हैदराबाद : रेपो रेट में बढ़ोतरी के साथ ही लोन इंटरेस्ट रेट भी बढ़ गया है. जिस तरह से महंगाई बढ़ी है, उससे लोन इंटरेस्ट रेट का बढ़ना भी तय माना जा रहा था. यानी जिन लोगों ने बैंकों से लोन ले रखा है, उन्हें ज्यादा ब्याज चुकाना होगा. इससे लोगों की जेब पर असर पड़ना भी तय है. एक्सपर्ट मानते हैं कि ज्यादा से ज्यादा बचत और बेहतर निवेश से इस बोझ को संभाला जा सकता है.
ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव फिक्स डिपोजिट करने वालों के लिए वरदान साबित हो सकता है, लेकिन इसका उल्टा असर उन लोगों पर पड़ेगा जिन्होंने लोन ले रखा है और हर महीने ईएमआई चुका रहे हैं. रोजमर्रा की जिंदगी में महंगाई और अन्य खर्चों में बढ़ोतरी इस चिंता को और बढ़ा रही है. जब बैंक ब्याज दर बढ़ाएंगे तो लोन की ईएमआई बढ़ेगी. अगर महंगाई पर लगाम नहीं लगाई गई तो आने वाले दिनों में रेपो रेट में और बढ़ोतरी हो सकती हैं.
खर्चों पर लगाम (Curbing expenses) : ब्याज दरों में बढ़ोतरी का असर ईएमआई पर पड़ेगा. इसलिए, लोन चुकाने के लिए अपनी मंथली इनकम का एक हिस्सा बचाकर रखना होगा. अनावश्यक खर्च में कटौती करनी चाहिए और जरूरतों पर एक-एक रुपया खर्च करने से पहले सौ बार सोचना चाहिए. इसके बाद अगर आप सौ रुपये भी बचा लेते हैं तो इसका उपयोग ईएमआई भुगतान में करें.
आंशिक भुगतान (Partial repayment) : इंटरेस्ट रेट बढ़ने के बाद आमतौर पर बैंक ईएमआई बढ़ाने के बजाय लोन की अवधि बढ़ा देते हैं, इसलिए, यह तत्काल मंथली बजट को प्रभावित नहीं करेगा. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि समयावधि बढ़ने के बाद ब्याज का बोझ उसी अनुपात में बढ़ेगा. इसलिए अगर आपके पास बचत की गुंजाइश है तो आप बैंकों से ईएमआई बढ़ाने के लिए कह सकते हैं. लोन चुकाने की समयावधि बढ़ाने से बेहतर है कि ब्याज का बोझ कम करने के लिए हर साल अतिरिक्त ईएमआई जमा करें. इस एक्स्ट्रा मनी जमा करने के लिए आप ऐसा बोनस, टैक्स रिफंड, या बचत पैसे का उपयोग कर सकते हैं. इस तरह आप अपना लोन जल्द से जल्द पूरा कर पाएंगे.
लोन ट्रांसफर ( Loan transfer) : यदि ईएमआई आपकी भुगतान क्षमता से अधिक हो रही है, तो आप बैंक से अपने लोन को नए सिरे से स्ट्रक्चर करने के लिए कह सकते है. इसके बाद आपको एक नया और किफायती ईएमआई विकल्प देगा. अन्यथा, आपको एक ऐसा बैंक चुनना होगा जो कम ब्याज दरों पर लोन देता है. आप उस लोन को ट्रांसफकर करने के बाद लोन काका बोझ काफी कम कर सकते हैं.
समझदारी भरा निवेश (Strategic investment) : अगर आपको अंदाजा हो गया है कि भविष्य में ब्याज दरें बढ़ेंगी, तो आप बढ़े ईएमआई को चुकाने के लिए तत्काल एक निर्धारिश राशि का निवेश शुरू कर दें. उदाहरण के लिए, मान लें कि आपके मॉरगेज पर 6.5 प्रतिशत की ब्याज दर है. यह मानते हुए कि यह जल्द ही 6.9 प्रतिशत तक पहुंच जाता है, उस अतिरिक्त 0.4 प्रतिशत राशि को जुटाने के लिए एक निश्चित रकम का निवेश शॉर्ट टर्म डेट फंडों में करें. जब ब्याज दर बढ़ेगा तो इससे होने वाली इनकम से उसकी भरपाई करें. इस निवेश का उपयोग अन्य प्रमुख खर्चों के लिए किया जा सकता है.
हाई इंटरेस्ट लोन ( High-interest loans) : यदि एक से अधिक लोन हैं, तो सावधानीपूर्वक योजना बनानी होगी. अपने लोन का भुगतान करने के लिए रणनीति तैयार करें और विशेष रूप से हाई इंटरेस्ट वाले लोन को जल्दी से निपटाने की प्लानिंग करें. मान लीजिए आपके पास क्रेडिट कार्ड लोन, ऑटो लोन और होम लोन है. इन तीनों में क्रेडिट कार्ड लोन ज्यादा ब्याज चार्ज करता है. अगर आप इसका भुगतान नहीं करते हैं तो ब्याज में ही आपका पैसा लुट जाएगा. इसलिए लॉन्ग टर्म के लिए ऐसे लोन को जारी रखना जरूरी नहीं है. किसी कारणवश आप किस्त जमा नहीं कर पाते हैं तो पेनाल्टी आप पर और महंगी पड़ जाएगी.
फिनोलॉजी वेंचर्स के सीईओ प्रांजल कामरा का कहना है कि आजकल इमरजेंसी फंड एक विकल्प से अधिक आवश्यकता बन गई है. कम से कम तीन से छह महीने के लिए ईएमआई सहित अपने सभी खर्चों को कवर करने के लिए पैसे अलग रखना बहुत महत्वपूर्ण है और इसे लिक्विड फंड में जमा किया जा सकता है. इसके साथ ही आपको अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग को जारी रखने की जरूरत है. याद रखें, बेहतरीन फाइनेंशियल मैनेजमेंट, हेल्थ इंश्योरेंस और अनुशासित निवेश ही आपको किसी भी प्रकार की मुसीबत से बचाएंगे.
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