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कृष्ण शिला से तैयार की गई है भगवान राम के बाल स्वरूप की प्रतिमा, जानिए क्या है इसकी खासियत? - Mysore sculptor Arun Yogiraj

मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज और उनकी टीम द्वारा बनाई गई मूर्ति को 22 जनवरी को अयोध्या के श्री राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए चुना गया है. मूर्ति के लिए इस्तेमाल किया गया पत्थर कृष्ण शिला है जो एचडी कोटे तालुक के गुज्जेगौदानपुरा में पाया गया था. उन्हें वह चट्टान कैसे मिली? क्या है कृष्ण शिला की खासियत? इस संबंध में मूर्तिकार अरुण योगीराज के भाई सूर्यप्रकाश ने ईटीवी भारत से जानकारी साझा की है.

Yogirajs brother Suryaprakash
प्रतिमा तैयार करते योगीराज के भाई सूर्यप्रकाश
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 16, 2024, 7:27 PM IST

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मैसूर (कर्नाटक) : मूर्तिकार अरुण योगीराज के भाई सूर्यप्रकाश ने बताया कि कृष्ण शिला एचडी कोटे तालुक में हारोहल्ली के पास गुज्जेगौदानपुरा में रामदास की कृषि भूमि में मिली जिसका उपयोग भगवान राम के बाल स्वरूप की मूर्ति बनाने के लिए किया गया है. उन्होंने बताया कि इस भूमि में श्रीनिवास नाम के व्यक्ति को खनन की इजाजत मिली थी. काम के दौरान उसे दुर्लभ कृष्ण शिला पत्थर मिले. पत्थर फरवरी 2023 में मिले थे.

उस समय अरुण योगीराज और टीम श्री राम की मूर्ति के लिए पत्थरों की तलाश कर रहे थे. जमीन के मालिक रामदास ने पत्थर मिलने की बात अरुण योगीराज के पिता को बताई. अरुण योगीराज ने तुरंत मूर्तिकार मनैया बडिगर और सुरेंद्र शर्मा को इसके बारे में बताया. जब वे उस स्थान पर आए और पत्थरों की जांच की तो उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि वे पत्थर कृष्ण शिला थे और मूर्ति बनाने के लिए उपयुक्त थे. फिर 9 फरवरी 2023 को 17 टन वजनी 5 कृष्ण शिलाएं अयोध्या भेजी गईं.

पत्थरों को राम, सीतामाता और लक्ष्मण की मूर्तियों को तराशने के लिए उपयोग में लाया गया. खदान का पट्टा लेने वाले श्रीनिवास ने ये पत्थर श्री राम मंदिर ट्रस्ट को मुफ्त में भेजे. खदान ठेकेदार श्रीनिवास ने मुफ्त में कृष्णा पत्थर दिए जाने की बात खुद ईटीवी भारत को बताई.

मूर्तिकार अरुण योगीराज के भाई सूर्यप्रकाश ने कहा, 'मुझे गर्व है कि मेरे भाई द्वारा गढ़ी गई कृष्ण शिला राम को अयोध्या में राम मंदिर के लिए चुना गया है. किसी मूर्तिकार को जीवन में ऐसा अवसर मिलना दुर्लभ है, उसे ऐसा अवसर मिला है. मुझे विशेष ख़ुशी है कि उनके हाथ से बनाई गई प्रतिमा का चयन किया गया है.

कृष्णा शिला की खासियत क्या है?: उन्होंने बताया कि कृष्ण शिला एचडी कोटे क्षेत्र में पाया जाने वाला एक पत्थर है. इसे आमतौर पर बालापाड़ा कल्लू (सोपस्टोन) कहा जाता है. यह पत्थर केवल 9X9 इंच या 1X1 फीट वर्ग के आकार में पाया जाता है. बालापाड़ा पत्थर बहुत चिकना होता है और इसे हाथ से खुरचा जा सकता है. शैली में कृष्ण शिला के जैसा है.

कृष्ण का अर्थ है नीला रंग. कृष्ण शिला अम्लरोधी, जलरोधक, अग्निरोधक तथा धूलरोधी है तथा यह पत्थर लोहे से भी अधिक मजबूत होता है. यह पत्थर किसी भी तत्व के प्रति संवेदनशील नहीं है. इसके साक्ष्य के रूप में आज हमारे पास बेलूर, हलेबिदु और सोमनाथ मंदिरों की मूर्तियां हैं. कृष्ण शिला पत्थर जमीन के अंदर 50 से 60 फीट गहराई में मिलता है. यह कृष्ण शिला एचडी कोटे तालुक के हारोहल्ली और गुज्जेगौदानपुर भागों में पाई गई. सूर्यप्रकाश ने बताया कि 'मेरे 27 साल के अनुभव के अनुसार यह पत्थर 900 नहीं बल्कि 1200 साल तक चलता है.'

सूर्यप्रकाश ने बताया कि 'इस तरह से अलग किए गए पत्थरों का उपयोग मूर्तिकला को तराशने के लिए किया जाता है. हम पांच पीढ़ियों से यह मूर्तिकला का काम कर रहे हैं. हमारे दादाजी ने म्योसरे महल के अंदर चामुंडेश्वरी, भुवनेश्वरी, राजेश्वरी और गायत्री देवी मंदिर बनाए थे. अगर लगन और निष्ठा से काम किया जाए तो सफलता निश्चित है, इसका प्रमाण मेरे भाई अरुण योगीराज हैं. किसी मूर्तिकार को जीवन में ऐसा अवसर मिलना दुर्लभ है, उसे ऐसा अवसर मिला है. मुझे बहुत गर्व महसूस होता है.'

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उस समय अरुण योगीराज और टीम श्री राम की मूर्ति के लिए पत्थरों की तलाश कर रहे थे. जमीन के मालिक रामदास ने पत्थर मिलने की बात अरुण योगीराज के पिता को बताई. अरुण योगीराज ने तुरंत मूर्तिकार मनैया बडिगर और सुरेंद्र शर्मा को इसके बारे में बताया. जब वे उस स्थान पर आए और पत्थरों की जांच की तो उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि वे पत्थर कृष्ण शिला थे और मूर्ति बनाने के लिए उपयुक्त थे. फिर 9 फरवरी 2023 को 17 टन वजनी 5 कृष्ण शिलाएं अयोध्या भेजी गईं.

पत्थरों को राम, सीतामाता और लक्ष्मण की मूर्तियों को तराशने के लिए उपयोग में लाया गया. खदान का पट्टा लेने वाले श्रीनिवास ने ये पत्थर श्री राम मंदिर ट्रस्ट को मुफ्त में भेजे. खदान ठेकेदार श्रीनिवास ने मुफ्त में कृष्णा पत्थर दिए जाने की बात खुद ईटीवी भारत को बताई.

मूर्तिकार अरुण योगीराज के भाई सूर्यप्रकाश ने कहा, 'मुझे गर्व है कि मेरे भाई द्वारा गढ़ी गई कृष्ण शिला राम को अयोध्या में राम मंदिर के लिए चुना गया है. किसी मूर्तिकार को जीवन में ऐसा अवसर मिलना दुर्लभ है, उसे ऐसा अवसर मिला है. मुझे विशेष ख़ुशी है कि उनके हाथ से बनाई गई प्रतिमा का चयन किया गया है.

कृष्णा शिला की खासियत क्या है?: उन्होंने बताया कि कृष्ण शिला एचडी कोटे क्षेत्र में पाया जाने वाला एक पत्थर है. इसे आमतौर पर बालापाड़ा कल्लू (सोपस्टोन) कहा जाता है. यह पत्थर केवल 9X9 इंच या 1X1 फीट वर्ग के आकार में पाया जाता है. बालापाड़ा पत्थर बहुत चिकना होता है और इसे हाथ से खुरचा जा सकता है. शैली में कृष्ण शिला के जैसा है.

कृष्ण का अर्थ है नीला रंग. कृष्ण शिला अम्लरोधी, जलरोधक, अग्निरोधक तथा धूलरोधी है तथा यह पत्थर लोहे से भी अधिक मजबूत होता है. यह पत्थर किसी भी तत्व के प्रति संवेदनशील नहीं है. इसके साक्ष्य के रूप में आज हमारे पास बेलूर, हलेबिदु और सोमनाथ मंदिरों की मूर्तियां हैं. कृष्ण शिला पत्थर जमीन के अंदर 50 से 60 फीट गहराई में मिलता है. यह कृष्ण शिला एचडी कोटे तालुक के हारोहल्ली और गुज्जेगौदानपुर भागों में पाई गई. सूर्यप्रकाश ने बताया कि 'मेरे 27 साल के अनुभव के अनुसार यह पत्थर 900 नहीं बल्कि 1200 साल तक चलता है.'

सूर्यप्रकाश ने बताया कि 'इस तरह से अलग किए गए पत्थरों का उपयोग मूर्तिकला को तराशने के लिए किया जाता है. हम पांच पीढ़ियों से यह मूर्तिकला का काम कर रहे हैं. हमारे दादाजी ने म्योसरे महल के अंदर चामुंडेश्वरी, भुवनेश्वरी, राजेश्वरी और गायत्री देवी मंदिर बनाए थे. अगर लगन और निष्ठा से काम किया जाए तो सफलता निश्चित है, इसका प्रमाण मेरे भाई अरुण योगीराज हैं. किसी मूर्तिकार को जीवन में ऐसा अवसर मिलना दुर्लभ है, उसे ऐसा अवसर मिला है. मुझे बहुत गर्व महसूस होता है.'

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