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जब तक बिका ना था तो कोई पूछता न था, तुमने खरीद कर मुझे अनमोल कर दिया...मेरे सतगुरु : पद्मश्री मदन सिंह चौहान - पद्मश्री मदन सिंह चौहान

छत्तीसगढ़ संगीत के क्षेत्र में लगातार समृद्ध हो रहा है. इस कड़ी में छत्तीसगढ़ के नाम एक और उपलब्धि जुड़ गई है. संगीत के क्षेत्र में अनुकरणीय काम करने के लिए मदन सिंह चौहान (Madan Singh Chauhan Gets Padma Shri Award) ) को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. उन्होंने न सिर्फ तबले की थाप से बल्कि अपने सुरों से भी इस क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम बनाया है.

पद्मश्री मदन सिंह चौहान
पद्मश्री मदन सिंह चौहान
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Published : Nov 10, 2021, 10:28 PM IST

रायपुर : संगीत के क्षेत्र में अनुकरणीय काम करने के लिए मदन सिंह (Madan Singh Chauhan Gets Padma Shri Award) चौहान को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. चौहान ने न सिर्फ तबले की थाप से बल्कि अपने सुरों से भी इस क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है. बात चाहे फिर सुगम संगीत (Folk Music) हो या भक्ति रस के गाने या फिर सूफियाना अंदाज में उनकी खुद की प्रस्तुति की, पूरे प्रदेश में श्रोताओं ने इन्हें भरपूर सराहा है. यही वजह है कि जब पद्म पुरस्कारों की बात हुई तो इनका नाम आने के बाद कला क्षेत्र से जुड़े लोगों ने खुशी जाहिर की. ईटीवी भारत ने चौहान से खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने संगीत से जुड़े विभिन्न पहलुओं के विषय में अपनी बात बेबाकी से रखी.

सवालः संगीत से आपका रिश्ता कैसे जुड़ा, अब तक की अपनी उपलब्धियों और पद्मश्री मिलने के बाद अपने एहसास को किन शब्दों में व्यक्त करेंगे?
जवाबः बहुत खुशी हो रही है. बात संगीत से जुड़ने की हो तो यह बचपन से ही कुदरती देन है. शुरुआत में घर में रखे डिब्बों को बजाकर संगीत के क्षेत्र में मैंने कदम रखा. इसके बाद कुछ संगीत के जानकारों के साथ संगत भी की, जिसे उन्होंने काफी सराहा और मुझे संगीत की शिक्षा लेने की सलाह दी. जिसके बाद मैंने कई गुरुओं से तबले की शिक्षा ली.

ईटीवी भारत से बात करते पद्मश्री मदन सिंह चौहान

इन गुरुओं में एक काले खां उस्ताद भी शामिल हैं. उनसे मुझे काफी कुछ सीखने का अवसर मिला. इसके बाद सुगम संगीत और गजल के कई नामी गायकों के साथ में मुझे संगत करने का अवसर मिला. सौभाग्य यह भी रहा कि प्रसिद्ध कव्वाल शंकर शंभू जी के साथ आकाशवाणी में संगत करने का भी मौका मिला. कुछ गायकों के साथ तबले में संगत के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मैं भी गाना गा सकता हूं और उसके बाद मैंने खुद गायन शुरू किया. इस कार्य में निर्मला इंगले जी ने मुझे अलग पहचान दिलवाई, फिर मैंने गायन क्षेत्र में भी काम करना शुरू किया.

सवालः पद्म अवार्ड के विषय में पहले भी चर्चाएं होती रही हैं और यह बातें भी सामने आती रहीं कि आप जैसे अनुभवी लोगों को भी यह सम्मान मिलना चाहिए. क्या आपको इससे पहले कभी ऐसा लगा और दिल में किसी तरह की खलल इस बात को लेकर रही?
जवाबः हां मन में तो यह बातें आती थी, लेकिन फिर भी अब ठीक है. देर से ही सही लोगों को यह लगा कि मैं इस सम्मान के काबिल हूं. घर की वस्तुओं से गाना-बजाना शुरू किया. आर्थिक स्थिति परिवार की अच्छी नहीं थी. जीवन यापन के लिए गुरुद्वारे में तबला बजाया, फिर मोटर पार्ट्स का काम भी किया. उसके बाद छोटे-छोटे वाद्य यंत्रों से संगीत सीखना शुरू किया. हम इतने संपन्न नहीं थे कि हर वाद्य यंत्रों को खरीद सकते.

सवालः आपकी गायकी में सहजता दिखती है, एक गायक के अंदर क्या ऐसा होना चाहिए?
जवाबः गायक अगर आध्यात्मिक प्रवृत्ति का और साधक हो तो उसे सुनने में मजा आता है. परिस्थितियां भी हमें सबक देने के लिए आती हैं, यह बात अब समझ में आ रही हैं.

सवालः इस अवसर पर आप आज कौन सा गीत गाना पसंद करेंगे?
जवाबः कुछ समय के बाद मैं खुद का लिखा हुआ गाना गाता था. अपनी खुद की पहचान के लिए और कुछ नया करने के लिए. धीरे-धीरे कुछ सालों में लोगों को लगा कि ये संगीत का सूफी रंग है और लोगों ने इसे काफी पसंद भी किया. संगीत गूंगे को गुड़ खिलाने जैसा है, जो स्वाद तो ले सकता है मगर बता नहीं सकता.

सवालः सूफी गायिकी को माना जाता था कि उर्दू जानने वाले ही इसे ज्यादा गाते थे, लेकिन आज की स्थिति में इसका दायरा अलग हो गया है. इस गायिकी में आपका अंदाज भी अलग है, कुछ सूफियाना सुना दीजिए.
जवाबः जब तक बिका ना था तो कोई पूछता न था... तुमने खरीद कर मुझे अनमोल कर दिया, मेरे सतगुरु....

सवालः छत्तीसगढ़ी लोकगीत को और समृद्ध बनाने की दिशा में आप कुछ सोच रहे हैं क्या?
जवाबः हमारा लोकगीत बहुत धनी है. इसके अंदर अपने आप राग निकलते हैं. जानकार उन्हीं धुनों को सुनकर रागों की उत्पत्ति करते हैं. छत्तीसगढ़ लोक गीतों में समय के साथ बदलाव आया है. मगर इसमें और रिसर्च करने की जरूरत है और इसमें मेरा पूरा योगदान रहेगा.

सवालः अगर छत्तीसगढ़ी फिल्मों में संगीत की बात करें तो क्या आपको लगता है कि और कसावट की जरूरत है?
जवाबः उनकी गलती नहीं है. फिल्में कमर्शियल सोच के साथ बनाई जाती है, मगर इसमें कुछ अच्छे गाने भी निकल कर आ रहे हैं.

सवालः बच्चों को संगीत के क्षेत्र में मंच दिलाना और उन्हें रातोंरात स्टार बना देना, क्या इसे आप उचित मानते हैं?
जवाबः अभी विश्व की चाल बढ़ गई है. इसी गति में हर कोई चलना चाहता है, मगर एक छोटे पौधे से आप फल लेने की कोशिश करते हैं तो यह उचित नहीं है. लोगों के पास अभी संगीत सुनने का भी समय सीमित हो गया है.

सवालः सोशल मीडिया के माध्यम से जो बच्चे अभी काफी वायरल हो रहे हैं, क्या लगता है संगीत की दिशा में वे सर्वाइवल हैं?
जवाबः एक-दो गाने में फेमस हो सकते हैं, मगर संगीत में जल्दबाजी ठीक नहीं होती और जल्दबाजी में सरवाइव भी करना कठिन होता है. हां, कुछ एक प्लेटफार्म है जहां पर बच्चों को गुरुओं से प्रशिक्षित करवाया जा रहा है और उसके बाद मंच दिया जा रहा है, यह अच्छा प्रयास है.

सवालः आपको जो सम्मान मिला है और इसमें जिनकी भी भूमिका रही है, उनके लिए क्या कहेंगे?
जवाबः मैं शुक्रगुजार हूं. उन सभी का, जिन्होंने इसमें अपनी भूमिका निभाई है. उन्होंने मुझे इस काबिल समझा, इसके लिए धन्यवाद देता हूं. हालांकि मैं पहले भी खुश था, क्योंकि मुझे जो सम्मान मेरे श्रोताओं से मिलता था. वह भी मेरे लिए काफी अहम रहता था.

रायपुर : संगीत के क्षेत्र में अनुकरणीय काम करने के लिए मदन सिंह (Madan Singh Chauhan Gets Padma Shri Award) चौहान को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. चौहान ने न सिर्फ तबले की थाप से बल्कि अपने सुरों से भी इस क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है. बात चाहे फिर सुगम संगीत (Folk Music) हो या भक्ति रस के गाने या फिर सूफियाना अंदाज में उनकी खुद की प्रस्तुति की, पूरे प्रदेश में श्रोताओं ने इन्हें भरपूर सराहा है. यही वजह है कि जब पद्म पुरस्कारों की बात हुई तो इनका नाम आने के बाद कला क्षेत्र से जुड़े लोगों ने खुशी जाहिर की. ईटीवी भारत ने चौहान से खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने संगीत से जुड़े विभिन्न पहलुओं के विषय में अपनी बात बेबाकी से रखी.

सवालः संगीत से आपका रिश्ता कैसे जुड़ा, अब तक की अपनी उपलब्धियों और पद्मश्री मिलने के बाद अपने एहसास को किन शब्दों में व्यक्त करेंगे?
जवाबः बहुत खुशी हो रही है. बात संगीत से जुड़ने की हो तो यह बचपन से ही कुदरती देन है. शुरुआत में घर में रखे डिब्बों को बजाकर संगीत के क्षेत्र में मैंने कदम रखा. इसके बाद कुछ संगीत के जानकारों के साथ संगत भी की, जिसे उन्होंने काफी सराहा और मुझे संगीत की शिक्षा लेने की सलाह दी. जिसके बाद मैंने कई गुरुओं से तबले की शिक्षा ली.

ईटीवी भारत से बात करते पद्मश्री मदन सिंह चौहान

इन गुरुओं में एक काले खां उस्ताद भी शामिल हैं. उनसे मुझे काफी कुछ सीखने का अवसर मिला. इसके बाद सुगम संगीत और गजल के कई नामी गायकों के साथ में मुझे संगत करने का अवसर मिला. सौभाग्य यह भी रहा कि प्रसिद्ध कव्वाल शंकर शंभू जी के साथ आकाशवाणी में संगत करने का भी मौका मिला. कुछ गायकों के साथ तबले में संगत के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मैं भी गाना गा सकता हूं और उसके बाद मैंने खुद गायन शुरू किया. इस कार्य में निर्मला इंगले जी ने मुझे अलग पहचान दिलवाई, फिर मैंने गायन क्षेत्र में भी काम करना शुरू किया.

सवालः पद्म अवार्ड के विषय में पहले भी चर्चाएं होती रही हैं और यह बातें भी सामने आती रहीं कि आप जैसे अनुभवी लोगों को भी यह सम्मान मिलना चाहिए. क्या आपको इससे पहले कभी ऐसा लगा और दिल में किसी तरह की खलल इस बात को लेकर रही?
जवाबः हां मन में तो यह बातें आती थी, लेकिन फिर भी अब ठीक है. देर से ही सही लोगों को यह लगा कि मैं इस सम्मान के काबिल हूं. घर की वस्तुओं से गाना-बजाना शुरू किया. आर्थिक स्थिति परिवार की अच्छी नहीं थी. जीवन यापन के लिए गुरुद्वारे में तबला बजाया, फिर मोटर पार्ट्स का काम भी किया. उसके बाद छोटे-छोटे वाद्य यंत्रों से संगीत सीखना शुरू किया. हम इतने संपन्न नहीं थे कि हर वाद्य यंत्रों को खरीद सकते.

सवालः आपकी गायकी में सहजता दिखती है, एक गायक के अंदर क्या ऐसा होना चाहिए?
जवाबः गायक अगर आध्यात्मिक प्रवृत्ति का और साधक हो तो उसे सुनने में मजा आता है. परिस्थितियां भी हमें सबक देने के लिए आती हैं, यह बात अब समझ में आ रही हैं.

सवालः इस अवसर पर आप आज कौन सा गीत गाना पसंद करेंगे?
जवाबः कुछ समय के बाद मैं खुद का लिखा हुआ गाना गाता था. अपनी खुद की पहचान के लिए और कुछ नया करने के लिए. धीरे-धीरे कुछ सालों में लोगों को लगा कि ये संगीत का सूफी रंग है और लोगों ने इसे काफी पसंद भी किया. संगीत गूंगे को गुड़ खिलाने जैसा है, जो स्वाद तो ले सकता है मगर बता नहीं सकता.

सवालः सूफी गायिकी को माना जाता था कि उर्दू जानने वाले ही इसे ज्यादा गाते थे, लेकिन आज की स्थिति में इसका दायरा अलग हो गया है. इस गायिकी में आपका अंदाज भी अलग है, कुछ सूफियाना सुना दीजिए.
जवाबः जब तक बिका ना था तो कोई पूछता न था... तुमने खरीद कर मुझे अनमोल कर दिया, मेरे सतगुरु....

सवालः छत्तीसगढ़ी लोकगीत को और समृद्ध बनाने की दिशा में आप कुछ सोच रहे हैं क्या?
जवाबः हमारा लोकगीत बहुत धनी है. इसके अंदर अपने आप राग निकलते हैं. जानकार उन्हीं धुनों को सुनकर रागों की उत्पत्ति करते हैं. छत्तीसगढ़ लोक गीतों में समय के साथ बदलाव आया है. मगर इसमें और रिसर्च करने की जरूरत है और इसमें मेरा पूरा योगदान रहेगा.

सवालः अगर छत्तीसगढ़ी फिल्मों में संगीत की बात करें तो क्या आपको लगता है कि और कसावट की जरूरत है?
जवाबः उनकी गलती नहीं है. फिल्में कमर्शियल सोच के साथ बनाई जाती है, मगर इसमें कुछ अच्छे गाने भी निकल कर आ रहे हैं.

सवालः बच्चों को संगीत के क्षेत्र में मंच दिलाना और उन्हें रातोंरात स्टार बना देना, क्या इसे आप उचित मानते हैं?
जवाबः अभी विश्व की चाल बढ़ गई है. इसी गति में हर कोई चलना चाहता है, मगर एक छोटे पौधे से आप फल लेने की कोशिश करते हैं तो यह उचित नहीं है. लोगों के पास अभी संगीत सुनने का भी समय सीमित हो गया है.

सवालः सोशल मीडिया के माध्यम से जो बच्चे अभी काफी वायरल हो रहे हैं, क्या लगता है संगीत की दिशा में वे सर्वाइवल हैं?
जवाबः एक-दो गाने में फेमस हो सकते हैं, मगर संगीत में जल्दबाजी ठीक नहीं होती और जल्दबाजी में सरवाइव भी करना कठिन होता है. हां, कुछ एक प्लेटफार्म है जहां पर बच्चों को गुरुओं से प्रशिक्षित करवाया जा रहा है और उसके बाद मंच दिया जा रहा है, यह अच्छा प्रयास है.

सवालः आपको जो सम्मान मिला है और इसमें जिनकी भी भूमिका रही है, उनके लिए क्या कहेंगे?
जवाबः मैं शुक्रगुजार हूं. उन सभी का, जिन्होंने इसमें अपनी भूमिका निभाई है. उन्होंने मुझे इस काबिल समझा, इसके लिए धन्यवाद देता हूं. हालांकि मैं पहले भी खुश था, क्योंकि मुझे जो सम्मान मेरे श्रोताओं से मिलता था. वह भी मेरे लिए काफी अहम रहता था.

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