चेन्नै : तमिलनाडु सरकार ने वाइस चांसलर की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से छीनकर अपने हाथों में ले लिया है. तमिलनाडु विधानसभा ने सोमवार को इससे जुड़े एक विधेयक को पारित कर दिया. माना जा रहा है कि इस कदम से सीएम स्टालिन ने राज्यपाल की शक्तियां कम करने की कोशिश की है.
इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री एम के. स्टालिन ने केंद्र-राज्य संबंधों से जुड़े पुंछी आयोग का हवाला दिया. पुंछी आयोग ने कुलपति की नियुक्तियों के विषय पर कहा था कि अगर शीर्ष शिक्षाविद को चुनने का प्राधिकार राज्यपाल के पास रहता है तो कार्यों और शक्तियों का टकराव होगा. उन्होंने कहा कि राज्यपाल पहले कुलपतियों का चयन करने से पहले राज्य सरकार से परामर्श करते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ऐसा नहीं किया जा रहा है. चर्चा के दौरान सीएम ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह-राज्य गुजरात में भी कुलपतियों की नियुक्ति राज्यपाल नहीं करते, बल्कि राज्य सरकार करती है. तेलंगाना और कर्नाटक सहित कई अन्य राज्यों में भी ऐसा ही है.
तमिलनाडु विधानसभा में यह विधेयक ऐसे दिन पारित किया गया, जब राज्य के राज्यपाल आर एन रवि ने उधगमंडलम में कुलपतियों के दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन कर रहे थे. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस विधेयक का विरोध किया. वोटिंग के दौरान मुख्य विपक्षी दल अन्नाद्रमुक ने कांग्रेस विधायक दल के नेता के. सेल्वापेरुन्थगई की ओर से पूर्व सीएम जे. जयललिता को लेकर की गई टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए सदन से वॉकआउट किया. दूसरे विपक्षी दल पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) ने विधेयक का समर्थन किया.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार ने भी पिछले साल दिसंबर में इसी तरह का कदम उठाया था.
बता दें तमिलनाडु में राज्यपाल आर एन रवि और सीएम स्टालिन के बीच कई मुद्दों पर खींचतान चल रही है. डीएमके सरकार उच्च शिक्षा से संबंधित कई विधेयकों को मंजूर नहीं करने के कारण राज्यपाल से नाराज हैं. राज्यपाल ने तमिलनाडु को नीट से छूट देने वाले विधेयक को मंजूरी नहीं दी थी. विधानसभा द्वारा दूसरी बार विधेयक पारित होने के बाद भी यह राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया. इस कारण अपना विरोध दर्ज कराने के लिए, द्रमुक सरकार ने तमिल नव वर्ष के दिन रवि द्वारा आयोजित 'घर पर' का बहिष्कार किया था.
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