जयपुर : कोटा मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग ने एक रिसर्च कोविड-19 से संक्रमित हुए मरीजों पर की है. जिसमें सामने आया है कि करीब 30% मरीजों के फेफड़े और श्वांस नली में बदलाव हो गया है. जिससे उन्हें अन्य कई बीमारियों का खतरा सामान्य लोगों से 50 फीसदी ज्यादा बना हुआ है. ये वे मरीज हैं जिन्हें कोविड-19 से रिकवर हुए 4 से 5 महीने हो चुके थे.
कोटा मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन के सीनियर प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा ने बताया कि उनके निर्देशन में थर्ड ईयर रेजीडेंट डॉ दिलीप मीणा और डॉ गौरव भार्गव ने इस शोध को किया है.
फेफड़े में ऑक्सीजन भरने की क्षमता कम हुई
मेडिसिन के सीनियर प्रोफेसर डॉ मनोज सलूजा ने बताया कि शोध में सामने आया है कि करीब 23% यानि 37 मरीजों के फेफड़ों की कूपिकाओं में सिकुड़न देखने को मिली है, जहां पर एक्सचेंज होता है. यहां पर फाइब्रोसिस भी देखने को मिला है. इनकी ऑक्सीजन भरने की क्षमता कम हो गई है. दूसरी तरफ श्वांस नली में अवरोध पैदा हो गए हैं. इसके चलते कार्बन डाइऑक्साइड गैस को बाहर निकालने में समस्या आती है. यह सब कोरोना के कारण ही हुआ है.
डॉ सलूजा ने बताया कि जिस तरह से बुजुर्ग या ज्यादा उम्र के लोगों में बदलाव फेफड़े और श्वांस नली में आए हैं, उतने ही बदलाव युवाओं में भी देखने को मिले हैं. कम उम्र के लोगों में भी यह देखने को मिला है, जबकि फेफड़े की क्षमता ज्यादा उम्र के लोगों की प्रभावित रहती है.
कोरोना से स्वस्थ होने के 4 माह बाद लिए नमूने
इस शोध के लिए सभी तरह के मरीज लिए गए हैं, जिनको गंभीर बीमारी थी वह भी हैं. साथ ही नॉर्मल बीमारी वाले मरीजों के भी. ऐसे में सभी में सामान्यतया एक जैसे ही रिजल्ट सामने आए हैं. इनमें होम आइसोलेशन में रहने वाले और अस्पताल में भर्ती होने वाले सभी तरह के मरीज थे. साथ ही उनके नमूने कॉविड 19 से स्वस्थ होने के 4 से 5 महीने बाद लिए हैं. तभी इनके फेफड़े और श्वसन नली में अंतर सामने आया है.
इस पूरी रिसर्च में 166 मरीजों को चुना गया. जिनमें 109 पुरुष और 57 महिलाएं हैं साथ में कुल मरीज 21 से लेकर 80 साल तक की उम्र के थे.
6 मिनट की वॉक में फेल मरीजों के नहीं लिए नमूने
डॉ दिलीप मीणा ने बताया कि इस शोध के लिए जो मरीज चुने गए थे. पहले उनका 6 मिनट का वॉक करवाया गया. लेकिन इसमें फेल होने वाले मरीजों को शोध में शामिल नहीं किया गया. जो लोग सामान्य वॉक को पूरा कर पाए. उनका पलमोनरी फंक्शन टेस्ट किया गया. साथ ही ऐसे किसी भी मरीज को नहीं लिया गया जिसको पहले से हार्ट या फेफड़े को प्रभावित कर देने वाली कोई भी बीमारी है.
इस तरह के मरीजों को भी सैंपल से बाहर रखा गया है, जो कि स्मोकिंग करते हैं. साथ ही पूरी जिन मरीजों का पलमोनरी फंक्शन टेस्ट हुआ है उसमें भी कोविड-19 गाइडलाइन के तहत सतर्कता रखते हुए ही करवाया गया है.
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जिनको नहीं हुआ कोरोना वे मिले नॉर्मल
डॉ गौरव भार्गव ने बताया कि इस शोध के परिणाम को सामान्य लोगों से तुलना करने के लिए 20 सामान्य लोगों के भी इस तरह से टेस्ट लिए गए और उन पर भी डाटा तैयार किया गया. जिन्हें कोरोना नहीं हुआ था वे लोग पूरी तरह सामान्य मिले. ऐसे लोगों के फेफड़ों की कूपिकाओं में संकुचन नहीं था. साथ ही श्वांसनली में भी अवरोध नहीं थे. इस रिसर्च पेपर को प्रकाशित के करवाया जाएगा.
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