जयपुर. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 15 अगस्त 1998 को जब लाल किले से राष्ट्र को संबोधित किया, तो ‘जय जवान- जय किसान’ नारे में एक नया हिस्सा जोड़ दिया था. उन्होंने कहा था कि अब ‘जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान’ कहा जाना चाहिए. दरअसल, ये वही साल था जब भारत ने सफल परमाणु परीक्षण किया था. 11 और 13 मई 1998 को ये परीक्षण किए गए थे. पोकरण से वाजपेयी का रिश्ता इन 2 तारीख के साथ इतिहास में अमर हो गया. यह वह मौका था, जब उन्होंने पूरी दुनिया में साबित किया कि भारत परमाणु शक्ति संपन्न है, और शांति प्रिय भी है.
राजनीतिक शक्ति के बावजूद स्वभाव से विनम्र थे वाजपेयी : वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विजय त्रिवेदी ने कई दशकों तक दिल्ली के राजनीतिक गलियारों को कवर करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी के किरदार को काफी करीब से देखा. उन्होंने अपने निजी अनुभवों के साथ और प्रधानमंत्री वाजपेयी की शख्सियत को करीब से समझने वाले कई लोगों से बात करते हुए वाजपेई पर एक किताब भी लिखी. "हार नहीं मानूंगा" किताब के शीर्षक में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व को जाहिर किया.
राजस्थान के साथ अटल बिहारी वाजपेयी के रिश्ते को लेकर हमने विजय त्रिवेदी से बात की, तो उन्होंने बताया कि कैसे भारत के प्रधानमंत्री ने पूरी दुनिया के सामने अपनी विनम्र छवि से उलट एक शक्तिशाली राजनेता और राष्ट्र प्रमुख के रूप में खुद को पेश किया था. इस शक्ति परीक्षण के दौरान वाजपेयी ने स्पष्ट कर दिया था कि वे परमाणु बम का इस्तेमाल नहीं करेंगे, लेकिन मौजूदा दौर की जरूरत के मुताबिक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के लिए यथासंभव जरूरत को इस परीक्षण में पेश करेंगे. सवाल सिर्फ परीक्षण का ही नहीं था, विजय त्रिवेदी बताते हैं कि एटॉमिक टेस्ट के बाद जब दुनिया भर के शक्तिशाली मुल्कों ने भारत पर बंदिशें लगाना शुरू कर दी, तो ऐसे दौर में विपक्ष को साथ लेकर अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया और पूरे देश को विश्वास में दिलाया. जिसका नतीजा यह रहा कि धीरे-धीरे बाकी मुल्क भी भारत के मर्म को समझने लगे.
विजय त्रिवेदी ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी का जैसा व्यक्तित्व था, उससे अनुमान लगाना बहुत मुश्किल था कि उनके दौर में भारत क्या न्यूक्लियर टेस्ट भारत कर पाएगा ? लेकिन अटल ने देश की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए ऐसे निर्णय लेने में देर नहीं लगाई थी. उस दौरान तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नाडीज और मिसाइल मैन वैज्ञानिक डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने इस न्यूक्लियर टेस्ट में बड़ा योगदान दिया था. इस परीक्षण के बाद वाजपेयी ने कहा था कि उसके पास 1974 के अपने "शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट" को आगे बढ़ाने और 11 मई और फिर 13 मई, 1998 को अपनी परमाणु क्षमताओं को प्रदर्शित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.
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कभी हिरोशिमा पर लिखी कविता, फिर पोकरण में शक्ति परीक्षण : भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने में अटल बिहारी वाजपेयी के योगदान को नहीं भूला जा सकता है. संसद में अपने संबोधन में अटल बिहारी ने कहा भी कि ये परीक्षण सरकार ने सिर्फ अपनी प्रशंसा पाने के लिए नहीं किया है, न ही इसके जरिए भारत अपनी ताकत दिखाने की इच्छा रखता है. उनकी दलील थी कि ‘मिनिमम डेटोरेंट’ होना चाहिए और इसी के लिए ये परीक्षण किया गया है. परमाणु परीक्षण के बाद जगह जगह उस समय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सवाल किए गए कि उन्होंने "हिरोशिमा की पीड़ा" नाम की कविता लिखी है. ये कविता लिखने वाला व्यक्ति कैसे अपने परमाणु परीक्षणों को जायज ठहरा सकता है. उन्होंने साफ कहा कि हिरोशिमा की घटना से कवि के मन को पीड़ा होना स्वाभाविक है. वहां परमाणु हमला किया गया था, लेकिन भारत ने शांति के कामों के लिए परमाणु परीक्षण किए हैं. यही कारण है कि वाजपेयी का रिश्ता राजस्थान के साथ मजबूत नेता की मजबूत छवि के रूप में अमिट हो गया और आज हमारा देश दुनिया में परमाणु शक्ति संपन्न देश के साथ अग्रिम पंक्ति में खड़ा है.
पहले भी वाजपेयी ने किया था परमाणु परीक्षण का समर्थन : भारत को एक देश के तौर पर पहली बार परमाणु बम की जरूरत का एहसास, चीन के साथ हुए साल 1962 के युद्ध के बाद हुआ था. इस युद्ध में भारत को हार का मुंह देखना पड़ा था. दरअसल चीन ने अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट 1964 में ही कर लिया था, जिसके बाद संसद में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने एक बयान में कहा था कि बम का जवाब बम ही होना चाहिए. इस परमाणु परीक्षण के बाद भारत विश्व में पावरफुल देश बन गया.