 दिसंबर, 2016 : तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार के फैसले की वैधता और अन्य सवालों को विचारार्थ पांच न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ के पास भेजा.

11 अगस्त, 2017 : भारतीय रिजर्व बैंक के दस्तावेज के अनुसार नोटबंदी के दौरान 1.7 लाख करोड़ रुपये की असामान्य राशि जमा हुई.

23 जुलाई, 2017 : केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि पिछले तीन वर्षों में आयकर विभाग द्वारा बड़े पैमाने पर की गई कार्रवाई से करीब 71,941 करोड़ रुपये की "अघोषित आय" का पता चला.

25 अगस्त, 2017 : रिजर्व बैंक(आरबीआई) ने 50 रुपये और 200 रुपये के नए नोट जारी किए.

28 सितंबर, 2022 : उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में न्यायमूर्ति एस ए नज़ीर की अध्यक्षता में संविधान पीठ का गठन किया.

07 दिसंबर, 2022 : उच्चतम न्यायालय ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा और केंद्र एवं आरबीआई को संबंधित दस्तावेज विचारार्थ रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया.

02 जनवरी 2023 : उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने नोटबंदी के फैसले को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया. पीठ ने कहा कि नोटबंदी की निर्णय प्रक्रिया दोषपूर्ण नहीं थी. पीठ ने कहा कि आर्थिक मामले में संयम बरतने की जरूरत होती है. अदालत सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा करके उसके ज्ञान को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती.

02 जनवरी 2023 : न्यायाधीश बी. वी. नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने का फैसला गजट अधिसूचना के बजाए कानून के जरिए लिया जाना चाहिए था, क्योंकि इतने महत्वपूर्ण मामले से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता.

(एक्स्ट्रा इनपुट- एजेंसी)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2016 में 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने संबंधी सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुनाया है. अदालत ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है. जस्टिस एस. ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया. शीर्ष अदालत का कहना है कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था. अदालत का कहना है कि इस तरह के उपाय को लाने के लिए एक उचित सांठगांठ थी, और हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित नहीं हुई थी.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सात दिसंबर को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करें. पीठ ने केंद्र के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, आरबीआई के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदम्बरम तथा श्याम दीवान समेत याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनी थीं और अपना फैसला सुरक्षित रखा था.

एक हजार और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को ‘गंभीर रूप से दोषपूर्ण’ बताते हुए चिदंबरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है. वर्ष 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के सर्वोच्च न्यायालय के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब ‘बीते वक्त में लौट कर’ कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है.

चिदंबरम ने दी प्रतिक्रिया - पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि फैसले का असहमति वाला हिस्सा अनियमितताओं की ओर इशारा करता है. चिदंबरम ने एक बयान में कहा, सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले को सही ठहराया है, हम इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं. लेकिन यह इंगित करना आवश्यक है कि बहुमत ने निर्णय के ज्ञान को बरकरार नहीं रखा है और न ही बहुमत ने निष्कर्ष निकाला कि नोटबंदी के घोषित उद्देश्य हासिल किए गए थे.

इस मामले में अहम घटनाक्रम इस प्रकार रहे:

08 नवंबर, 2016 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया और 500 रुपये और 1000 रुपये के उच्च मूल्य वाले नोटों को चलन से बाहर किए जाने की घोषणा की.

09 नवंबर, 2016 : सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई.

16 दिसंबर, 2016 : तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार के फैसले की वैधता और अन्य सवालों को विचारार्थ पांच न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ के पास भेजा.

11 अगस्त, 2017 : भारतीय रिजर्व बैंक के दस्तावेज के अनुसार नोटबंदी के दौरान 1.7 लाख करोड़ रुपये की असामान्य राशि जमा हुई.

23 जुलाई, 2017 : केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि पिछले तीन वर्षों में आयकर विभाग द्वारा बड़े पैमाने पर की गई कार्रवाई से करीब 71,941 करोड़ रुपये की "अघोषित आय" का पता चला.

25 अगस्त, 2017 : रिजर्व बैंक(आरबीआई) ने 50 रुपये और 200 रुपये के नए नोट जारी किए.

28 सितंबर, 2022 : उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में न्यायमूर्ति एस ए नज़ीर की अध्यक्षता में संविधान पीठ का गठन किया.

07 दिसंबर, 2022 : उच्चतम न्यायालय ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा और केंद्र एवं आरबीआई को संबंधित दस्तावेज विचारार्थ रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया.

02 जनवरी 2023 : उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने नोटबंदी के फैसले को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया. पीठ ने कहा कि नोटबंदी की निर्णय प्रक्रिया दोषपूर्ण नहीं थी. पीठ ने कहा कि आर्थिक मामले में संयम बरतने की जरूरत होती है. अदालत सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा करके उसके ज्ञान को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती.

02 जनवरी 2023 : न्यायाधीश बी. वी. नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने का फैसला गजट अधिसूचना के बजाए कानून के जरिए लिया जाना चाहिए था, क्योंकि इतने महत्वपूर्ण मामले से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता.

(एक्स्ट्रा इनपुट- एजेंसी)

Last Updated : Jan 2, 2023, 3:36 PM IST
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