ऋषिकेश: गंगोत्री धाम से नेपाल के पशुपतिनाथ तक जाने वाली श्रीगंगा कलश यात्रा मंगलवार को ऋषिकेश (Welcome to Sri Ganga Kalash Yatra in Rishikesh) पहुंची. इस दौरान पूर्व पालिका अध्यक्ष दीप शर्मा सहित कई श्रद्धालुओं ने कलश यात्रा का पुष्प वर्षा के साथ स्वागत किया. मौके पर गंगोत्री धाम के मुख्य रावल शिव प्रकाश महाराज से आशीर्वाद भी लिया. श्रद्धालुओं ने मां गंगा से विश्व कल्याण और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हुए हर हर गंगे, जय मां गंगे के जयकारे भी लगाए.
मंगलवार को गंगोत्री से नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर (Pashupatinath Temple) के लिए गंगाजल लेकर चली श्रीगंगा कलश यात्रा के ऋषिकेश पहुंचने पर श्रद्धालुओं ने पुष्प वर्षा कर भव्य स्वागत किया. गंगोत्री धाम के रावल शिव प्रकाश महाराज (Rawal Shiv Prakash Maharaj of Gangotri Dham) ने बताया कि गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद हर साल गंगा जल से भरा कलश उत्तरकाशी, टिहरी, ऋषिकेश, मुरादाबाद के रास्ते नेपाल पशुपतिनाथ मंदिर पहुंचाया जाता है. पूरे साल इसी जल से पशुपतिनाथ का विशेष जलाभिषेक किया जाता है. (Jalabhishek of Pashupatinath with Ganga jal)
उन्होंने बताया कि पूर्व काल से ही सनातन धर्म में यह वैदिक परंपरा चली आ रही है. श्रद्धालु गंगा जल से भरे कलश के आगे माथा झुका कर मां गंगा से मन्नत पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं. उन्होंने बताया कि विश्व कल्याण सुख समृद्धि के लिए इस कलश यात्रा का अपना एक अलग महत्व है. नेपाल और भारत की अखंडता को बरकरार रखने का भी यह एक संदेश है.
रावल शिव प्रकाश महाराज ने दावा किया कि सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह कलश विश्व का सबसे बड़ा कलश है, जो हर साल गंगोत्री धाम से गंगा जल भर के नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में पहुंचाया जा रहा है.
यात्रा ने हरिद्वार में किया विश्रामः ऋषिकेश से चलने के बाद गंगा कलश यात्रा हरिद्वार के मां मनसा देवी चरण पादुका मंदिर पहुंची. यहां निरंजनी अखाड़े के संतों और महंतों द्वारा कलश यात्रा का स्वागत किया गया. प्रोफेसर सुनील बत्रा गंगोत्री धाम के गंगा जल के कलश को अपने सिर माथे पर धारण करके लाए. गंगा मैया की जय जयकार करते हुए पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मां मनसा देवी चरण पादुका मंदिर में कलश को स्थापित किया. इसके बाद बुधवार को कलश यात्रा पूरे विधि विधान के साथ पूजन के बाद नेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के लिए रवाना होगी.
पशुपतिनाथ मंदिर: पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बागमती नदी के किनारे देवपाटन गांव में स्थित एक हिंदू मंदिर है. नेपाल के एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने से पहले यह मंदिर राष्ट्रीय देवता, भगवान पशुपतिनाथ का मुख्य निवास माना जाता था. यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में सूचीबद्ध है. पशुपतिनाथ में आस्था रखने वालों (मुख्य रूप से हिंदुओं) को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है. गैर हिंदू आगंतुकों को इसे बाहर से बागमती नदी के दूसरे किनारे से देखने की अनुमति है. यह मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है. 15वीं शताब्दी के राजा प्रताप मल्ल से शुरू हुई परंपरा है कि मंदिर में चार पुजारी (भट्ट) और एक मुख्य पुजारी (मूल-भट्ट) दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं. पशुपतिनाथ में शिवरात्रि का पर्व विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है.
इतिहास एवं किंवदंतियां: किंवदंतियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था किंतु उपलब्ध ऐतिहासिक दस्तावेज़ 13वीं शताब्दी के ही हैं. इस मंदिर की कई नकलों का भी निर्माण हुआ है जिनमें भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं. मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ. इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपतेंद्र मल्ल ने 1697 में प्रदान किया.
नेपाल महात्म्य और हिमवतखंड पर आधारित स्थानीय किंवदंती के अनुसार भगवान शिव एक बार वाराणसी के अन्य देवताओं को छोड़कर बागमती नदी के किनारे स्थित मृगस्थली चले गए, जो बागमती नदी के दूसरे किनारे पर जंगल में है. भगवान शिव वहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले गए. जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी. इस दौरान उनका सींग चार टुकड़ों में टूट गया. इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए.
केदारनाथ से जुड़ी कहानी: भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर की किंवदंती के अनुसार पांडवों को स्वर्गप्रयाण के समय भैंसे के स्वरूप में शिव के दर्शन हुए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली थी. ऐसे में उस स्थान पर स्थापित उनका स्वरूप केदारनाथ कहलाया, तथा जहां पर धरती से बाहर उनका मुख प्रकट हुआ, वह पशुपतिनाथ कहलाया.