मेरठ: आमतौर पर हम देखते हैं कि आलू की मदद से तमाम व्यंजन तैयार किए जाते हैं. देश में आलू की नवीन प्रजातियों के लिए अलग-अलग जगहों पर शोध भी जारी है. प्रदेश के मेरठ के मोदीपुरम में CPRI प्रदेश का एकमात्र ऐसा रिसर्च सेंटर है, जहां आलू की विभिन्न प्रजातियों को अब तक विकसित किया गया है. बता दें कि सरकार श्रीअन्न को लेकर लगातार बातें कर रही है. वहीं, केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्रों पर भी अलग-अलग प्रोडक्ट्स तैयार किए जा रहे हैं.
CPRI जालंधर से जुड़े वैज्ञानिक अरविंद जायसवाल ने बताया कि आलू पर लगभग 10 तरह की कुकीज बनाई हुई हैं. इसमें मुख्य रूप से आलू ही होता है. इसमें और कोई आटा हम इस्तेमाल नहीं करते. वह बताते हैं कि जो भी उत्पाद तैयार किए हैं, यह सभी ऐसे हैं कि किसी भी तरह का आलू लेकर इन्हें बना सकते हैं. जो भी उत्पाद बनाए हैं, इनमें आलू के छिलके भी इस्तेमाल किए हैं. छिलकों को भी हटाया नहीं गया है. आलू का आटा बनाया गया है. कुछ कुकीज का तो व्रत में भी सेवन किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि कुछ तो ऐसे उत्पाद हैं, जिनमें मिलेट्स का भी कुछ प्रतिशत इस्तेमाल किया गया है.
रागी और डॉयोर मक्का के साथ आलू का केक भी
आलू की दलिया जोकि ड्राई फॉर्म में तैयार की गई है. इसे मीठा या नमकीन दोनों तरह से पकाया जा सकता है. इसे पानी या दूध में पका सकते हैं. आलू की सूजी भी तैयार की गई है. इसी तरह आलू रागी और आलू को मक्का के साथ मिलाकर केक भी बनाया गया है.
आलू की जलेबी का तो पेटेंट भी फाइल किया गया
वैज्ञानिक अरविंद बताते हैं कि सामान्य तौर पर जलेबी मैदा से बनती है या फिर ऊर्दू की दाल से बनती है. लेकिन, cpri में खास जलेबी भी बनाई गई है. यह जलेबी आलू के आटे से बनाई गई है और इनका पेटेंट भी फाइल किया गया है. वह बताते हैं ये जलेबी हम व्रत के दौरान भी खा सकते हैं और यह ग्लूटन फ्री भी है. गौरतलब है कि जितने भी प्रोडक्ट में गेहूं या जौ नहीं होता वह ग्लूटन फ्री कहे जाते हैं. जो जलेबी ईजाद की गई है, वह 4 महीने तक उपयोग के लिए सुरक्षित है. जब भी इसे खाना हो सिर्फ चासनी में इसे डुबाना है.
आलू के गुलाब जामुन हैं बेहद ही स्वादिष्ट
इसके अलावा आलू के गुलाब जामुन हैं, जोकि तैयार किए गए हैं. इनका स्वाद तो हर किसी को दीवाना बना देता है. आलू की बर्फी और आलू का हलवा भी ईजाद किया जा चुका है.
आलू का हलवा रहता है 50 दिन तक सुरक्षित
आलू का पेठा बनाया गया है. यह लगभग 50 दिन तक सुरक्षित रहता है. आलू का हलवा तैयार करने में समय भी काफी कम लगता है.
मेरठ में स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के प्रभारी डॉक्टर देवेंद्र कुमार ने बताया कि केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान का मुख्यालय शिमला में स्थापित है. वे कहते हैं कि काफी समय से वह आलू के आटे से मिलेट्स प्रोडक्ट्स मिलाकर तैयार करते हैं. उन्होंने बताया कि देश के प्रत्येक केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (CPRI) लगातार आगे बढ़ रहे हैं और जो वैज्ञानिक हैं वह ऐसे प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं जोकि आमजन के लिए दैनिक उपयोग में लाए जाते हैं.
उन्होंने बताया कि जालंधर में स्थित अनुसंधान केंद्र पर सबसे ज्यादा कार्य इस दिशा में हो रहा है. प्रधान वैज्ञानिक एसके लूथरा ने बताया कि मेरठ में हाल ही में कुछ ऐसी आलू की प्रजातियों को विकसित किया गया है, जोकि कम पानी में अच्छी उत्पादकता रखती हैं. उनमें से एक है कुफरी दक्ष, जोकि 15 से 20 प्रतिशत कम पानी में भी उत्पादन अधिक देने में सक्षम है. इसी तरह कुफरी भास्कर का विकास किया गया है, जोकि अगेती फसल में उगाने के लिए मुफीद है. अगेती फसल में जो कीड़े लगते हैं, उससे बचाने में सक्षम है.
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