नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि शीघ्र और वहनीय न्याय प्राप्त करना लोगों की ‘वैध अपेक्षा’ है और राज्य के विभिन्न अंगों की जिम्मेदारी है कि वे इसे सुनिश्चित करें. राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के छह सप्ताह तक चलने वाले अखिल भारतीय कानूनी जागरूकता और जनसंपर्क अभियान की शुरुआत के मौके पर कानून मंत्री ने देश की विधि शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना भी इस अवसर पर मौजूद थे.
रिजिजू ने कहा, मैं हम सभी को याद दिलाना चाहता हूं कि शीघ्र और वहनीय न्याय लोगों की वैध अपेक्षा है तथा यह राज्य के विभिन्न अंगों की सामूहिक जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि यह सभी हितधारकों के लिए अहम है कि इस उद्देश्य के लिए वे मिलकर काम करें.
मंत्री ने कहा कि न्याय तक पहुंच को संविधान में कानूनी ढांचे के अभिन्न हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है और इसे हासिल करने एवं मूर्त रूप से देने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण एवं सरकार के विभिन्न विभागों और न्यायपालिका के बीच बेहतर समन्वय की जरूरत होगी.
उन्होंने यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जानी चाहिए कि कारोबारी विवाद को सुलझाने में मध्यस्थता पसंदीदा रास्ता बने जिससे अदालतों पर बोझ कम होगा और देश में निवेश आने के साथ ही इससे व्यापार सुगमता एवं जीवनयापन सुगमता में सुधार होगा. विधि मंत्री ने कहा, इस संबंध में स्थगन को न्यूनतम रखा जाना चाहिए और वाणिज्यिक विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थतता पसंदीदा तरीका होना चाहिए.
इससे न केवल अदालतों पर बोझ कम होगा, बल्कि भारतीय कानून प्रणाली पर विश्वास भी बढ़ेगा जिससे निवेश आकर्षित होगा. उन्होंने कहा कि कानूनी शिक्षा को मजबूत किया जाना चाहिए और इस मामले में विधि महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है. रिजिजूने कहा, आज के विधि छात्र कल के वकील और न्यायाधीश हैं.
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कानून मंत्री ने कहा कि विधि छात्रों की शिक्षा और प्रशिक्षण की गुणवत्ता कानून के राज की सफलता और उसे बनाए रखने में योगदान देती है. उन्होंने कहा कि कानूनी निरक्षरता उन लोगों के लिए बड़ी बाधा है जो कल्याणकारी कानूनों और केंद्र व राज्य की योजनाओं के तहत अपने अधिकारों को नहीं जानते.
रिजिजू ने कहा कि न्याय प्रणाली से संपर्क जटिलता की वजह से कई लोगों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. रिजिजू ने कहा, गरीब और हाशिये पर रह रहे समूह के लिए वित्तीय संसाधन, स्थानीय भाषा पर पकड़ नहीं होने पर जागरूकता की कमी, विधि सेवा उपलब्ध कराने वाले से लंबी दूरी जैसी बाधाओं की वजह से न्याय प्रणाली को समझना और उससे मार्गदर्शन प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है. इस कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायामूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर भी मौजूद थे.
(पीटीआई-भाषा)