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हम एक्टिविस्ट हैं, टेररिस्ट नहीं : नताशा-देवांगना

UAPA के तहत जेल में बंद रहीं स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा नरवाल (natasha narwal) और देवांगना कलीता (devangana kalita) जमानत पर तिहाड़ जेल से बाहर आ गई हैं. करीब एक साल तक तिहाड़ जेल में बंद रहने के बाद नताशा और देवांगना ने अपना एक्सपीरियंस बयां किया है. 'ईटीवी भारत' दिल्ली के स्टेट हेड विशाल सूर्यकांत ने नताशा और देवांगना से खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने कहा कि हम JNU वाले राष्ट्रविरोधी नहीं हैं, बस हमारे विचार अलग हैं. सुनिए UAPA समेत अन्य तमाम मुद्दों पर उन्होंने क्या कुछ कहा.

नताशा-देवांगना
नताशा-देवांगना
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Published : Jun 21, 2021, 11:27 AM IST

ईटीवी भारत- स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा और देवांगना जो पिछले एक साल से तिहाड़ जेल में थीं, यूएपीए (UAPA) कानून के तहत. हाईकोर्ट के बाद उन्हें अब सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. कैसा फील हो रहा है, सवाल एक लाइन का है, लेकिन इसके कई मायने हैं, क्या कहेंगी?

जवाब- असल में एक ही दिन हुआ है अभी बाहर आए हुए, अभी भी हमें ऐसा ही लग रहा है कि ये पूरा सच नहीं है. शायद सपना देख रही हूं जो कल उठने पर टूट जाएगा. अभी तक इस तरीके की फीलिंग है. काफी अचानक से चीजें हुई. थोड़ा समय लगेगा खुद को समझने में भी कि कैसा फील हो रहा है.

नताशा-देवांगना का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

ईटीवी भारत- UAPA कानून आप पर लगा, तब परिवार का क्या रिएक्शन था ?

जवाब- बहुत ही शॉकिंग एक्सपीरियंस था, देवांगना की गिरफ्तारी से पहले कुछ और एक्टिविस्ट (Student Activist) जो मूवमेंट में पार्टिसिपेट कर रहे थे, वो अरेस्ट हो चुके थे. तो समझ आ रहा था किस तरह से चीजें हो रही हैं. फिर भी जिस तरीके से चीजें हुईं कि एक एफआईआर में अरेस्ट होना, उसमें बेल भी मिल जाना. फिर अगली एफआईआर हो जाना. जिस तरीके के आरोप लगे. कई महीने हमें उस रियलिटी को एक्सेप्ट करने में लग गए. जेल में भी हम लोग एक दूसरे की शक्ल देखते थे कि क्या सच में हम लोग यूएपीए के तहत तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में हैं.

ये भी पढ़ें: ऐसा लगा कि जेल नहीं, हम क़ब्र में आ गए हैं : नताशा-देवांगना

ईटीवी भारत- नताशा, आप जेल में और पिता का निधन हो जाना, बहुत दुःखद रहा होगा सब कुछ ?

जवाब- मेरे पास भी शब्द नहीं हैं, उसकी जो टीस है, जो दर्द है, जो कमी है. उसे तो कोई भी चीज पूरा नहीं कर सकती, लेकिन मुझे पता है कि हमेशा मेरे फादर भी कई संघर्षों से जुड़े रहे थे. इमरजेंसी के वक्त वो भी जेल गए थे. 6 महीने जेल में रहे थे. बचपन से हम वो कहानियां सुनते आ रहे हैं. इस दौरान मुझे एक कनेक्शन महसूस होता था. मैंने जो भी सीखा है, लड़ना सीखा है, उन्हीं से सीखा है. अभी भी लगता है, वो साथ हैं और हमेशा रहेंगे.

ईटीवी भारत- जेल में एक साल में आपने क्या देखा, क्या समझा ?

जवाब- बिल्कुल एक साल का जो एक्सपीरियंस रहा है. इससे हमने बहुत कुछ सीखा है, देखा है, जाना है. बहुत बड़ी सीख जो हम लोग अखबारों में पढ़ते हैं कि जेलों की क्या हालत है. करीब 80 प्रतिशत लोग अंडरट्रायल (Under Trial) हैं. पूरी चीज को समझना कि ये हो क्या रहा है, हमारी जिंदगी अचानक बदल गई. धाराएं, केस का मतलब क्या होता है. तमाम चीजों को समझने का एक्सेस भी लोगों के पास नहीं होता.

ये भी पढ़ें: देशद्रोह और व्यवस्थाओं के प्रति विद्रोह दोनों अलग-अलग बात : देवांगना कलीता, नताशा नरवाल

दरअसल जेल का ढांचा, सिस्टम (Jail Manual) है, वो बनाया ही इसीलिए गया है कि वो पूरी तरह से जो आपके ह्ययूमन राइट्स हैं, वो छीन लिए जाते हैं एक तरह से. आपका चाहे ट्रायल कंप्लीट हुआ हो या नहीं, आपको क्रिमिनल मान लिया जाता है. आपसे बात भी इसी तरह से की जाती है. जब कोई जेल में दुखी होता है और किसी से कोई शिकायत करता है तो यही कहा जाता है कि जो भी उसका क्राइम है, वो करने से पहले क्यों नहीं सोचा. बेसिक चीजों के लिए लड़ना पड़ता है, लड़ने पर जेल प्रशासन द्वारा एक्शन लिया जा सकता है, एक इंसान का पूरी तरह से राइट्स छीन लेना, हेल्पलेसनेस, पावरलेसनेस की स्थिति में लाकर खड़ा कर देना, इस हालत को हमने जिया है.

हमारे पास फिर भी रिसोर्सेज थे. हमारे साथ कोई इस तरह बात नहीं कर पाता था, जैसे और लोगों से करते थे. हमारे पास सपोर्ट था, अच्छा लीगल रिप्रेजेंटेशन था. जो जेल का वॉयलेंस है हमने झेला, लेकिन पर्सनली हमें ज्यादा परेशान नहीं झेलनी पड़ी. प्रिजनर्स के राइट्स के बारे में हमें सोचना चाहिए. आप अगर जेल में बंद हो गए तो आपके जो फंडामेंटल राइट्स है, खत्म हो जाते हैं. उसकी बाहर सुनवाई करने वाला कोई नहीं है. तो इस पर गौर करने की जरूरत है.

ईटीवी भारत- आपकी लीगल टीम मजबूत रही, जो जमानत करवा लाई, बाकी लोगों का क्या ?

जवाब- हां एक उम्मीद तो थी कि कभी न कभी तो होगा. मगर ये नहीं सोचा था कि इस समय, इस तरीके से होगा. ये हमारे लिए अनएक्सपेक्टेड था. जितना देखा है कि बाकी लोगों के साथ जिन्हें UAPA में बुक किया जाता था, अधिकतर तो एक्विटल के बाद ही बाहर आ पाते हैं. एक्विटल रेट तो 2 प्रतिशत ही है. जब आप दस-दस साल, 15-15 साल बाद बरी होकर आते हैं. बेल का प्रोविजन इतना स्ट्रिजंड है, जो एक नॉर्मल रूल है कि जेल एक्सेपशन होना चाहिए और बेल रूल होना चाहिए, लेकिन ये प्रोविजन उसे ओवरटर्न कर देता है.

ये भी पढ़ें: UAPA संशोधन बिल राज्यसभा में पारित, NIA को मिलेंगे विशेष अधिकार

हमें लगता था लंबा समय गुजारना पड़ेगा. हम लोगों ने खुद को लंबे समय के लिए समझाकर रखा था. मुझे लगता है कि हमारे परिवार ने भी ये सोचा हुआ था, लेकिन जो अचानक से चीजें हुई. अनएक्सपेक्टेड थी. बहुत शुक्रिया करेंगे दिल्ली हाई कोर्ट का कि उन्होंने ऐसा आदेश दिया. सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रोटेस्ट और देशद्रोह में काफी फर्क है. हाई कोर्ट ने अपने जजमेंट में भी स्पष्ट किया है.

ईटीवी भारत- नताशा हरियाणा से हैं, देवांगना असम से , जब आतंकी, दंगाई कहा गया, तब सोसायटी रिएक्शन कैसा महसूस हुआ ?

जवाब- जैसे मैं हरियाणा से आती हूं, पुलिस कस्टडी में थी तो यही सवाल था कि तुम यहां कैसे हो सकती हो. यही परसेप्शन था कि प्रोटेस्ट करना तो हमारे इसमें है ही नहीं, पढ़ाई करके अच्छी नौकरी करती. इससे क्या मिला. ऐसा परसेप्शन काफी रहा. जितना मुझे सुनने को मिला, एक साल में इस परसेप्शन में काफी बदलाव आया. शुरू में लोगों को शॉकिंग लगा कि ये कैसे हो सकता है. लोगों ने सोचा, विचार किया. परिवार का बहुत सपोर्ट था, लेकिन फैमिली को भी ये लग रहा था कि ये क्या, कैसे हो गया. जो जानते हैं आपको... उनके लिए शॉकिंग था.

उन्होंने जानने-समझने की कोशिश की तो उन्हें पता चला कि आज के दौर में स्टेट का यही पैटर्न बन गया है कि इस तरीके से आवाज दबाने के लिए जेल में बंद किया जा रहा है. चाहे हम जैसे स्टूडेंट एक्टिविस्ट हों, किसान हों, जर्नलिस्ट हों या बुद्धिजीवी. सरकार की पॉलिसी के खिलाफ जो खड़ा है. उसे आज के दौर में इसे फेस करना पड़ रहा है.

इस तरह का पैटर्न लोगों को धीरे-धीरे समझ आ रहा है. पैनडेमिक के दौरान जो सरकार का फेलियर था. इस तरह की बात जो लोग लिख रहे हैं, उन पर चार्जेज लगाना कि वो देश और सरकार को बदनाम कर रहे हैं, उसका एक्सपोजर हुआ है. बहुत पॉजिटिव बात है.

ये भी पढ़ें: दिल्ली हिंसा: नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ इकबाल तान्हा को मिली जमानत

ईटीवी भारत- कोरोना काल और तिहाड़ में कैद, क्या देखा वहां अंदर का हाल ?

जवाब- वो समय काफी मुश्किल समय था, जेल में सब के लिए. जो बेसिक प्रोटोकॉल (Covid Protocol) है वो इतने ओवरक्राउडेड प्लेस में ये संभव नहीं है. टेस्टिंग किट नहीं थी. एक के बाद एक कैदियों के संक्रमित होने का पता चल रहा था. मुलाकातें बंद थी. डेली फोन कॉल बंद थी. बिल्कुल ऐसा माहौल था. किसी ने बोला भी था उस समय कि ऐसा लगता है हम लोग कब्र में हैं. न बाहर से आवाजें आती हैं, न बाहर आवाजें जाती हैं. शायद हम लोग यही मर जाएंगे और किसी को पता भी नहीं चल पाएगा. दो-तीन कैदियों की मौत भी हुई. ये काफी मुश्किल, डर और चिंता का माहौल था हर जगह.

टेस्टिंग के लिए किट्स का इंतजाम करना बार-बार पिटीशन डालना पड़ा. वैक्सीन लगवाने के लिए कोर्ट से गुजारिश की. फिर ऑर्डर के बाद वैक्सीनेशन ड्राइव तेजी से हुआ. हमें सोचने की जरूरत है कि कोर्ट बंद है, ट्रायल्स हो ही नहीं रहे हैं. ऐसे समय में क्या आप लोगों को जेल में बंद रख सकते हैं. जब आप उन्हें क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की रिक्वरायमेंट नहीं प्रोवाइड कर सकते हैं. ऐसे में इस समय लोगों को अंदर नहीं रखा जाना चाहिए.

ईटीवी भारत- UAPA का विरोध कड़े प्रावधानों पर है, लेकिन आतंकवाद भी इस देश की हकीकत है, फिर कानून में ढील कैसे देंगे ? अगर कोई बेगुनाह है तो कैसे बचाएंगे? क्या सोचती हैं आप ?

जवाब- जितना अपने केस से सीखा है, जितना पढ़ा है, इसके बारे में मैं ये नहीं कहना चाहूंगी कि इन चीजों से डील करने के लिए कोई लॉ न हो. लेकिन लॉ क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का जो बेसिक रूल है कि यू आर इनोसेंट अनटिल प्रूवेन गिल्टी. उस आधार पर तो हो, लेकिन इसमें इसे उल्टा कर दिया गया. अभी आपको बताना है कि आप दोषी नहीं है. तब तक आपको दोषी मान लिया जाता है. फिर आपको निर्दोष साबित करना है खुद को.

टेक्निकल एक्सपेक्ट पर आप सिर्फ लॉ की बात नहीं कर सकते. हम देख रहे हैं लोगों की जिंदगियों के लंबे वक्त गुजर जाते हैं बेल न मिलने के कारण. जो समय आपने खोया है उसकी कोई भरपाई नहीं कर सकता. हाल ही में संशोधन जो हुआ है कि आपको इनडिविजुअल भी आतंकी घोषित किया जा सकता है. वो भी बिना ट्रायल के. वो लॉ के बेसिक प्रिंसिपल का उल्लंघन है. इस पर काफी गौर की जरूरत है. कुछ लॉ चाहिए इसका मतलब ये नहीं कि आप इस तरह के लॉ को जस्टिफाई करें.

ये भी पढ़ें: जानिए क्यों दिल्ली दंगों में UAPA के आरोपियों की डगर नहीं आसान

ईटीवी भारत- JNU की गतिविधियां, सवालों के घेरे में आती रही हैं, अगर आप विपरीत विचारधारा पर आक्रामक होने का आरोप लगाती हैं तो आप भी तो अपने रुख पर आक्रामक हैं, ऐसे में टकराव तो तय है ..आपको ऐसा नहीं लगता ?

जवाब- मैं यहीं बोलना चाहूंगी कि अगर सवाल पूछना, सरकार की नीतियों-विचारधारा के खिलाफ सवाल उठाना देशद्रोह है तो गलत इंटरप्रेटेशन है कि देश क्या होता है और विद्रोह क्या होता है उसका. अभी जेएनयू में जो फीस बढ़ाए जाने का विरोध हुआ तो स्टूडेंट बोल रहे हैं कि हमें हक है पढ़ाई का. मुझे हक है एफोर्डेबल एजुकेशन का.

अगर इसे देशद्रोह माना जाता है. अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा कानून अभी लागू है. हम पढ़ाई सिर्फ करियर बनाने के लिए नहीं समाज बदलने के लिए भी करते हैं. उसमें अगर मुसलमानों, दलितों, औरतों आदिवासियों के हक की बात हो रही है तो उसे देशद्रोह कह सकते हैं. उनका क्या है, उनके खिलाफ क्या भेदभाव चल रहा है. इन सबके बारे में अगर हम यूनिवर्सिटी में बात नहीं करेंगे तो पढ़ाई का क्या मतलब.

ईटीवी भारत- पिंजरा तोड़ संगठन से आप जुड़ी हैं. लोगों को जानना चाहिए कि किस तरह का कैंपेन है. आगे क्या आपकी स्टडी भी प्रभावित हुई है. इससे आगे स्टूडेंट एक्टिविस्ट के रूप में आपका क्या प्लान है ?

जवाब- जो हम समाज में इमैजिन करते हैं. महिलाओं के जीवन में बहुत सारे पिंजरे होते हैं. क्लास का पिंजरा, कास्ट का पिंजरा, सोसायटी का पिंजरा लो. वीमेन स्टूडेंट का एक मूवमेंट था. इसे लेकर क्या सवाल हैं, हम कैसे संघर्ष कर सकते हैं. ये जो नारीवाद का मुद्दा है. जब तक इक्वल राइट्स नहीं मिलते. तब तक अकेले औरतें फ्री नहीं हो सकती. मतलब ब्रॉड समझ के साथ कैसे आगे बढ़ें. एक छोटी मुहिम थी, जिसे लेकर आगे गए. हम पिंजरा तोड़ने की बात कर रहे थे, लेकिन सरकार ने हमें एक पिंजरे में डाल दिया. हम बोलते थे लड़कियों को आजादी होनी चाहिए, फिर आपको जेल में बंद कर दिया गया. अभी तो शायद दो दिन ही हुए हैं बाहर आए. अलग-अलग पिंजरे सबके ऊपर हैं. ये संघर्ष जारी रहेगा.

ये भी पढ़ें: जेएनयू: UAPA कानून का सरकार कर रही दुरुपयोग, पुलिस गृह मंत्री के इशारे पर कर रही कार्रवाई

ईटीवी भारत- तिहाड़ के अंदर आपका क्या रूटीन था. बाहर की दुनिया से अचानक अंदर जाना. वहां की दुनिया अलग थी ?

जवाब- बहुत मुश्किल जगह है जेल. संविधान और सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक कैदी के भी अधिकार हैं, लेकिन जो हमारा प्रिजन सिस्टम है, तो स्पेशली वीमन सेल में तो आप इंसान ही नहीं रहते. एक होता है जेल जा रहे और दूसरे कोरोना के समय जेल जा रहे. जब जेल का पहला दिन होता है कि 14 दिन क्वारंटीन रहना है, हर मिनट हर सेकंड सांस लेना मुश्किल था. नताशा, मैं और गुलफिशा एक ही बैरक में थे. लोग तो मजाक बनाते थे हमारे केस के बारे में सुनकर कि ये हो ही नहीं सकता. बाकी लोगों से अंदर सपोर्ट मिला. हमारा संघर्ष अंदर भी जारी रहा.

जेल सिस्टम में काफी रिफॉर्म्स की जरूरत है. बहुत टाइम लगेगा कि वो जो ट्रॉमा है उसे समझने के लिए. जो साथी को हम छोड़ आए हैं, हम लोग बच्चों के वार्ड में थे तो बहुत टाइम खेलने, पढ़ाने में निकल जाता था. नताशा जेल में नौकरी करती थी.

ईटीवी भारत- देवांगना आप असम से हैं, आपकी फैमिली का इस आरोप पर क्या रिएक्शन है ?

जवाब- मैं पढ़ाई को लेकर काफी टाइम से बाहर हूं. काफी सपोर्ट मिला. वहां सीएए को लेकर काफी आंदोलन चला. कुछ एक्टिविस्ट अभी भी जेल में हैं. जो वहां सपोर्ट मिला, मैं उसके लिए थैंकफुल हूं. जेल में बहुत मुश्किल दिन भी होते थे. सांस लेने की भी दिक्कत होती थी. बहुत सहारा मिला.

ईटीवी भारत- बेल मिली, स्टडी कैसे आगे बढ़ेगी.. बहुत जल्दबाजी होगा, क्या सोचा है आपने फ्यूचर को लेकर ?

जवाब- अभी तो यूनिवर्सिटी खुली नहीं है. मेरी प्रायोरिटी है कि दिसंबर तक अपना एमफील सबमिट कर सकूं. पढ़ाई और संघर्ष साथ-साथ जारी रहेगा. संघर्ष में सीखते हैं, पढ़ाई में लाते हैं. पढ़ाई की चीजें संघर्ष में लाते हैं. वीमेन जेल में सिर्फ होम साइंस ही क्यों है. हमें किताबों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट जाना पड़ा. जेल के कंप्यूटर सेंटर को खोलने की मांग की. जेल के अंदर भी कैसे पढ़ाई जारी रखें. इतने बच्चे हैं, जेल में क्या उनका ग्रोथ जरूरी नहीं है. हमारी एक और साथी गुलफिशा बच्चों को पढ़ाने लगी थी.

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ईटीवी भारत- नताशा आप फ्यूचर प्लानिंग को लेकर क्या कहेंगी ?

जवाब- प्राथमिकता पीएचडी जमा करना. मुझे तो रजिस्ट्रेशन तक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. बाकी प्लान तो अभी कुछ नहीं है, लेकिन हम लोग संघर्ष अपना जारी रहेंगे. स्टूडेंट, औरतों के हक की लड़ाई जारी रहेगी.

ईटीवी भारत- स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा और देवांगना जो पिछले एक साल से तिहाड़ जेल में थीं, यूएपीए (UAPA) कानून के तहत. हाईकोर्ट के बाद उन्हें अब सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. कैसा फील हो रहा है, सवाल एक लाइन का है, लेकिन इसके कई मायने हैं, क्या कहेंगी?

जवाब- असल में एक ही दिन हुआ है अभी बाहर आए हुए, अभी भी हमें ऐसा ही लग रहा है कि ये पूरा सच नहीं है. शायद सपना देख रही हूं जो कल उठने पर टूट जाएगा. अभी तक इस तरीके की फीलिंग है. काफी अचानक से चीजें हुई. थोड़ा समय लगेगा खुद को समझने में भी कि कैसा फील हो रहा है.

नताशा-देवांगना का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

ईटीवी भारत- UAPA कानून आप पर लगा, तब परिवार का क्या रिएक्शन था ?

जवाब- बहुत ही शॉकिंग एक्सपीरियंस था, देवांगना की गिरफ्तारी से पहले कुछ और एक्टिविस्ट (Student Activist) जो मूवमेंट में पार्टिसिपेट कर रहे थे, वो अरेस्ट हो चुके थे. तो समझ आ रहा था किस तरह से चीजें हो रही हैं. फिर भी जिस तरीके से चीजें हुईं कि एक एफआईआर में अरेस्ट होना, उसमें बेल भी मिल जाना. फिर अगली एफआईआर हो जाना. जिस तरीके के आरोप लगे. कई महीने हमें उस रियलिटी को एक्सेप्ट करने में लग गए. जेल में भी हम लोग एक दूसरे की शक्ल देखते थे कि क्या सच में हम लोग यूएपीए के तहत तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में हैं.

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ईटीवी भारत- नताशा, आप जेल में और पिता का निधन हो जाना, बहुत दुःखद रहा होगा सब कुछ ?

जवाब- मेरे पास भी शब्द नहीं हैं, उसकी जो टीस है, जो दर्द है, जो कमी है. उसे तो कोई भी चीज पूरा नहीं कर सकती, लेकिन मुझे पता है कि हमेशा मेरे फादर भी कई संघर्षों से जुड़े रहे थे. इमरजेंसी के वक्त वो भी जेल गए थे. 6 महीने जेल में रहे थे. बचपन से हम वो कहानियां सुनते आ रहे हैं. इस दौरान मुझे एक कनेक्शन महसूस होता था. मैंने जो भी सीखा है, लड़ना सीखा है, उन्हीं से सीखा है. अभी भी लगता है, वो साथ हैं और हमेशा रहेंगे.

ईटीवी भारत- जेल में एक साल में आपने क्या देखा, क्या समझा ?

जवाब- बिल्कुल एक साल का जो एक्सपीरियंस रहा है. इससे हमने बहुत कुछ सीखा है, देखा है, जाना है. बहुत बड़ी सीख जो हम लोग अखबारों में पढ़ते हैं कि जेलों की क्या हालत है. करीब 80 प्रतिशत लोग अंडरट्रायल (Under Trial) हैं. पूरी चीज को समझना कि ये हो क्या रहा है, हमारी जिंदगी अचानक बदल गई. धाराएं, केस का मतलब क्या होता है. तमाम चीजों को समझने का एक्सेस भी लोगों के पास नहीं होता.

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दरअसल जेल का ढांचा, सिस्टम (Jail Manual) है, वो बनाया ही इसीलिए गया है कि वो पूरी तरह से जो आपके ह्ययूमन राइट्स हैं, वो छीन लिए जाते हैं एक तरह से. आपका चाहे ट्रायल कंप्लीट हुआ हो या नहीं, आपको क्रिमिनल मान लिया जाता है. आपसे बात भी इसी तरह से की जाती है. जब कोई जेल में दुखी होता है और किसी से कोई शिकायत करता है तो यही कहा जाता है कि जो भी उसका क्राइम है, वो करने से पहले क्यों नहीं सोचा. बेसिक चीजों के लिए लड़ना पड़ता है, लड़ने पर जेल प्रशासन द्वारा एक्शन लिया जा सकता है, एक इंसान का पूरी तरह से राइट्स छीन लेना, हेल्पलेसनेस, पावरलेसनेस की स्थिति में लाकर खड़ा कर देना, इस हालत को हमने जिया है.

हमारे पास फिर भी रिसोर्सेज थे. हमारे साथ कोई इस तरह बात नहीं कर पाता था, जैसे और लोगों से करते थे. हमारे पास सपोर्ट था, अच्छा लीगल रिप्रेजेंटेशन था. जो जेल का वॉयलेंस है हमने झेला, लेकिन पर्सनली हमें ज्यादा परेशान नहीं झेलनी पड़ी. प्रिजनर्स के राइट्स के बारे में हमें सोचना चाहिए. आप अगर जेल में बंद हो गए तो आपके जो फंडामेंटल राइट्स है, खत्म हो जाते हैं. उसकी बाहर सुनवाई करने वाला कोई नहीं है. तो इस पर गौर करने की जरूरत है.

ईटीवी भारत- आपकी लीगल टीम मजबूत रही, जो जमानत करवा लाई, बाकी लोगों का क्या ?

जवाब- हां एक उम्मीद तो थी कि कभी न कभी तो होगा. मगर ये नहीं सोचा था कि इस समय, इस तरीके से होगा. ये हमारे लिए अनएक्सपेक्टेड था. जितना देखा है कि बाकी लोगों के साथ जिन्हें UAPA में बुक किया जाता था, अधिकतर तो एक्विटल के बाद ही बाहर आ पाते हैं. एक्विटल रेट तो 2 प्रतिशत ही है. जब आप दस-दस साल, 15-15 साल बाद बरी होकर आते हैं. बेल का प्रोविजन इतना स्ट्रिजंड है, जो एक नॉर्मल रूल है कि जेल एक्सेपशन होना चाहिए और बेल रूल होना चाहिए, लेकिन ये प्रोविजन उसे ओवरटर्न कर देता है.

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हमें लगता था लंबा समय गुजारना पड़ेगा. हम लोगों ने खुद को लंबे समय के लिए समझाकर रखा था. मुझे लगता है कि हमारे परिवार ने भी ये सोचा हुआ था, लेकिन जो अचानक से चीजें हुई. अनएक्सपेक्टेड थी. बहुत शुक्रिया करेंगे दिल्ली हाई कोर्ट का कि उन्होंने ऐसा आदेश दिया. सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रोटेस्ट और देशद्रोह में काफी फर्क है. हाई कोर्ट ने अपने जजमेंट में भी स्पष्ट किया है.

ईटीवी भारत- नताशा हरियाणा से हैं, देवांगना असम से , जब आतंकी, दंगाई कहा गया, तब सोसायटी रिएक्शन कैसा महसूस हुआ ?

जवाब- जैसे मैं हरियाणा से आती हूं, पुलिस कस्टडी में थी तो यही सवाल था कि तुम यहां कैसे हो सकती हो. यही परसेप्शन था कि प्रोटेस्ट करना तो हमारे इसमें है ही नहीं, पढ़ाई करके अच्छी नौकरी करती. इससे क्या मिला. ऐसा परसेप्शन काफी रहा. जितना मुझे सुनने को मिला, एक साल में इस परसेप्शन में काफी बदलाव आया. शुरू में लोगों को शॉकिंग लगा कि ये कैसे हो सकता है. लोगों ने सोचा, विचार किया. परिवार का बहुत सपोर्ट था, लेकिन फैमिली को भी ये लग रहा था कि ये क्या, कैसे हो गया. जो जानते हैं आपको... उनके लिए शॉकिंग था.

उन्होंने जानने-समझने की कोशिश की तो उन्हें पता चला कि आज के दौर में स्टेट का यही पैटर्न बन गया है कि इस तरीके से आवाज दबाने के लिए जेल में बंद किया जा रहा है. चाहे हम जैसे स्टूडेंट एक्टिविस्ट हों, किसान हों, जर्नलिस्ट हों या बुद्धिजीवी. सरकार की पॉलिसी के खिलाफ जो खड़ा है. उसे आज के दौर में इसे फेस करना पड़ रहा है.

इस तरह का पैटर्न लोगों को धीरे-धीरे समझ आ रहा है. पैनडेमिक के दौरान जो सरकार का फेलियर था. इस तरह की बात जो लोग लिख रहे हैं, उन पर चार्जेज लगाना कि वो देश और सरकार को बदनाम कर रहे हैं, उसका एक्सपोजर हुआ है. बहुत पॉजिटिव बात है.

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ईटीवी भारत- कोरोना काल और तिहाड़ में कैद, क्या देखा वहां अंदर का हाल ?

जवाब- वो समय काफी मुश्किल समय था, जेल में सब के लिए. जो बेसिक प्रोटोकॉल (Covid Protocol) है वो इतने ओवरक्राउडेड प्लेस में ये संभव नहीं है. टेस्टिंग किट नहीं थी. एक के बाद एक कैदियों के संक्रमित होने का पता चल रहा था. मुलाकातें बंद थी. डेली फोन कॉल बंद थी. बिल्कुल ऐसा माहौल था. किसी ने बोला भी था उस समय कि ऐसा लगता है हम लोग कब्र में हैं. न बाहर से आवाजें आती हैं, न बाहर आवाजें जाती हैं. शायद हम लोग यही मर जाएंगे और किसी को पता भी नहीं चल पाएगा. दो-तीन कैदियों की मौत भी हुई. ये काफी मुश्किल, डर और चिंता का माहौल था हर जगह.

टेस्टिंग के लिए किट्स का इंतजाम करना बार-बार पिटीशन डालना पड़ा. वैक्सीन लगवाने के लिए कोर्ट से गुजारिश की. फिर ऑर्डर के बाद वैक्सीनेशन ड्राइव तेजी से हुआ. हमें सोचने की जरूरत है कि कोर्ट बंद है, ट्रायल्स हो ही नहीं रहे हैं. ऐसे समय में क्या आप लोगों को जेल में बंद रख सकते हैं. जब आप उन्हें क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की रिक्वरायमेंट नहीं प्रोवाइड कर सकते हैं. ऐसे में इस समय लोगों को अंदर नहीं रखा जाना चाहिए.

ईटीवी भारत- UAPA का विरोध कड़े प्रावधानों पर है, लेकिन आतंकवाद भी इस देश की हकीकत है, फिर कानून में ढील कैसे देंगे ? अगर कोई बेगुनाह है तो कैसे बचाएंगे? क्या सोचती हैं आप ?

जवाब- जितना अपने केस से सीखा है, जितना पढ़ा है, इसके बारे में मैं ये नहीं कहना चाहूंगी कि इन चीजों से डील करने के लिए कोई लॉ न हो. लेकिन लॉ क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का जो बेसिक रूल है कि यू आर इनोसेंट अनटिल प्रूवेन गिल्टी. उस आधार पर तो हो, लेकिन इसमें इसे उल्टा कर दिया गया. अभी आपको बताना है कि आप दोषी नहीं है. तब तक आपको दोषी मान लिया जाता है. फिर आपको निर्दोष साबित करना है खुद को.

टेक्निकल एक्सपेक्ट पर आप सिर्फ लॉ की बात नहीं कर सकते. हम देख रहे हैं लोगों की जिंदगियों के लंबे वक्त गुजर जाते हैं बेल न मिलने के कारण. जो समय आपने खोया है उसकी कोई भरपाई नहीं कर सकता. हाल ही में संशोधन जो हुआ है कि आपको इनडिविजुअल भी आतंकी घोषित किया जा सकता है. वो भी बिना ट्रायल के. वो लॉ के बेसिक प्रिंसिपल का उल्लंघन है. इस पर काफी गौर की जरूरत है. कुछ लॉ चाहिए इसका मतलब ये नहीं कि आप इस तरह के लॉ को जस्टिफाई करें.

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ईटीवी भारत- JNU की गतिविधियां, सवालों के घेरे में आती रही हैं, अगर आप विपरीत विचारधारा पर आक्रामक होने का आरोप लगाती हैं तो आप भी तो अपने रुख पर आक्रामक हैं, ऐसे में टकराव तो तय है ..आपको ऐसा नहीं लगता ?

जवाब- मैं यहीं बोलना चाहूंगी कि अगर सवाल पूछना, सरकार की नीतियों-विचारधारा के खिलाफ सवाल उठाना देशद्रोह है तो गलत इंटरप्रेटेशन है कि देश क्या होता है और विद्रोह क्या होता है उसका. अभी जेएनयू में जो फीस बढ़ाए जाने का विरोध हुआ तो स्टूडेंट बोल रहे हैं कि हमें हक है पढ़ाई का. मुझे हक है एफोर्डेबल एजुकेशन का.

अगर इसे देशद्रोह माना जाता है. अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा कानून अभी लागू है. हम पढ़ाई सिर्फ करियर बनाने के लिए नहीं समाज बदलने के लिए भी करते हैं. उसमें अगर मुसलमानों, दलितों, औरतों आदिवासियों के हक की बात हो रही है तो उसे देशद्रोह कह सकते हैं. उनका क्या है, उनके खिलाफ क्या भेदभाव चल रहा है. इन सबके बारे में अगर हम यूनिवर्सिटी में बात नहीं करेंगे तो पढ़ाई का क्या मतलब.

ईटीवी भारत- पिंजरा तोड़ संगठन से आप जुड़ी हैं. लोगों को जानना चाहिए कि किस तरह का कैंपेन है. आगे क्या आपकी स्टडी भी प्रभावित हुई है. इससे आगे स्टूडेंट एक्टिविस्ट के रूप में आपका क्या प्लान है ?

जवाब- जो हम समाज में इमैजिन करते हैं. महिलाओं के जीवन में बहुत सारे पिंजरे होते हैं. क्लास का पिंजरा, कास्ट का पिंजरा, सोसायटी का पिंजरा लो. वीमेन स्टूडेंट का एक मूवमेंट था. इसे लेकर क्या सवाल हैं, हम कैसे संघर्ष कर सकते हैं. ये जो नारीवाद का मुद्दा है. जब तक इक्वल राइट्स नहीं मिलते. तब तक अकेले औरतें फ्री नहीं हो सकती. मतलब ब्रॉड समझ के साथ कैसे आगे बढ़ें. एक छोटी मुहिम थी, जिसे लेकर आगे गए. हम पिंजरा तोड़ने की बात कर रहे थे, लेकिन सरकार ने हमें एक पिंजरे में डाल दिया. हम बोलते थे लड़कियों को आजादी होनी चाहिए, फिर आपको जेल में बंद कर दिया गया. अभी तो शायद दो दिन ही हुए हैं बाहर आए. अलग-अलग पिंजरे सबके ऊपर हैं. ये संघर्ष जारी रहेगा.

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ईटीवी भारत- तिहाड़ के अंदर आपका क्या रूटीन था. बाहर की दुनिया से अचानक अंदर जाना. वहां की दुनिया अलग थी ?

जवाब- बहुत मुश्किल जगह है जेल. संविधान और सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक कैदी के भी अधिकार हैं, लेकिन जो हमारा प्रिजन सिस्टम है, तो स्पेशली वीमन सेल में तो आप इंसान ही नहीं रहते. एक होता है जेल जा रहे और दूसरे कोरोना के समय जेल जा रहे. जब जेल का पहला दिन होता है कि 14 दिन क्वारंटीन रहना है, हर मिनट हर सेकंड सांस लेना मुश्किल था. नताशा, मैं और गुलफिशा एक ही बैरक में थे. लोग तो मजाक बनाते थे हमारे केस के बारे में सुनकर कि ये हो ही नहीं सकता. बाकी लोगों से अंदर सपोर्ट मिला. हमारा संघर्ष अंदर भी जारी रहा.

जेल सिस्टम में काफी रिफॉर्म्स की जरूरत है. बहुत टाइम लगेगा कि वो जो ट्रॉमा है उसे समझने के लिए. जो साथी को हम छोड़ आए हैं, हम लोग बच्चों के वार्ड में थे तो बहुत टाइम खेलने, पढ़ाने में निकल जाता था. नताशा जेल में नौकरी करती थी.

ईटीवी भारत- देवांगना आप असम से हैं, आपकी फैमिली का इस आरोप पर क्या रिएक्शन है ?

जवाब- मैं पढ़ाई को लेकर काफी टाइम से बाहर हूं. काफी सपोर्ट मिला. वहां सीएए को लेकर काफी आंदोलन चला. कुछ एक्टिविस्ट अभी भी जेल में हैं. जो वहां सपोर्ट मिला, मैं उसके लिए थैंकफुल हूं. जेल में बहुत मुश्किल दिन भी होते थे. सांस लेने की भी दिक्कत होती थी. बहुत सहारा मिला.

ईटीवी भारत- बेल मिली, स्टडी कैसे आगे बढ़ेगी.. बहुत जल्दबाजी होगा, क्या सोचा है आपने फ्यूचर को लेकर ?

जवाब- अभी तो यूनिवर्सिटी खुली नहीं है. मेरी प्रायोरिटी है कि दिसंबर तक अपना एमफील सबमिट कर सकूं. पढ़ाई और संघर्ष साथ-साथ जारी रहेगा. संघर्ष में सीखते हैं, पढ़ाई में लाते हैं. पढ़ाई की चीजें संघर्ष में लाते हैं. वीमेन जेल में सिर्फ होम साइंस ही क्यों है. हमें किताबों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट जाना पड़ा. जेल के कंप्यूटर सेंटर को खोलने की मांग की. जेल के अंदर भी कैसे पढ़ाई जारी रखें. इतने बच्चे हैं, जेल में क्या उनका ग्रोथ जरूरी नहीं है. हमारी एक और साथी गुलफिशा बच्चों को पढ़ाने लगी थी.

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ईटीवी भारत- नताशा आप फ्यूचर प्लानिंग को लेकर क्या कहेंगी ?

जवाब- प्राथमिकता पीएचडी जमा करना. मुझे तो रजिस्ट्रेशन तक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. बाकी प्लान तो अभी कुछ नहीं है, लेकिन हम लोग संघर्ष अपना जारी रहेंगे. स्टूडेंट, औरतों के हक की लड़ाई जारी रहेगी.

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