ETV Bharat / bharat

जज्बे से लड़े आजादी के दीवाने, 1857 में ही हिसार को करा लिया था 'आजाद'

भारत को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं. केंद्र सरकार इसे आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है. कई कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है. हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष, उनका बलिदान और सभी बाधाओं के बावजूद अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के जज्बे के बारे में पढ़िए हिसार से कुलदीप कुमार की विशेष रिपोर्ट.

स्वतंत्रता सेनानियों का जज्बा
स्वतंत्रता सेनानियों का जज्बा
author img

By

Published : Oct 17, 2021, 5:09 AM IST

हिसार : आजाद वतन के मायने क्या हैं ये जानना है तो स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष और उनके जीवन की विपत्तियों के बारे में पढ़िए. हम आजाद भले ही 1947 में हुए लेकिन लड़ाई हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों साल लड़ी. 1857 की कितनी ही गाथाएं हैं जो बताती हैं कि भारत मां के सपूतों ने जो बलिदान दिए वो अतुल्य थे.

आज ऐसे ही कुछ क्रांतिकारियों की कहानी हम आपको सुना रहे हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों पर जितनी जगह मिली उनके कारनामे उससे कहीं बड़े थे. इतने बड़े कि 1857 में उन्होंने हिसार को आजाद करवा दिया था.

आजादी के अमर दीवाने जिन्होंने परंपरागत हथियारों से किया अंग्रेजों का मुकाबला

इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह का कहना है कि 29 मई 1857 को हिसार आजाद हो गया. लेकिन ये लड़ाई खत्म नहीं हुई थी. जितने भी अंग्रेज हिसार में थे उन्हें क्रांतिकारियों ने या तो मौत के घाट उतार दिया या जेल में डाल दिया. उनमें से एक अंग्रेज बचकर निकलने में कामयाब रहा और उसने अपने आला अफसरों को इस पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया.

परंपरागत हथियारों के सहारे बंदूकों से किया मुकाबला
डॉ. महेंद्र सिंह ने बताया कि ये लड़ाई बहादुरशाह जफर के खानदान से ताल्लुक रखने वाले आजम खान के नेतृत्व में लड़ी जा रही थी. क्रांतिकारियों के पास तलवारें और जेलियां जैसे परंपरागत हथियार थे और अंग्रेजों के पास बंदूकें. इसके अलावा अंग्रेजों के पास एक प्लस प्वाइंट ये भी था कि वो किले के अंदर थे और क्रांतिकारी बाहर. जिसका नतीजा ये हुआ कि क्रांतिकारियों के सीने छलनी कर दिये गये. इस लड़ाई में 438 क्रांतिकारी शहीद हुए. जिनमें से 235 शहीदों के शव बिखरे पड़े मिले और बाकी का पता ही नहीं चला. क्रांतिकारी लड़ाई हार गए और 123 लोगों को बंदी बना लिया गया. अंग्रेजों की बर्बरता का खेल इसके बाद शुरू हुआ. उन्होंने पकड़े गए 123 लोगों को रोड रोलर से कुचलवा दिया.

इस तरह से 30 मई 1857 से 19 अगस्त 1857 तक हिसार आजाद रहा. इस बीच दिल्ली में भी गदर को दबा दिया गया और बहादुरशाह जफर को कैद कर लिया गया. लेकिन आजादी के परवानों द्वारा जलाई ये शमा 15 अगस्त 1947 को रौशन हुई और ऐसी रौशन हुई कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जन्म लिया.

पढ़ें- महात्मा गांधी ने मदुरै में सुनी अंतरात्मा की आवाज, बदल डाली परिधान की परिभाषा

पढ़ें- 'असम के गांधी' जिन्होंने छुआछूत मिटाने को दलितों के लिए खोले थे अपने घर के द्वार

हिसार : आजाद वतन के मायने क्या हैं ये जानना है तो स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष और उनके जीवन की विपत्तियों के बारे में पढ़िए. हम आजाद भले ही 1947 में हुए लेकिन लड़ाई हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों साल लड़ी. 1857 की कितनी ही गाथाएं हैं जो बताती हैं कि भारत मां के सपूतों ने जो बलिदान दिए वो अतुल्य थे.

आज ऐसे ही कुछ क्रांतिकारियों की कहानी हम आपको सुना रहे हैं जिन्हें इतिहास के पन्नों पर जितनी जगह मिली उनके कारनामे उससे कहीं बड़े थे. इतने बड़े कि 1857 में उन्होंने हिसार को आजाद करवा दिया था.

आजादी के अमर दीवाने जिन्होंने परंपरागत हथियारों से किया अंग्रेजों का मुकाबला

इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह का कहना है कि 29 मई 1857 को हिसार आजाद हो गया. लेकिन ये लड़ाई खत्म नहीं हुई थी. जितने भी अंग्रेज हिसार में थे उन्हें क्रांतिकारियों ने या तो मौत के घाट उतार दिया या जेल में डाल दिया. उनमें से एक अंग्रेज बचकर निकलने में कामयाब रहा और उसने अपने आला अफसरों को इस पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया.

परंपरागत हथियारों के सहारे बंदूकों से किया मुकाबला
डॉ. महेंद्र सिंह ने बताया कि ये लड़ाई बहादुरशाह जफर के खानदान से ताल्लुक रखने वाले आजम खान के नेतृत्व में लड़ी जा रही थी. क्रांतिकारियों के पास तलवारें और जेलियां जैसे परंपरागत हथियार थे और अंग्रेजों के पास बंदूकें. इसके अलावा अंग्रेजों के पास एक प्लस प्वाइंट ये भी था कि वो किले के अंदर थे और क्रांतिकारी बाहर. जिसका नतीजा ये हुआ कि क्रांतिकारियों के सीने छलनी कर दिये गये. इस लड़ाई में 438 क्रांतिकारी शहीद हुए. जिनमें से 235 शहीदों के शव बिखरे पड़े मिले और बाकी का पता ही नहीं चला. क्रांतिकारी लड़ाई हार गए और 123 लोगों को बंदी बना लिया गया. अंग्रेजों की बर्बरता का खेल इसके बाद शुरू हुआ. उन्होंने पकड़े गए 123 लोगों को रोड रोलर से कुचलवा दिया.

इस तरह से 30 मई 1857 से 19 अगस्त 1857 तक हिसार आजाद रहा. इस बीच दिल्ली में भी गदर को दबा दिया गया और बहादुरशाह जफर को कैद कर लिया गया. लेकिन आजादी के परवानों द्वारा जलाई ये शमा 15 अगस्त 1947 को रौशन हुई और ऐसी रौशन हुई कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने जन्म लिया.

पढ़ें- महात्मा गांधी ने मदुरै में सुनी अंतरात्मा की आवाज, बदल डाली परिधान की परिभाषा

पढ़ें- 'असम के गांधी' जिन्होंने छुआछूत मिटाने को दलितों के लिए खोले थे अपने घर के द्वार

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.