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कानून बनने के बाद कितना मिल रहा है 'शिक्षा का अधिकार' ?

भारत सरकार के शिक्षा का अधिकार कानून तो बना दिया. उसमें कई ऐसे प्रावधान दिए जिससे देश में शिक्षा को हर बच्चे का अधिकार बनाया जा सके. लेकिन क्या कानून बनने के बावजूद बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिल रहा है. राज्यों के आंकड़े जानकर आप हकीकत खुद जान जाएंगे.

शिक्षा का अधिकार
शिक्षा का अधिकार
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Published : Jul 17, 2021, 6:59 PM IST

हैदराबाद: शिक्षा किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और देश के उन्नति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बकायदा हर देश और राज्य की तरफ से सालाना बजट रखा जाता है. भारत सरकार ने भी शिक्षा का अधिकार अधिनियम (right to education) को लागू किया. शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को अप्रैल 2010 में लागू किया गया. जिसके बाद 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए मुफ्त और जरूरी शिक्षा मौलिक अधिकार बन गया. देश भर लागू इस कानून को हर राज्य सरकार अपनाने का दावा तो करती है लेकिन सवाल है कि क्या कानून बनने के बाद भी शिक्षा का अधिकार मिल रहा है ?

RTE के तहत प्रावधान

- 6 से 14 साल तक की उम्र के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है.

-सरकारी स्कूल सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराएंगे और स्कूलों का प्रबंधन स्कूल प्रबंधन समितियों यानी एसएमसी द्वारा किया जाएगा.

- निजी स्कूल 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों के लिए नामांकित करेंगे. स्कूलों द्वारा किए गए खर्च की भरपाई सरकार करेगी.

-शारीरिक दंड देने, बच्चों के निष्कासन, जनगणना, चुनाव, आपदा प्रबंधन कार्य के अलावा शिक्षकों के गैर शिक्षण कार्य में छात्रों की तैनाती पर रोक होगी.

-गैर मान्यता प्राप्त स्कूल चलाने पर दंड का प्रावधान.

इस तरह के कई प्रावधान इस कानून में हैं जिनसे देश के हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले.

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को अप्रैल 2010 में लागू हुआ
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को अप्रैल 2010 में लागू हुआ

क्यों महत्वपूर्ण है RTE ?

शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि इसमें निशुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक और माध्यमित शिक्षा के साथ-साथ हर इलाके में एक स्कूल का प्रावधान है. इसके अंतर्गत एक स्कूल निगरानी समिति के गठन का प्रावधान है जो समुदाय के निर्वाचित प्रतिनिधियों के जरिये स्कूल की कार्यप्रणाली पर नजर रखेगी. इससे बाल मजदूरी पर भी रोक लग सकती है क्योंकि इसमें 6 से 14 साल के बच्चों के लिए जरूरी मुफ्त शिक्षा का प्रावधान है ऐसे में इस आयु वर्ग के बच्चों के बाल मजदूरी करने पर रोक लगेगी. गरीबों के लिए दूर की कौड़ी माने जाने वाले निजी स्कूलों में भी 25 फीसदी सीटें उनके लिए होंगी.

कानून बनने के बाद भी मिल पाया है शिक्षा का अधिकार?
कानून बनने के बाद भी मिल पाया है शिक्षा का अधिकार?

निजी स्कूल कर रहे हैं कानून का पालन ?

आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब छात्रों के एडमिशन का प्रावधान है. सवाल है कि क्या प्राइवेट स्कूल इस नियम का पालन कर रहे हैं? इसके लिए पहले कुछ राज्यों का उदाहरण लेते हैं...

झारखंड- प्रदेश में करीब 1500 से 2000 प्राइवेट स्कूल हैं. प्राइवेट में स्कूल में आरटीई के तहत छात्रों के एडमिशन के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में 13263, साल 2019 में 14,095 और साल 2020 में 11,766 छात्रों का एडमिशन हुआ. जो कहीं से भी आरटीई के तहत तय 25 फीसदी सीटों के आस-पास भी नहीं है.

उत्तराखंड- पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में आंकड़े और भी चिंताजनक हैं. यहां साल 2020-21 के शैक्षणिक वर्ष में 4417 निजी स्कूलों में कुल 7705 छात्रों का एडमिशन हुआ यानि औसतन हर स्कूल में दो छात्रों को भी शिक्षा के अधिकार कानून के तहत एडमिशन नहीं हुआ. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के 70 फीसदी से ज्यादा दाखिले पांच जिलों देहरादून (2030), उधम सिंह नगर (1853), नैनीताल (836), पिथौरागढ़ (648) और हरिद्वार (597) जिले में हुए. बाकी जिलों में उंगलियों पर गिनने लायक छात्रों का एडमिशन हो पाया.

ओडिशा- आंकड़ों के लिहाज से निजी स्कूलों में गरीब छात्रों के एडमिशन का सबसे बुरा हाल उड़ीसा में है. जहां साल 2020-21 में प्रदेश सरकार ने 941 छात्रों की पढ़ाई का खर्च प्राइवेट स्कूलों को दिया. उससे पहले 2019-20 में भी 941 छात्रों का एडमिशन निजी स्कूलों में हुआ. जबकि प्रदेशभर में निजी स्कूलों की संख्या 4,469 है.

क्या ठीक से लागू हो पाया 'शिक्षा का अधिकार' ?
क्या ठीक से लागू हो पाया 'शिक्षा का अधिकार' ?

निजी स्कूलों पर कब कसी जाएगी नकेल ?

सरकार ने शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में गरीब छात्रों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित रखने का नियम तो बना दिया लेकिन देश के ज्यादातर प्राइवेट स्कूल इस नियम को ठेंगे पर रखते हैं. कई राज्यों में अभिभावकों की शिकायत कोर्ट पर भी पहुंची लेकिन निजी स्कूलों का मनमाना रवैया जारी है. जिसकी गवाही देश के अलग-अलग राज्यों के आंकड़े दे रहे हैं.

आरटीई के तहत 25 फीसदी सीटों पर गरीब छात्रों के हक का दावा तो सरकार की तरफ से किया जाता है लेकिन क्या निजी स्कूल इस प्रावधान को मानते हैं. आंकड़े खुद ही इसकी गवाही देते हैं. देशभर के कुछ स्कूलों को छोड़कर सभी आरटीई के तहत इस नियम को ठेंगा दिखाते हैं. वैसे भी निजी स्कूल मनमानी फीस के लिए कुख्यात हैं. 25 फीसदी सीटें गरीब छात्रों को देने पर उनकी तिजोरियों पर फर्क पड़ना लाजमी है. सवाल है कि आखिर ऐसे निजी स्कूलों पर कब नकेल कसी जाएगी. जो मनमानी फीस वसूलने के साथ-साथ सरकार के द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए बनाए कानूनों की अनदेखी करते हैं.

निजी स्कूलों में गरीबों को मिल पाया है शिक्षा का अधिकार ?
निजी स्कूलों में गरीबों को मिल पाया है शिक्षा का अधिकार ?

RTE के तहत कितने एडमिशन हो रहे हैं ?

शिक्षा के विस्तार के लिए सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत लाने के विचार से शिक्षा का अधिकार लाया गया. लेकिन सवाल है कि क्या वो उद्देश्य पूरा हो पाया जिसके लिए ये कानून बनाया गया. शिक्षा के अधिकार के तहत सिर्फ निजी स्कूल ही नहीं आते बल्कि सरकारी स्कूलों में भी छात्रों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. ऐसे में कितने छात्रों का एडमिशन आरटीई के तहत राज्यों में हो रहा है.

बिहार- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कुल 72,663 स्कूल हैं, इनमें से 70,500 सरकारी और 2063 प्राइवेट स्कूल हैं. साल 2020-21 में शिक्षा के अधिकार के तहत प्रदेभर में 25,498 छात्रों का एडमिशन हुआ है.

महाराष्ट्र- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में महाराष्ट्र के 9,331 स्कूलों में 1,15,455 सीटों के लिए 2,91,368 आवेदन प्राप्त हुए. इनमें से करीब 40 हजार छात्रों का एडमिशन हो पाया. इसी तरह 2021-22 में 96,684 सीटों के लिए 2,22,584 आवेदन मिले. अब तक 82,129 छात्रों का सेलेक्शन हो चुका है.

कर्नाटक- 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 62 हजार से अधिक प्राथमिक और करीब 16 हजार माध्यमिक स्कूल हैं. यहां साल 2020-21 में सिर्फ 11,500 छात्रों के आवेदन आरटीई के तहत आए जबकि 6741 छात्रों का एडमिशन हुआ.

केरल- प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक कुल 14 जिलों में इस साल सरकारी और निजी मिलाकर कुल 15,892 स्कूलों में 47,38,052 छात्र हैं. प्रदेश सरकार के मुताबिक केरल में पहली से आठवीं तक के सभी एडमिशन आरटीई एक्ट के तहत ही दिए जाते हैं फिर चाहे सरकारी स्कूलों में हों या फिर प्राइवेट स्कूलों में.

इन चार राज्यों के आंकड़े शिक्षा के अधिकार के कानून की हकीकत बयां कर देते हैं. सवाल है कि शिक्षा का अधिकार कानून सिर्फ फाइलों में रहेगा ? आखिर कब शिक्षा का ये अधिकार हकीकत में देश के बच्चे-बच्चे को मिलेगा ?

कैसे पढ़ेंगे और बढ़ेंगे बच्चे ?
कैसे पढ़ेंगे और बढ़ेंगे बच्चे ?

आरटीई के प्रावधानों को दिखाया जा रहा ठेंगा

आरटीई के तहत तय किए गए कई प्रावधानों को आज भी देशभर के स्कूलों में ठेंगा दिखाया जा रहा है. छात्रों की पिटाई के मामले आज भी सामने आते रहते हैं. वहीं देशभर में कई स्कूल बिना मान्यता के धड़ल्ले से चल रहे हैं. निजी स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं और गरीब छात्रों को एडमिशन देने से किनारा कर रहे हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या सिर्फ कानून बनाना ही काफी है ? क्योंकि जब तक सख्ती से इसे देशभर में लागू नहीं किया जाता तब तक सबको शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षित बनाना बहुत मुश्किल है.

ये भी पढ़ें: SPECIAL :क्या ऐसे पूरा होगा राइट टू एजुकेशन का सपना? स्कूलों को अब तक नहीं हुआ राशि का भुगतान

हैदराबाद: शिक्षा किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और देश के उन्नति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बकायदा हर देश और राज्य की तरफ से सालाना बजट रखा जाता है. भारत सरकार ने भी शिक्षा का अधिकार अधिनियम (right to education) को लागू किया. शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को अप्रैल 2010 में लागू किया गया. जिसके बाद 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए मुफ्त और जरूरी शिक्षा मौलिक अधिकार बन गया. देश भर लागू इस कानून को हर राज्य सरकार अपनाने का दावा तो करती है लेकिन सवाल है कि क्या कानून बनने के बाद भी शिक्षा का अधिकार मिल रहा है ?

RTE के तहत प्रावधान

- 6 से 14 साल तक की उम्र के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है.

-सरकारी स्कूल सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराएंगे और स्कूलों का प्रबंधन स्कूल प्रबंधन समितियों यानी एसएमसी द्वारा किया जाएगा.

- निजी स्कूल 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों के लिए नामांकित करेंगे. स्कूलों द्वारा किए गए खर्च की भरपाई सरकार करेगी.

-शारीरिक दंड देने, बच्चों के निष्कासन, जनगणना, चुनाव, आपदा प्रबंधन कार्य के अलावा शिक्षकों के गैर शिक्षण कार्य में छात्रों की तैनाती पर रोक होगी.

-गैर मान्यता प्राप्त स्कूल चलाने पर दंड का प्रावधान.

इस तरह के कई प्रावधान इस कानून में हैं जिनसे देश के हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिले.

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को अप्रैल 2010 में लागू हुआ
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 को अप्रैल 2010 में लागू हुआ

क्यों महत्वपूर्ण है RTE ?

शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि इसमें निशुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक और माध्यमित शिक्षा के साथ-साथ हर इलाके में एक स्कूल का प्रावधान है. इसके अंतर्गत एक स्कूल निगरानी समिति के गठन का प्रावधान है जो समुदाय के निर्वाचित प्रतिनिधियों के जरिये स्कूल की कार्यप्रणाली पर नजर रखेगी. इससे बाल मजदूरी पर भी रोक लग सकती है क्योंकि इसमें 6 से 14 साल के बच्चों के लिए जरूरी मुफ्त शिक्षा का प्रावधान है ऐसे में इस आयु वर्ग के बच्चों के बाल मजदूरी करने पर रोक लगेगी. गरीबों के लिए दूर की कौड़ी माने जाने वाले निजी स्कूलों में भी 25 फीसदी सीटें उनके लिए होंगी.

कानून बनने के बाद भी मिल पाया है शिक्षा का अधिकार?
कानून बनने के बाद भी मिल पाया है शिक्षा का अधिकार?

निजी स्कूल कर रहे हैं कानून का पालन ?

आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब छात्रों के एडमिशन का प्रावधान है. सवाल है कि क्या प्राइवेट स्कूल इस नियम का पालन कर रहे हैं? इसके लिए पहले कुछ राज्यों का उदाहरण लेते हैं...

झारखंड- प्रदेश में करीब 1500 से 2000 प्राइवेट स्कूल हैं. प्राइवेट में स्कूल में आरटीई के तहत छात्रों के एडमिशन के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में 13263, साल 2019 में 14,095 और साल 2020 में 11,766 छात्रों का एडमिशन हुआ. जो कहीं से भी आरटीई के तहत तय 25 फीसदी सीटों के आस-पास भी नहीं है.

उत्तराखंड- पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में आंकड़े और भी चिंताजनक हैं. यहां साल 2020-21 के शैक्षणिक वर्ष में 4417 निजी स्कूलों में कुल 7705 छात्रों का एडमिशन हुआ यानि औसतन हर स्कूल में दो छात्रों को भी शिक्षा के अधिकार कानून के तहत एडमिशन नहीं हुआ. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के 70 फीसदी से ज्यादा दाखिले पांच जिलों देहरादून (2030), उधम सिंह नगर (1853), नैनीताल (836), पिथौरागढ़ (648) और हरिद्वार (597) जिले में हुए. बाकी जिलों में उंगलियों पर गिनने लायक छात्रों का एडमिशन हो पाया.

ओडिशा- आंकड़ों के लिहाज से निजी स्कूलों में गरीब छात्रों के एडमिशन का सबसे बुरा हाल उड़ीसा में है. जहां साल 2020-21 में प्रदेश सरकार ने 941 छात्रों की पढ़ाई का खर्च प्राइवेट स्कूलों को दिया. उससे पहले 2019-20 में भी 941 छात्रों का एडमिशन निजी स्कूलों में हुआ. जबकि प्रदेशभर में निजी स्कूलों की संख्या 4,469 है.

क्या ठीक से लागू हो पाया 'शिक्षा का अधिकार' ?
क्या ठीक से लागू हो पाया 'शिक्षा का अधिकार' ?

निजी स्कूलों पर कब कसी जाएगी नकेल ?

सरकार ने शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में गरीब छात्रों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित रखने का नियम तो बना दिया लेकिन देश के ज्यादातर प्राइवेट स्कूल इस नियम को ठेंगे पर रखते हैं. कई राज्यों में अभिभावकों की शिकायत कोर्ट पर भी पहुंची लेकिन निजी स्कूलों का मनमाना रवैया जारी है. जिसकी गवाही देश के अलग-अलग राज्यों के आंकड़े दे रहे हैं.

आरटीई के तहत 25 फीसदी सीटों पर गरीब छात्रों के हक का दावा तो सरकार की तरफ से किया जाता है लेकिन क्या निजी स्कूल इस प्रावधान को मानते हैं. आंकड़े खुद ही इसकी गवाही देते हैं. देशभर के कुछ स्कूलों को छोड़कर सभी आरटीई के तहत इस नियम को ठेंगा दिखाते हैं. वैसे भी निजी स्कूल मनमानी फीस के लिए कुख्यात हैं. 25 फीसदी सीटें गरीब छात्रों को देने पर उनकी तिजोरियों पर फर्क पड़ना लाजमी है. सवाल है कि आखिर ऐसे निजी स्कूलों पर कब नकेल कसी जाएगी. जो मनमानी फीस वसूलने के साथ-साथ सरकार के द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए बनाए कानूनों की अनदेखी करते हैं.

निजी स्कूलों में गरीबों को मिल पाया है शिक्षा का अधिकार ?
निजी स्कूलों में गरीबों को मिल पाया है शिक्षा का अधिकार ?

RTE के तहत कितने एडमिशन हो रहे हैं ?

शिक्षा के विस्तार के लिए सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत लाने के विचार से शिक्षा का अधिकार लाया गया. लेकिन सवाल है कि क्या वो उद्देश्य पूरा हो पाया जिसके लिए ये कानून बनाया गया. शिक्षा के अधिकार के तहत सिर्फ निजी स्कूल ही नहीं आते बल्कि सरकारी स्कूलों में भी छात्रों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. ऐसे में कितने छात्रों का एडमिशन आरटीई के तहत राज्यों में हो रहा है.

बिहार- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कुल 72,663 स्कूल हैं, इनमें से 70,500 सरकारी और 2063 प्राइवेट स्कूल हैं. साल 2020-21 में शिक्षा के अधिकार के तहत प्रदेभर में 25,498 छात्रों का एडमिशन हुआ है.

महाराष्ट्र- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में महाराष्ट्र के 9,331 स्कूलों में 1,15,455 सीटों के लिए 2,91,368 आवेदन प्राप्त हुए. इनमें से करीब 40 हजार छात्रों का एडमिशन हो पाया. इसी तरह 2021-22 में 96,684 सीटों के लिए 2,22,584 आवेदन मिले. अब तक 82,129 छात्रों का सेलेक्शन हो चुका है.

कर्नाटक- 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 62 हजार से अधिक प्राथमिक और करीब 16 हजार माध्यमिक स्कूल हैं. यहां साल 2020-21 में सिर्फ 11,500 छात्रों के आवेदन आरटीई के तहत आए जबकि 6741 छात्रों का एडमिशन हुआ.

केरल- प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक कुल 14 जिलों में इस साल सरकारी और निजी मिलाकर कुल 15,892 स्कूलों में 47,38,052 छात्र हैं. प्रदेश सरकार के मुताबिक केरल में पहली से आठवीं तक के सभी एडमिशन आरटीई एक्ट के तहत ही दिए जाते हैं फिर चाहे सरकारी स्कूलों में हों या फिर प्राइवेट स्कूलों में.

इन चार राज्यों के आंकड़े शिक्षा के अधिकार के कानून की हकीकत बयां कर देते हैं. सवाल है कि शिक्षा का अधिकार कानून सिर्फ फाइलों में रहेगा ? आखिर कब शिक्षा का ये अधिकार हकीकत में देश के बच्चे-बच्चे को मिलेगा ?

कैसे पढ़ेंगे और बढ़ेंगे बच्चे ?
कैसे पढ़ेंगे और बढ़ेंगे बच्चे ?

आरटीई के प्रावधानों को दिखाया जा रहा ठेंगा

आरटीई के तहत तय किए गए कई प्रावधानों को आज भी देशभर के स्कूलों में ठेंगा दिखाया जा रहा है. छात्रों की पिटाई के मामले आज भी सामने आते रहते हैं. वहीं देशभर में कई स्कूल बिना मान्यता के धड़ल्ले से चल रहे हैं. निजी स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं और गरीब छात्रों को एडमिशन देने से किनारा कर रहे हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या सिर्फ कानून बनाना ही काफी है ? क्योंकि जब तक सख्ती से इसे देशभर में लागू नहीं किया जाता तब तक सबको शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षित बनाना बहुत मुश्किल है.

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