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चैत्र नवरात्रि विशेष: नील पर्वत पर बैठकर माता करती हैं हरिद्वार की रक्षा, शांत एवं उग्र रूप में हैं विराजमान - हरिद्वार चंडी मंदिर तक रोपवे

हरिद्वार में शिवालिक पर्वत माला पर मां चंडी देवी का पौराणिक मंदिर हैं. यहां मां चंडी के दो रूप देखने को मिलते हैं. एक रूप मां का रौद्र रूप में हैं, जो खंभ के रूप में विराजमान हैं. जबकि, दूसरा मूर्ति के रूप में विराजमान हैं. यहां पर मां चंडिका ने शुंभ और निशुंभ राक्षसों का वध किया था. जानिए मां चंडी की महिमा...

Haridwar chandi devi
मां चंडी देवी के दर्शन
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Published : Apr 6, 2022, 10:59 AM IST

Updated : Apr 6, 2022, 11:38 AM IST

हरिद्वार: आज चैत्र नवरात्रि 2022 का पांचवां दिन है. नवरात्रि के पांचवें दिन मां के पंचम स्वरूप माता स्कंदमाता की पूजा अर्चना की जाती है. इस मौके पर ईटीवी भारत, आपको मां चंडी देवी मंदिर में माता के उग्र व शांत रूप के दर्शन रूप में कराने जा रहा है. चंडी देवी मंदिर यह मंदिर हरिद्वार में स्थित है. कहा जाता हैं कि यह इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां मां चंडी खंभ(स्तंभ) के रूप में स्वयं प्रकट हुई थी. यह मां का रूद्र रूप है. जबकि, इसके बगल में ही मां का शांत स्वरूप मूर्ति के रूप में स्थापित है.

हरिद्वार में स्थित चंडी देवी का यह प्राचीन मंदिर हिंदुओं की आस्था का एक प्रमुख स्थल है. यह मंदिर हिमालय की सबसे दक्षिणी पर्वत श्रृंखला शिवालिक पहाड़ियों के पूर्वी शिखर में नील पर्वत के ऊपर स्थित है. हरिद्वार के पंच तीर्थ में से यह भी एक तीर्थ स्थल है. यह मंदिर पूरी दुनिया में एक सिद्ध पीठ के रूप में पूजनीय है. माना जाता है कि यहां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. इसलिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर देवी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते हैं. मां चंडी देवी मंदिर, हरिद्वार में स्थित तीन पीठों में से एक है. वहीं अन्य दो पीठ मनसा देवी मंदिर और माया देवी मंदिर हैं.

चंडी देवी मंदिर का इतिहास कई सौ साल पुराना बताया जाता है. मंदिर में मौजूद मूर्ति, 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी. शंकराचार्य हिंदू धर्म के सबसे महान पुजारियों में से एक थे. मंदिर को नील पर्वत के तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है, जो हरिद्वार के पांच तीर्थों में से एक है.

यह है पौराणिक कथा: देवी चंडी को चंडिका के रूप में भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीनकाल में शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों ने स्वर्ग के देवता इंद्र के राज्य पर कब्जा कर लिया था और देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था. इसके बाद देवताओं की प्रार्थना के बाद माता पार्वती ने राक्षसों के संहार के लिए चंडी रूप धारण किया. इसपर शुंभ ने उनसे विवाह करने की इच्छा जताई जिससे इनकार किए जाने पर शुंभ ने अपने राक्षस प्रमुख चंड और मुंड को उनको मारने के लिए भेजा, लेकिन वे देवी चामुंडा के हाथों मारे गए. फिर शुंभ और निशुंभ ने मिलकर देवी चंडिका को मारने की आए, लेकिन देवी ने दोनों राक्षस का संहार कर दिया.

मां त्रिशूल के रूप में हैं विराजमान: इसके बाद माता चंडिका ने नील पर्वत के ऊपर थोड़ी देर आराम किया था और इसके बाद से मां शांत रूप में यहीं विराजमान हो गईं. ऐसा माना जाता है कि बाद में इसी स्थान पर एक मंदिर बनाया गया. इसके अलावा पर्वत श्रृंखला में स्थित दो चोटियों को शुंभ और निशुंभ कहा जाता है. हरिद्वार में माता मनसा देवी, माता माया देवी और त्रिशूल के रूप में मां चंडी देवी, हरिद्वार की रक्षा करती आ रही हैं. दरअसल, त्रिशूल की मान्यता ये है कि तीनों देवियां पर्वत पर विराजमान हैं.

चंडी देवी मंदिर हरिद्वार

चंडी चौदस का है विशेष महत्व: वैसे तो मां चंडी के दरबार में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि से लेकर चंडी चौदस तक यहां पर विशेष पूजा का आयोजन होता है. माना जाता है कि नवरात्रि में जहां मां के तमाम स्वरूप मंदिर में विराजमान रहते हैं. वहीं यह भी मान्यता है कि, चंडी चौदस के दिन पृथ्वी पर मौजूद तमाम देवी देवता अपनी बहन चंडी से मिलने यहां पधारते हैं.

चंडी देवी को काली देवी की तरह माना जाता है और प्रायः इनके उग्र रूप की पूजा की जाती है. अश्विन और चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि में चंडी पूजा को विशेष समारोह के साथ मनाया जाता है. पूजा के लिए ब्राह्मणों द्वारा मंदिर के मध्य स्थान को गोबर और मिट्टी से लीप कर मिट्टी के एक कलश की स्थापना की जाती है. चंडी देवी मंदिर के पास हनुमानजी की माता अंजनी का भी मंदिर स्थित है. इस मंदिर में आने वाले भक्त माता अंजनी के मंदिर में जरूर जाते हैं.

माना जाता है कि मनसा देवी और चंडी देवी, माता पार्वती के ही दो रूप हैं और हमेशा एक दूसरे के करीब रहती हैं. माता मनसा देवी का मंदिर बिल्व पर्वत पर गंगा नदी के विपरीत तट पर दूसरी ओर है. माता चंडी देवी का मंदिर मन्नतें पूरी करने के लिए जाना जाता है. यही कारण है कि इस मंदिर में भारी भीड़ जुटती है.

चंडी देवी मंदिर में दर्शन का समय: चंडी देवी के इस मंदिर का संचालन महंतों द्वारा किया जाता है, जो मंदिर के पीठासीन हैं. यह मंदिर सुबह पांच बजे के बाद खुलता है और रात में 8 बजे बंद होता है. मंदिर खुलने के बाद यहां सबसे पहले सुबह साढ़े पांच बजे माता चंडी की आरती की जाती है. सुबह की आरती के बाद दिन भर पूजा पाठ और दर्शन चलता रहता है.

श्रद्धालुओं की है ये आस्था: इस मंदिर के प्रति जितनी आस्था और श्रद्धा बाहर से आने वाले लोगों में हैं, उतनी ही आस्था स्थानीय लोग भी रखते हैं. पंचपुरी से ऐसे काफी लोग हैं, जो रोजाना मां चंडी के दर्शन करने आते हैं. कनखल निवासी अनिल कुमार का कहना है कि मां के इस स्थान पर उनकी अपार आस्था व श्रद्धा है. करीब चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर वे माता के दर पर शीश नवाने आते हैं.

चंडी देवी मंदिर तक रोपवे की व्यवस्था: कुछ साल पहले तक मां के इस प्राचीन मंदिर तक जाने के लिए यात्री को करीब साढे़ 4 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती थी, लेकिन अब रोपवे की व्यवस्था के बाद जो यात्री पैदल नहीं जाना चाहते, वे रोपवे में अपनी यात्रा को संपन्न कर सकते हैं. रोपवे के लिए टिकट नीचे से ही मिल जाता है.

ये भी पढ़ें-पाकिस्तान के बाद MP के इस शहर में विराजमान हैं हिंगलाज माता, जानिए क्या है मंदिर की विशेषता

कैसे पहुंचे मां के दरबार: चंडी देवी मंदिर हरिद्वार से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यदि आप बस या ट्रेन से आना चाहते हैं तो बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से ऑटो या ई रिक्शा मिल जाती है. यदि आप अपनी गाड़ी से बिजनौर की तरफ से आते हैं तो श्यामपुर क्षेत्र में ही मां चंडी का मंदिर स्थित है, लेकिन यदि आप ऋषिकेश-देहरादून या फिर दिल्ली की तरफ से आते हैं तो हरिद्वार पहुंचकर आप चंडी घाट पुल होते हुए मां के मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं.

हरिद्वार: आज चैत्र नवरात्रि 2022 का पांचवां दिन है. नवरात्रि के पांचवें दिन मां के पंचम स्वरूप माता स्कंदमाता की पूजा अर्चना की जाती है. इस मौके पर ईटीवी भारत, आपको मां चंडी देवी मंदिर में माता के उग्र व शांत रूप के दर्शन रूप में कराने जा रहा है. चंडी देवी मंदिर यह मंदिर हरिद्वार में स्थित है. कहा जाता हैं कि यह इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां मां चंडी खंभ(स्तंभ) के रूप में स्वयं प्रकट हुई थी. यह मां का रूद्र रूप है. जबकि, इसके बगल में ही मां का शांत स्वरूप मूर्ति के रूप में स्थापित है.

हरिद्वार में स्थित चंडी देवी का यह प्राचीन मंदिर हिंदुओं की आस्था का एक प्रमुख स्थल है. यह मंदिर हिमालय की सबसे दक्षिणी पर्वत श्रृंखला शिवालिक पहाड़ियों के पूर्वी शिखर में नील पर्वत के ऊपर स्थित है. हरिद्वार के पंच तीर्थ में से यह भी एक तीर्थ स्थल है. यह मंदिर पूरी दुनिया में एक सिद्ध पीठ के रूप में पूजनीय है. माना जाता है कि यहां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. इसलिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर देवी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते हैं. मां चंडी देवी मंदिर, हरिद्वार में स्थित तीन पीठों में से एक है. वहीं अन्य दो पीठ मनसा देवी मंदिर और माया देवी मंदिर हैं.

चंडी देवी मंदिर का इतिहास कई सौ साल पुराना बताया जाता है. मंदिर में मौजूद मूर्ति, 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी. शंकराचार्य हिंदू धर्म के सबसे महान पुजारियों में से एक थे. मंदिर को नील पर्वत के तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है, जो हरिद्वार के पांच तीर्थों में से एक है.

यह है पौराणिक कथा: देवी चंडी को चंडिका के रूप में भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीनकाल में शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों ने स्वर्ग के देवता इंद्र के राज्य पर कब्जा कर लिया था और देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था. इसके बाद देवताओं की प्रार्थना के बाद माता पार्वती ने राक्षसों के संहार के लिए चंडी रूप धारण किया. इसपर शुंभ ने उनसे विवाह करने की इच्छा जताई जिससे इनकार किए जाने पर शुंभ ने अपने राक्षस प्रमुख चंड और मुंड को उनको मारने के लिए भेजा, लेकिन वे देवी चामुंडा के हाथों मारे गए. फिर शुंभ और निशुंभ ने मिलकर देवी चंडिका को मारने की आए, लेकिन देवी ने दोनों राक्षस का संहार कर दिया.

मां त्रिशूल के रूप में हैं विराजमान: इसके बाद माता चंडिका ने नील पर्वत के ऊपर थोड़ी देर आराम किया था और इसके बाद से मां शांत रूप में यहीं विराजमान हो गईं. ऐसा माना जाता है कि बाद में इसी स्थान पर एक मंदिर बनाया गया. इसके अलावा पर्वत श्रृंखला में स्थित दो चोटियों को शुंभ और निशुंभ कहा जाता है. हरिद्वार में माता मनसा देवी, माता माया देवी और त्रिशूल के रूप में मां चंडी देवी, हरिद्वार की रक्षा करती आ रही हैं. दरअसल, त्रिशूल की मान्यता ये है कि तीनों देवियां पर्वत पर विराजमान हैं.

चंडी देवी मंदिर हरिद्वार

चंडी चौदस का है विशेष महत्व: वैसे तो मां चंडी के दरबार में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि से लेकर चंडी चौदस तक यहां पर विशेष पूजा का आयोजन होता है. माना जाता है कि नवरात्रि में जहां मां के तमाम स्वरूप मंदिर में विराजमान रहते हैं. वहीं यह भी मान्यता है कि, चंडी चौदस के दिन पृथ्वी पर मौजूद तमाम देवी देवता अपनी बहन चंडी से मिलने यहां पधारते हैं.

चंडी देवी को काली देवी की तरह माना जाता है और प्रायः इनके उग्र रूप की पूजा की जाती है. अश्विन और चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि में चंडी पूजा को विशेष समारोह के साथ मनाया जाता है. पूजा के लिए ब्राह्मणों द्वारा मंदिर के मध्य स्थान को गोबर और मिट्टी से लीप कर मिट्टी के एक कलश की स्थापना की जाती है. चंडी देवी मंदिर के पास हनुमानजी की माता अंजनी का भी मंदिर स्थित है. इस मंदिर में आने वाले भक्त माता अंजनी के मंदिर में जरूर जाते हैं.

माना जाता है कि मनसा देवी और चंडी देवी, माता पार्वती के ही दो रूप हैं और हमेशा एक दूसरे के करीब रहती हैं. माता मनसा देवी का मंदिर बिल्व पर्वत पर गंगा नदी के विपरीत तट पर दूसरी ओर है. माता चंडी देवी का मंदिर मन्नतें पूरी करने के लिए जाना जाता है. यही कारण है कि इस मंदिर में भारी भीड़ जुटती है.

चंडी देवी मंदिर में दर्शन का समय: चंडी देवी के इस मंदिर का संचालन महंतों द्वारा किया जाता है, जो मंदिर के पीठासीन हैं. यह मंदिर सुबह पांच बजे के बाद खुलता है और रात में 8 बजे बंद होता है. मंदिर खुलने के बाद यहां सबसे पहले सुबह साढ़े पांच बजे माता चंडी की आरती की जाती है. सुबह की आरती के बाद दिन भर पूजा पाठ और दर्शन चलता रहता है.

श्रद्धालुओं की है ये आस्था: इस मंदिर के प्रति जितनी आस्था और श्रद्धा बाहर से आने वाले लोगों में हैं, उतनी ही आस्था स्थानीय लोग भी रखते हैं. पंचपुरी से ऐसे काफी लोग हैं, जो रोजाना मां चंडी के दर्शन करने आते हैं. कनखल निवासी अनिल कुमार का कहना है कि मां के इस स्थान पर उनकी अपार आस्था व श्रद्धा है. करीब चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर वे माता के दर पर शीश नवाने आते हैं.

चंडी देवी मंदिर तक रोपवे की व्यवस्था: कुछ साल पहले तक मां के इस प्राचीन मंदिर तक जाने के लिए यात्री को करीब साढे़ 4 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती थी, लेकिन अब रोपवे की व्यवस्था के बाद जो यात्री पैदल नहीं जाना चाहते, वे रोपवे में अपनी यात्रा को संपन्न कर सकते हैं. रोपवे के लिए टिकट नीचे से ही मिल जाता है.

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कैसे पहुंचे मां के दरबार: चंडी देवी मंदिर हरिद्वार से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यदि आप बस या ट्रेन से आना चाहते हैं तो बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से ऑटो या ई रिक्शा मिल जाती है. यदि आप अपनी गाड़ी से बिजनौर की तरफ से आते हैं तो श्यामपुर क्षेत्र में ही मां चंडी का मंदिर स्थित है, लेकिन यदि आप ऋषिकेश-देहरादून या फिर दिल्ली की तरफ से आते हैं तो हरिद्वार पहुंचकर आप चंडी घाट पुल होते हुए मां के मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं.

Last Updated : Apr 6, 2022, 11:38 AM IST
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