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संयुक्त किसान मोर्चा में दो-फाड़, 21 नेताओं पर धोखा देने का आरोप, नया SKM घोषित

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Published : Jul 25, 2022, 9:25 PM IST

एस साल लगातार आंदोलन करके तीन कृषि कानूनों पर सरकार को झुकाने वाले संयुक्त किसान मोर्चा में फूट (Split in Samyukt Kisan Morcha) पड़ती दिखाई दे रही है. सोमवार को चंडीगढ़ में संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई. इसमें किसान नेता शिवकुमार कक्का, जसबीर भाटी, हरियाणा से सुखदेव सिंह आदि मौजूद रहे. प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद नेताओं ने आरोप लगाया कि एसकेएम कोऑर्डिनेशन कमेटी की सहमति के बिना कुछ नेताओं ने सरकार को खत लिखकर बातचीत की. इन नेताओं ने किसान आंदोलन में के बड़े चहरों में शामिल रहे बलबीर सिंह राजेवाल, दर्शनपाल और योगेंद्र यावद समेत कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगाया.

Samyukt Kisan Morcha Press conference in Chandigarh
Samyukt Kisan Morcha Press conference in Chandigarh

चंडीगढ़: किसान नेता शिवकुमार कक्का (Farmer leader Shivkumar Kakka) ने कहा कि जब मोदी जी लैंड बिल लेकर आये थे तब हमने 80 किसान संगठन जोड़कर एक महासंगठन बनाया था. लेकिन जब कृषि कानून आये तब हमने संयुक्त किसान मोर्चा बनाया. ये तय हुआ कि इसे राजनीतिक नहीं बनाया जाएगा. लेकिन कुछ लोग राजनीति में गए और दोबारा वापस आ रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा गैर राजनीतिक अभी भी है. कुछ लोगों ने इसे अपवित्र किया और हमारे साथ विश्वासघात किया. असली एसकेएम अभी भी गैर राजनीतिक है. इसमें कोई राजीनीतिक व्यक्ति नहीं है. हमने ऐसे राजनीति करने वाले लोगों को एसकेएम से बाहर कर दिया.

राजनीतिक लोग मोर्चा से बाहर- एसकेएम ने खुलासा किया कि कृषि कानून वापस लेने से पहले एसकेएम में शामिल करीब 20 किसान नेताओं ने सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए इन लोगों ने सरकार को अपने सुझाव दिए थे. यह सब बिना संयुक्त किसान मोर्चा की सहमति के हुआ और ये लोग सरकार के साथ लगातार संपर्क में थे. किसान नेता डालेवाल ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा में गैर राजनीतिक संगठन शामिल हैं. जो राजनीति में गए उन्हें वापस नहीं लिया जाएगा.

बिना सहमति लिखी गई सरकार को चिट्ठी- जब बार-बार हमारे वरिष्ठ नेताओं ने कॉर्डिनेशन कमेटी में सरकार को चिट्ठी लिखने का मुद्दा उठाया तो चिट्ठी लिखने की पुष्टि करते हुए योगेंद्र यादव ने 30 नवंबर को कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में बताया कि 13 सितंबर को किसान नेता बलबीर राजेवाल के फ्लैट पर एक मीटिंग बुलाई गई थी. इस मीटिंग में 21 व्यक्तियों को शामिल किया गया था और अलग-अलग स्तर पर केंद्र सरकार के साथ जारी बातचीत के बारे में 21 व्यक्तियों को अवगत कराया गया. उन्होंने यह भी बताया कि 13 सितम्बर को सरकार को चिट्ठी भेजी गई, उनके अनुसार उन्होंने चिट्ठी में कुछ आंशिक बदलाव किए थे लेकिन जब उन्होंने वे बदलाव करके चिट्ठी बलवीर सिंह राजेवाल को भेजी तो बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा कि चिट्ठी तो अब सरकार के पास भेजी जा चुकी है.

चंडीगढ़ में हुई एसकेएम की प्रेस कॉन्फ्रेंस.

'कुछ नेताओं ने किया विश्वासघात'- जब 30 नवंबर को योगेंद्र यादव ने वो चिट्ठी दिखाई तो हमारे कुछ साथियों ने सवाल उठाया कि ये बातें आपने पूरे SKM के सामने 13 सितम्बर को ही क्यों नहीं बताई? इस बात का योगेंद्र यादव कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए. 13 सितम्बर की बैठक में बुलाये गए 21 नेताओं को छांटने का कार्य एक सोची-समझी रणनीति के तहत डॉक्टर दर्शनपाल द्वारा किया गया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन तमाम नेताओं ने ऊपर किये गए कार्यों को करने से पहले SKM की बैठक में कोई मंजूरी नहीं ली और SKM व देश के किसानों को अंधेरे में रखकर आंदोलन को समाप्त करने की साजिश रची, जो देश के किसानों के साथ बड़ा विश्वासघात था.

आंदोलन 11 दिसंबर को स्थगित होने के बाद कुछ किसान नेताओं ने चुनाव लड़ा. जिसमें जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया. उनके चुनाव लड़ने के फैसले से SKM की साख पर एक बहुत गहरा धब्बा लगा. पंजाब में चुनाव लड़ने वाले किसान नेताओं में से 6 को बिना SKM की सर्वसम्मति के 3 जुलाई की SKM की बैठक में वापस ले लिया गया जिससे आम किसानों में काफी नाराजगी है. इन सभी मुद्दों को अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर मजबूती से उठाने का प्रयास किया लेकिन हमारी बातों को नजरअंदाज किया गया. इन दोनों मुद्दों पर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के 35 से अधिक संगठनों की बैठक हरियाणा के रतिया में 4 जून को और बठिंडा में 25 जून को आयोजित की गई जिसमे कई फैसले लिये गये.

  • SKM की आगामी बैठक में चिट्ठी लिखने के आरोपियों को न बुलाया जाए और चिट्ठी लिखने के मुद्दे पर चर्चा की जाए. यदि मीटिंग में उन्हें बुलाया भी जाता है तो विस्तृत चर्चा के बाद जिन लोगों पर चिट्ठी लिखने का दोष साबित हो जाये, उन्हें फिर फैसला लेते समय वोट डालने का अधिकार न दिया जाए.
  • चुनावी राजनीति में भाग लेने वाले नेताओं को आगामी बैठक में न बुलाया जाए.
  • आगामी बैठक में लखीमपुर खीरी वाले प्रकरण पर कोई बड़ा फैसला लिया जाए.

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पहले 20 जून और फिर 28 जून को एक चिट्ठी SKM की कोआर्डिनेशन कमेटी को भेजी गई. लेकिन उस कमेटी ने हमारे इन मुद्दों को अनसुना कर दिया. कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में उस कमेटी के 2 सदस्यों (जगजीत सिंह दल्लेवाल और शिव कुमार कक्काजी) ने हमारी मांगों को बार-बार प्रमुखता से उठाया लेकिन बहुमत के आधार पर उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया. यहां पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि SKM की कोआर्डिनेशन कमेटी और बड़ी बैठक में हमेशा सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाने की परंपरा थी. लेकिन अचानक से अब बहुमत के आधार पर फैसले लिए जाने लगे जो SKM की मूलभावना के खिलाफ है.

उदहारण के तौर पर उस समय जब पंजाब के कुछ किसान नेताओं ने चुनाव लड़ने का फैसला लिया तब कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि उन्हें एक पत्र लिखकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा जाए. परंतु कोर कमेटी के 1 सदस्य हनानमौला ने अगले दिन चिट्ठी लिखे जाने पर अपना ऐतराज जताया. कमेटी की बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाने के बावजूद सिर्फ 1 व्यक्ति के ऐतराज पर चिट्ठी लिखे जाने के फैसले को बदल दिया गया. फिर बड़ी बैठक में ये निर्णय लिया गया कि चुनाव लड़ने वाले सभी किसान नेताओं को एसकेएम से निलंबित कर दिया गया.

किसान नेता शिवकुमार कक्का.

हमने 3 जुलाई के बाद भी 1 सप्ताह तक हमारी चिट्ठी का जवाब आने का इंतजार किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया तो आज हम मीटिंग के बाद प्रेस के माध्यम से देश के सभी किसान भाइयों तक ये बातें पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. जब 19 नवम्बर को देश के प्रधानमंत्री ने टीवी पर आकर घोषणा की थी कि वे तीनों कृषि कानून वापस ले रहे हैं, उसके बाद सरकार को चोरी-छुपे चिट्ठी लिखने में शामिल किसान नेता जल्द से जल्द आंदोलन समाप्त करने का प्रयास करते हुए अपने-अपने संगठनों की ट्रॉलियों को वापस भेजने लगे. उन्होंने बिना सलाह मशवरा किए अपने तंबू उखाड़ना शुरू कर दिया. हमारे साथियों ने MSP के मुद्दे पर आंदोलन जारी रखने का आह्वान किया लेकिन मोर्चा की एकता को बनाये रखने के लिए बड़े भारी मन से हमें यह निर्णय लेना पड़ा कि आंदोलन स्थगित किया जाए. भविष्य में इन तमाम मुद्दों पर SKM ने मजबूती से आंदोलन करने का फैसला लिया है.

  • लखीमपुर खीरी के किसान भाइयों को न्याय दिलवाया जाए.
  • MSP गारंटी कानून बनाया जाए.
  • किसानों की पूर्ण कर्जमुक्ति और स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले के अनुसार MSP दिया जाए.
  • आंदोलन के सभी केसों को खत्म किया जाए.
  • WTO से भारत बाहर आये. आज तक किये गए सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाई जाए और वर्तमान में नए मुक्त व्यापार समझौतों पर हो रही चर्चाओं पर रोक लगाई जाए.

आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया गया कि देशभर में बीजेपी ने चुनावों से पहले किसानों की कर्जमुक्ति का वायदा किया लेकिन चुनावों के बाद कर्जमुक्ति के नाम पर किसानों के साथ भद्दा मजाक किया गया. देश में कॉर्पोरेट घरानों के लाखों करोड़ों रुपये का कर्ज NPA कर दिया गया लेकिन किसानों की कर्जमुक्ति के मुद्दे पर सरकार बार-बार वित्तीय घाटे की बात कहती है. 31 जुलाई को पंजाब के सुनाम में शहीद उधम सिंह जी के शहीदी दिवस पर विशाल पंचायत आयोजित की जाएगी. इन तमाम मुद्दों पर सख्त संज्ञान लेते हुए फैसला लिया जायेगा कि आगामी 22 अगस्त को जंतर-मंतर पर बड़ी पंचायत आयोजित की जाएगी. 23 अगस्त को SKM की अगली बैठक आयोजित की जाएगी.

SKM की मूलभावना के अनुसार SKM को गैर-राजनीतिक बनाये रखने के लिए नए नियमों का एक मसौदा आज सभी साथियों से साझा किया गया है. जिसे विस्तृत चर्चा के बाद आगामी मीटिंग में पास किया जायेगा. हम देश के सभी गैर-राजनीतिक किसान संगठनों से निवेदन करते हैं कि वो हमारे साथ आएं और किसान आंदोलन का मिलजुलकर नेतृत्व करें.

चंडीगढ़: किसान नेता शिवकुमार कक्का (Farmer leader Shivkumar Kakka) ने कहा कि जब मोदी जी लैंड बिल लेकर आये थे तब हमने 80 किसान संगठन जोड़कर एक महासंगठन बनाया था. लेकिन जब कृषि कानून आये तब हमने संयुक्त किसान मोर्चा बनाया. ये तय हुआ कि इसे राजनीतिक नहीं बनाया जाएगा. लेकिन कुछ लोग राजनीति में गए और दोबारा वापस आ रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा गैर राजनीतिक अभी भी है. कुछ लोगों ने इसे अपवित्र किया और हमारे साथ विश्वासघात किया. असली एसकेएम अभी भी गैर राजनीतिक है. इसमें कोई राजीनीतिक व्यक्ति नहीं है. हमने ऐसे राजनीति करने वाले लोगों को एसकेएम से बाहर कर दिया.

राजनीतिक लोग मोर्चा से बाहर- एसकेएम ने खुलासा किया कि कृषि कानून वापस लेने से पहले एसकेएम में शामिल करीब 20 किसान नेताओं ने सरकार को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए इन लोगों ने सरकार को अपने सुझाव दिए थे. यह सब बिना संयुक्त किसान मोर्चा की सहमति के हुआ और ये लोग सरकार के साथ लगातार संपर्क में थे. किसान नेता डालेवाल ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा में गैर राजनीतिक संगठन शामिल हैं. जो राजनीति में गए उन्हें वापस नहीं लिया जाएगा.

बिना सहमति लिखी गई सरकार को चिट्ठी- जब बार-बार हमारे वरिष्ठ नेताओं ने कॉर्डिनेशन कमेटी में सरकार को चिट्ठी लिखने का मुद्दा उठाया तो चिट्ठी लिखने की पुष्टि करते हुए योगेंद्र यादव ने 30 नवंबर को कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में बताया कि 13 सितंबर को किसान नेता बलबीर राजेवाल के फ्लैट पर एक मीटिंग बुलाई गई थी. इस मीटिंग में 21 व्यक्तियों को शामिल किया गया था और अलग-अलग स्तर पर केंद्र सरकार के साथ जारी बातचीत के बारे में 21 व्यक्तियों को अवगत कराया गया. उन्होंने यह भी बताया कि 13 सितम्बर को सरकार को चिट्ठी भेजी गई, उनके अनुसार उन्होंने चिट्ठी में कुछ आंशिक बदलाव किए थे लेकिन जब उन्होंने वे बदलाव करके चिट्ठी बलवीर सिंह राजेवाल को भेजी तो बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा कि चिट्ठी तो अब सरकार के पास भेजी जा चुकी है.

चंडीगढ़ में हुई एसकेएम की प्रेस कॉन्फ्रेंस.

'कुछ नेताओं ने किया विश्वासघात'- जब 30 नवंबर को योगेंद्र यादव ने वो चिट्ठी दिखाई तो हमारे कुछ साथियों ने सवाल उठाया कि ये बातें आपने पूरे SKM के सामने 13 सितम्बर को ही क्यों नहीं बताई? इस बात का योगेंद्र यादव कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए. 13 सितम्बर की बैठक में बुलाये गए 21 नेताओं को छांटने का कार्य एक सोची-समझी रणनीति के तहत डॉक्टर दर्शनपाल द्वारा किया गया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन तमाम नेताओं ने ऊपर किये गए कार्यों को करने से पहले SKM की बैठक में कोई मंजूरी नहीं ली और SKM व देश के किसानों को अंधेरे में रखकर आंदोलन को समाप्त करने की साजिश रची, जो देश के किसानों के साथ बड़ा विश्वासघात था.

आंदोलन 11 दिसंबर को स्थगित होने के बाद कुछ किसान नेताओं ने चुनाव लड़ा. जिसमें जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया. उनके चुनाव लड़ने के फैसले से SKM की साख पर एक बहुत गहरा धब्बा लगा. पंजाब में चुनाव लड़ने वाले किसान नेताओं में से 6 को बिना SKM की सर्वसम्मति के 3 जुलाई की SKM की बैठक में वापस ले लिया गया जिससे आम किसानों में काफी नाराजगी है. इन सभी मुद्दों को अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर मजबूती से उठाने का प्रयास किया लेकिन हमारी बातों को नजरअंदाज किया गया. इन दोनों मुद्दों पर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के 35 से अधिक संगठनों की बैठक हरियाणा के रतिया में 4 जून को और बठिंडा में 25 जून को आयोजित की गई जिसमे कई फैसले लिये गये.

  • SKM की आगामी बैठक में चिट्ठी लिखने के आरोपियों को न बुलाया जाए और चिट्ठी लिखने के मुद्दे पर चर्चा की जाए. यदि मीटिंग में उन्हें बुलाया भी जाता है तो विस्तृत चर्चा के बाद जिन लोगों पर चिट्ठी लिखने का दोष साबित हो जाये, उन्हें फिर फैसला लेते समय वोट डालने का अधिकार न दिया जाए.
  • चुनावी राजनीति में भाग लेने वाले नेताओं को आगामी बैठक में न बुलाया जाए.
  • आगामी बैठक में लखीमपुर खीरी वाले प्रकरण पर कोई बड़ा फैसला लिया जाए.

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पहले 20 जून और फिर 28 जून को एक चिट्ठी SKM की कोआर्डिनेशन कमेटी को भेजी गई. लेकिन उस कमेटी ने हमारे इन मुद्दों को अनसुना कर दिया. कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में उस कमेटी के 2 सदस्यों (जगजीत सिंह दल्लेवाल और शिव कुमार कक्काजी) ने हमारी मांगों को बार-बार प्रमुखता से उठाया लेकिन बहुमत के आधार पर उनकी बातों को अनसुना कर दिया गया. यहां पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि SKM की कोआर्डिनेशन कमेटी और बड़ी बैठक में हमेशा सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाने की परंपरा थी. लेकिन अचानक से अब बहुमत के आधार पर फैसले लिए जाने लगे जो SKM की मूलभावना के खिलाफ है.

उदहारण के तौर पर उस समय जब पंजाब के कुछ किसान नेताओं ने चुनाव लड़ने का फैसला लिया तब कोआर्डिनेशन कमेटी की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि उन्हें एक पत्र लिखकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा जाए. परंतु कोर कमेटी के 1 सदस्य हनानमौला ने अगले दिन चिट्ठी लिखे जाने पर अपना ऐतराज जताया. कमेटी की बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिए जाने के बावजूद सिर्फ 1 व्यक्ति के ऐतराज पर चिट्ठी लिखे जाने के फैसले को बदल दिया गया. फिर बड़ी बैठक में ये निर्णय लिया गया कि चुनाव लड़ने वाले सभी किसान नेताओं को एसकेएम से निलंबित कर दिया गया.

किसान नेता शिवकुमार कक्का.

हमने 3 जुलाई के बाद भी 1 सप्ताह तक हमारी चिट्ठी का जवाब आने का इंतजार किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया तो आज हम मीटिंग के बाद प्रेस के माध्यम से देश के सभी किसान भाइयों तक ये बातें पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. जब 19 नवम्बर को देश के प्रधानमंत्री ने टीवी पर आकर घोषणा की थी कि वे तीनों कृषि कानून वापस ले रहे हैं, उसके बाद सरकार को चोरी-छुपे चिट्ठी लिखने में शामिल किसान नेता जल्द से जल्द आंदोलन समाप्त करने का प्रयास करते हुए अपने-अपने संगठनों की ट्रॉलियों को वापस भेजने लगे. उन्होंने बिना सलाह मशवरा किए अपने तंबू उखाड़ना शुरू कर दिया. हमारे साथियों ने MSP के मुद्दे पर आंदोलन जारी रखने का आह्वान किया लेकिन मोर्चा की एकता को बनाये रखने के लिए बड़े भारी मन से हमें यह निर्णय लेना पड़ा कि आंदोलन स्थगित किया जाए. भविष्य में इन तमाम मुद्दों पर SKM ने मजबूती से आंदोलन करने का फैसला लिया है.

  • लखीमपुर खीरी के किसान भाइयों को न्याय दिलवाया जाए.
  • MSP गारंटी कानून बनाया जाए.
  • किसानों की पूर्ण कर्जमुक्ति और स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले के अनुसार MSP दिया जाए.
  • आंदोलन के सभी केसों को खत्म किया जाए.
  • WTO से भारत बाहर आये. आज तक किये गए सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाई जाए और वर्तमान में नए मुक्त व्यापार समझौतों पर हो रही चर्चाओं पर रोक लगाई जाए.

आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया गया कि देशभर में बीजेपी ने चुनावों से पहले किसानों की कर्जमुक्ति का वायदा किया लेकिन चुनावों के बाद कर्जमुक्ति के नाम पर किसानों के साथ भद्दा मजाक किया गया. देश में कॉर्पोरेट घरानों के लाखों करोड़ों रुपये का कर्ज NPA कर दिया गया लेकिन किसानों की कर्जमुक्ति के मुद्दे पर सरकार बार-बार वित्तीय घाटे की बात कहती है. 31 जुलाई को पंजाब के सुनाम में शहीद उधम सिंह जी के शहीदी दिवस पर विशाल पंचायत आयोजित की जाएगी. इन तमाम मुद्दों पर सख्त संज्ञान लेते हुए फैसला लिया जायेगा कि आगामी 22 अगस्त को जंतर-मंतर पर बड़ी पंचायत आयोजित की जाएगी. 23 अगस्त को SKM की अगली बैठक आयोजित की जाएगी.

SKM की मूलभावना के अनुसार SKM को गैर-राजनीतिक बनाये रखने के लिए नए नियमों का एक मसौदा आज सभी साथियों से साझा किया गया है. जिसे विस्तृत चर्चा के बाद आगामी मीटिंग में पास किया जायेगा. हम देश के सभी गैर-राजनीतिक किसान संगठनों से निवेदन करते हैं कि वो हमारे साथ आएं और किसान आंदोलन का मिलजुलकर नेतृत्व करें.

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