ETV Bharat / bharat

उत्तराखंडः अखाड़े में संत बनने के लिए देना होगा इंटरव्यू, जानिए क्यों लिया गया फैसला

author img

By

Published : Jun 29, 2022, 10:24 PM IST

Updated : Jun 30, 2022, 6:40 PM IST

पंचायती अखाड़ा के मुताबिक अब संत बनने के लिए भी इंटरव्यू देना होगा. बिना इंटरव्यू कोई भी व्यक्ति संत नहीं बन पाएगा. इसके लिए धर्म की जानकारी के साथ-साथ अपने द्वारा धर्म के लिए किए गए कार्यों की जानकारी भी देनी होगी. इस पूरी प्रक्रिया के लिए निरंजनी अखाड़े में कमेटी बनाई जाएगी. संत बनने से पहले लोगों को इस कमेटी के सवाल-जवाब से गुजरना होगा.

Interview will have to be given to become a saint in the arena
अखाड़े में संत बनने के लिए देना होगा इंटरव्यू

हरिद्वार: जिस तरह से युवाओं को नौकरी पाने के लिए पहले इंटरव्यू देना पड़ता है और अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उन्हें नौकरी के अवसर मिलते हैं. उसी तरह अब संत बनने के लिए भी इंटरव्यू देना होगा और शैक्षणिक योग्यता को दिखाना होगा. जिसके बाद ही कोई व्यक्ति संत बन पाएगा और संत से जुड़ा पद ले पाएगा. इस प्रक्रिया की शुरूआत संन्यासियों के दूसरे सबसे बड़े अखाड़े श्री निरंजनी पंचायती अखाड़ा ने की है. अब निरंजनी अखाड़ा संन्यास लेने वालों के लिए साक्षात्कार और शैक्षिक योग्यता व्यवस्था करने जा रहा है, फिलहाल इसके लिए प्रस्ताव बनाया जा रहा है.

बता दें कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं पंचायती अखाड़ा के सचिव महंत रवींद्र पुरी एवं निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि ने गुपचुप तरीके से इस पर कई घंटों की एक बैठक की, जिसके बाद कई नियम भी बनाए गए हैं. बताया जा रहा है कि निरंजनी अखाड़े में एक कमेटी बनाई जाएगी. संत बनने से पहले इस कमेटी के सवाल-जवाब से गुजरना होगा. इस कमेटी की सहमति पर ही आचार्य महामंडलेश्वर संन्यास ग्रहण कराएंगे.

उत्तराखंड में अखाड़े में संत बनने के लिए देना होगा इंटरव्यू.
ये भी पढ़ेंःस्वामी अवधेशानंद की जीवन पर आधारित पुस्तक का लोकसभा अध्यक्ष ने किया विमोचन

इसी के साथ कमेटी द्वारा संन्यास लेने वाले व्यक्तियों से अभी तक किए गए कार्य के साथ ही मंदिरों की जानकारी भी ली जाएगी. धर्म की जानकारी के साथ ज्ञान को भी परखा जाएगा, जिसके बाद ही संत बनना संभव हो पाएगा. फिलहाल अभी निरंजनी अखाड़े की ओर से इसी तरह का बयान सामने नहीं आ रहा है. निरंजनी अखाड़े के साधु-संतों का कहना है कि जब तक प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती और प्रस्ताव पास नहीं हो जाता, तब तक इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी.

वहीं, हरिद्वार के अन्य साधु-संतों से इस पर प्रतिक्रिया ली तो उनके अलग-अलग विचार सामने आए. जहां निर्मोही अखाड़े के सचिव बाबा हठयोगी का कहना है कि आज से नहीं आदिकाल से साधु बनाने से पहले अपने शिष्य को जांचा और परखा जाता था, उसके बाद ही उसे साधु बनाया जाता था. फिर धीरे-धीरे करके उसकी जिम्मेदारियां बढ़ाई जाती थी और फिर उसे पद दिया जाता था. इस बीच में उसे ज्ञान की प्राप्ति भी हो जाती थी और उसे साधु जीवन जीने का सलीका भी आ जाता था. अब कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति आकर यदि साधु बनना चाहेगा तो उसे इंटरव्यू और उसकी क्वालिफिकेशन के आधार पर साधु बना दिया जाएगा और पद दे दिया जाएगा.

बाबा हठयोगी का कहना है कि, अगर उदाहरण के तौर पर देखें तो इससे पहले गोल्डन बाबा, राधे मां जैसे संत को किस आधार पर महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई थी. हालांकि ये मामला निरंजनी अखाड़े का निजी है. क्योंकि वो सिर्फ अपने अखाड़े के लिए ये फैसला ले रहे हैं, इसलिए किसी और का ज्यादा कुछ बोलना सही नहीं है. क्योंकि आप धारणा से ही समझ जाएं कि पैसों से किस तरह के संत बनकर सामने आएंगे.
ये भी पढ़ेंः संत समाज ने कृषि कानूनों की वापसी का किया स्वागत, बोले- PM मोदी का फैसला साहसिक कदम

वहीं, शांभवी धाम के पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप का कहना है कि संन्यास एक आश्रम है, जिसमें शिक्षा का कोई संबंध नहीं है. हमारा संन्यास कहता है कि सभी हिंदुओं को संन्यास आश्रम में जाना अनिवार्य है, जिन्हें मोक्ष की कामना है. स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि इस तरह के फैसले लेने से पहले अखाड़ों में चल रहे भ्रष्टाचार पर ध्यान ज्यादा देना चाहिए. ज्ञान और शिक्षा यदि अनिवार्य है तो वो सिर्फ और सिर्फ महामंडलेश्वर आचार्य महामंडलेश्वर और शंकराचार्य के लिए क्योंकि उन्हें सभी को ज्ञान देना होता है. अब देखने वाली बात ये होगी कि निरंजनी अखाड़े द्वारा लिया गया ये फैसला धरातल पर भी उतर पाता है या नहीं.

हरिद्वार: जिस तरह से युवाओं को नौकरी पाने के लिए पहले इंटरव्यू देना पड़ता है और अपनी शैक्षणिक योग्यता के आधार पर उन्हें नौकरी के अवसर मिलते हैं. उसी तरह अब संत बनने के लिए भी इंटरव्यू देना होगा और शैक्षणिक योग्यता को दिखाना होगा. जिसके बाद ही कोई व्यक्ति संत बन पाएगा और संत से जुड़ा पद ले पाएगा. इस प्रक्रिया की शुरूआत संन्यासियों के दूसरे सबसे बड़े अखाड़े श्री निरंजनी पंचायती अखाड़ा ने की है. अब निरंजनी अखाड़ा संन्यास लेने वालों के लिए साक्षात्कार और शैक्षिक योग्यता व्यवस्था करने जा रहा है, फिलहाल इसके लिए प्रस्ताव बनाया जा रहा है.

बता दें कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं पंचायती अखाड़ा के सचिव महंत रवींद्र पुरी एवं निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि ने गुपचुप तरीके से इस पर कई घंटों की एक बैठक की, जिसके बाद कई नियम भी बनाए गए हैं. बताया जा रहा है कि निरंजनी अखाड़े में एक कमेटी बनाई जाएगी. संत बनने से पहले इस कमेटी के सवाल-जवाब से गुजरना होगा. इस कमेटी की सहमति पर ही आचार्य महामंडलेश्वर संन्यास ग्रहण कराएंगे.

उत्तराखंड में अखाड़े में संत बनने के लिए देना होगा इंटरव्यू.
ये भी पढ़ेंःस्वामी अवधेशानंद की जीवन पर आधारित पुस्तक का लोकसभा अध्यक्ष ने किया विमोचन

इसी के साथ कमेटी द्वारा संन्यास लेने वाले व्यक्तियों से अभी तक किए गए कार्य के साथ ही मंदिरों की जानकारी भी ली जाएगी. धर्म की जानकारी के साथ ज्ञान को भी परखा जाएगा, जिसके बाद ही संत बनना संभव हो पाएगा. फिलहाल अभी निरंजनी अखाड़े की ओर से इसी तरह का बयान सामने नहीं आ रहा है. निरंजनी अखाड़े के साधु-संतों का कहना है कि जब तक प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती और प्रस्ताव पास नहीं हो जाता, तब तक इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी.

वहीं, हरिद्वार के अन्य साधु-संतों से इस पर प्रतिक्रिया ली तो उनके अलग-अलग विचार सामने आए. जहां निर्मोही अखाड़े के सचिव बाबा हठयोगी का कहना है कि आज से नहीं आदिकाल से साधु बनाने से पहले अपने शिष्य को जांचा और परखा जाता था, उसके बाद ही उसे साधु बनाया जाता था. फिर धीरे-धीरे करके उसकी जिम्मेदारियां बढ़ाई जाती थी और फिर उसे पद दिया जाता था. इस बीच में उसे ज्ञान की प्राप्ति भी हो जाती थी और उसे साधु जीवन जीने का सलीका भी आ जाता था. अब कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति आकर यदि साधु बनना चाहेगा तो उसे इंटरव्यू और उसकी क्वालिफिकेशन के आधार पर साधु बना दिया जाएगा और पद दे दिया जाएगा.

बाबा हठयोगी का कहना है कि, अगर उदाहरण के तौर पर देखें तो इससे पहले गोल्डन बाबा, राधे मां जैसे संत को किस आधार पर महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई थी. हालांकि ये मामला निरंजनी अखाड़े का निजी है. क्योंकि वो सिर्फ अपने अखाड़े के लिए ये फैसला ले रहे हैं, इसलिए किसी और का ज्यादा कुछ बोलना सही नहीं है. क्योंकि आप धारणा से ही समझ जाएं कि पैसों से किस तरह के संत बनकर सामने आएंगे.
ये भी पढ़ेंः संत समाज ने कृषि कानूनों की वापसी का किया स्वागत, बोले- PM मोदी का फैसला साहसिक कदम

वहीं, शांभवी धाम के पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप का कहना है कि संन्यास एक आश्रम है, जिसमें शिक्षा का कोई संबंध नहीं है. हमारा संन्यास कहता है कि सभी हिंदुओं को संन्यास आश्रम में जाना अनिवार्य है, जिन्हें मोक्ष की कामना है. स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि इस तरह के फैसले लेने से पहले अखाड़ों में चल रहे भ्रष्टाचार पर ध्यान ज्यादा देना चाहिए. ज्ञान और शिक्षा यदि अनिवार्य है तो वो सिर्फ और सिर्फ महामंडलेश्वर आचार्य महामंडलेश्वर और शंकराचार्य के लिए क्योंकि उन्हें सभी को ज्ञान देना होता है. अब देखने वाली बात ये होगी कि निरंजनी अखाड़े द्वारा लिया गया ये फैसला धरातल पर भी उतर पाता है या नहीं.

Last Updated : Jun 30, 2022, 6:40 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.