पटना : 14 अक्टूबर 2022 को रिलीज हुई आयुष्मान खुराना की फिल्म 'डॉक्टर जी' (Bollywood Film Doctor G ) जिसमें आयुष्मान खुराना ने एक पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट का किरदार निभाया है. ये फिल्म मेल गायनोकोलॉजिस्ट (पुरुष स्त्री रोग विशेषज्ञ) के स्ट्रगल को दिखाती है. जो बनना ऑर्थोपेडिक स्पेशलिस्ट बनना चाहते थे लेकिन स्त्री रोग के डॉक्टर बन जाते हैं. फिल्म हालांकि कॉमेडी जरूर है लेकिन एक बड़ा संदेश समाज को देती है. हमारा समाज सोचता है कि 'महिला की जांच सिर्फ महिला ही कर सकती है' इस सोच के खिलाफ कोई काम करता है तो उस पेशे से जुड़े लोगों को स्ट्रगल तो करना ही पड़ता है.
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डॉक्टर महिला या पुरुष नहीं होता: इसी मसले को ईटीवी भारत की टीम ने रील लाइफ से हटकर रियल लाइफ में तलाशने की कोशिश की तो हमे डॉक्टर हिमांशु राय मिले. डॉक्टर राय पिछले 25 सालों से पटना में 'स्त्री रोग' के चिकित्सक हैं. ये प्रख्यात महिला रोग विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ शांति राय के बेटे हैं. हमारी टीम ने उनसे ये जानने के कोशिश की कि पुरुष होकर महिलाओं के दर्द को किस तरह समझते हैं? उनके सामने इस पेशे से जुड़कर किस तरह की परेशानी आती है. इन सवालों को सुनकर डॉ हिमांशु राय ने बताया कि कुछ लोगों की धारणा होती है कि- ''औरतों के शरीर को औरत ही समझ सकती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. डॉक्टर महिला या पुरुष नहीं होते. वह सिर्फ डॉक्टर होते हैं. जैसे कोई रिपोर्टर रिपोर्टिंग करता है तो महिला या पुरुष नहीं देखा जाता. वह सिर्फ अपना काम करता है''.
पुरुष डॉक्टर द्वारा महिलाओं के इलाज की है गाइडलाइन: पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट होने के नाते डॉक्टर हिमांशु राय जब महिला मरीजों को एग्जामिन कर रहे होते हैं तो उस समय कुछ प्रोसीजर फॉलो करते हैं. मसलन, उनके साथ हमेशा कोई फीमेल नर्स जरूर मौजूद रहे. इसके अलावा कोई माइनर पेशेंट (नाबालिग मरीज) है, जैसे कोई 18 साल से कम उम्र की बच्ची है, तो उस समय उस पेशेंट को एग्जामिन करते समय जरूरी है कि फीमेल नर्स के साथ-साथ उस पेशेंट के साथ उसके घर की कोई महिला जैसे मां, चाची, बहन में से कोई भी मौजूद रहे.
''कई महिला मरीज के परिजन इस बात से नाराज हो जाते हैं कि जब बॉडी का लोअर पार्ट का एग्जामिन करना था तो ब्रेस्ट की जांच क्यों किया. से में हमें परिजनों को समझाना पड़ता है कि ब्रेस्ट कैंसर या ब्रेस्ट में गांठ की वजह से भी कई इंटरनल समस्या उत्पन्न होती है. जब कोई महिला मरीज आती है तो उसके साथ उनके पति जरूर होते हैं. ऐसे में जब वह काउंसलिंग करते हैं और बीमारी के बारे में बताते हैं तो दोनों की काउंसलिंग करते हैं. इससे होता यह है कि पति अपने पत्नी के स्वास्थ्य का घर में अच्छे तरीके से केयर करता है. पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट के पास इस बात का प्लस्पॉइंट रहता है कि वह महिला के पार्टनर को भी उसके स्वास्थ्य के प्रति सचेत करता है.''- डॉक्टर हिमांशु राय, एमडी, स्त्री रोग
स्त्री रोग के पुरुष डॉक्टरों को ये प्रोसीजर फॉलो करना होता है
- पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट पर भारतीय कानून में कोई पाबंदी नहीं है.
- महिला मरीज की अंदरुनी जांच के दौरान कुछ विशेष निर्देश होते हैं.
- पुरुष डॉक्टर के साथ महिला नर्स, पति या महिला रिश्तेदार का होना जरूरी होता है.
- महिला मरीज की अंदरुनी जांच के लिए मरीज की सहमति का ध्यान रखना होता है.
- पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट को नौकरी रखने के खिलाफ आए मामले को कोर्ट खारिज भी कर चुका है.
मरीज के साथ परिजनों की भी करनी पड़ती है काउंसलिंग: डॉ हिमांशु राय ने बताया कि शुरुआती दिनों में उन्हें क्लीनिक चलाने में काफी परेशानी आई. जल्दी उनके पास मरीज नहीं आते थे. लेकिन, उन्हें अपने काम से खुद को साबित करना पड़ा. उसके बाद अब प्रतिदिन 100 से 150 की संख्या में वह महिला मरीजों को देखते हैं. उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में जिन महिला मरीजों को लाभ मिला उनके माध्यम से अन्य कई मरीज उनके पास आईं. महिलाओं को आज भी अपनी निजी समस्याओं को बताने में उनके सामने झिझकतीं हैं. लेकिन, ऐसी स्थिति में वह मरीज की काउंसलिंग करते हैं. साथ में जो महिला स्टाफ मौजूद रहती हैं, उन्हें अपनी समस्या बताने को कहते हैं. धीरे-धीरे उनका झिझक टूटती है और अपनी समस्याओं को बताती हैं.
बिहार में पुरुष 'स्त्री रोग' चिकित्सक के सामने बड़ी परेशानी: डॉ हिमांशु राय ने बेहद गंभीर मुद्दे पर हमारी टीम का ध्यान खींचा. उन्होंने बताया कि पुरुष गाइनेकोलॉजिस्ट को लेकर समाज का नजरिया अलग-अलग जगह पर अलग-अलग होता है. मेल गायनोकोलॉजिस्ट बनने में पटना में थोड़ी दिक्कत है. लेकिन, यदि आप खुद को साबित कर दें तो आपके पास पेशेंट्स की यह संख्या कम नहीं होगी. बिहार में मेल गायनोकोलॉजिस्ट (पुरुष स्त्री रोग विशेषज्ञ) को ट्रेनिंग के दौरान काफी दिक्कत होती है. क्योंकि एक तो उनके पास कोई पहले से अनुभव नहीं होता और इस स्थिति में जल्दी कोई महिला मरीज, मेल गायनोकोलॉजिस्ट को लेकर सहज नहीं होती. दिल्ली और मुंबई में पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट के प्रति जो मरीज होते हैं बिहार के अपेक्षाकृत वह अधिक कंफर्टेबल महसूस करते हैं.
''मैं अहमदाबाद में गाइनेकोलॉजी में एमडी कर चुका हूं. उस दौरान वहां क्लास में महिला और पुरुष स्टूडेंट के बीच बराबर भागीदारी थी. दोनों की संख्या 50-50% थी. बिहार में आज भी गाइनेकोलॉजी में पुरुष चिकित्सक रुचि नहीं लेते हैं. यही वजह है कि बिहार में पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट की संख्या 1% से भी कम है. ढूंढने पर भी पूरे बिहार में चार से पांच पुरुष गायनोकोलॉजिस्ट नजर आएंगे''- डॉक्टर हिमांशु राय, एमडी, स्त्री रोग
डॉक्टरों में महिला पुरुष का अंतर नहीं देखें: बिहार में सीखने वाले मेल गायनोकोलॉजिस्ट की समस्या अधिक होती है. डॉ हिमांशु राय ने बताया कि उन्होंने एमबीबीएस बिहार के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज से किया लेकिन जब उन्हें गाइनेकोलॉजी में एमडी करना था तो वह अहमदाबाद गए. क्योंकि, बिहार में गाइनेकोलॉजी में पुरुषों को लेकर सहजता उतनी अधिक नहीं थी. उन्होंने बताया कि इमरजेंसी कंडीशन है और चिकित्सकों की कमी है तो परिजन भी मेल और फीमेल डॉक्टर नहीं देखते हैं. लेकिन यदि फीमेल डॉक्टर मौजूद है तो मेल डॉक्टर के पास जाना नहीं चाहते. उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि - ''जब वह बिहार में एमबीबीएस कर रहे थे उस समय उस सरकारी कॉलेज में गायनोकोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष एक पुरुष चिकित्सक थे. जब ओपीडी में उनके साथ जूनियर महिला स्टूडेंट बैठती थीं तो महिला मरीजों की संख्या बढ़ जाती थीं. लेकिन जब खुद डिपार्टमेंट के हेड ओपीडी में बैठते थे तो महिला मरीज ओपीडी खाली कर देतीं थीं.''
देश में वर्जित नहीं है पुरुषों के लिए स्त्री रोग विभाग के लिए पढ़ाई: दुनिया के कुछ देशों में गायनोकोलॉजी की पढ़ाई पुरुषों के लिए वर्जित है. लेकिन भारत में हर प्रकार की पढ़ाई महिला और पुरुष दोनों कर सकते हैं. अब यह भ्रम धीरे-धीरे टूट रहा है कि महिला मरीज महिला चिकित्सक के पास ही जाएगी. अब मरीज उन डॉक्टरों के पास अधिक जा रहे हैं जिनका एग्जामिन करने का तरीका बेहतर है. उन डॉक्टर्स के पास इलाज करवा रहे हैं जिनके पास मरीजों को ठीक करने का रिकॉर्ड शानदार है.