नई दिल्ली : बीजेपी ने संगठन में जो बड़े बदलाव किए हैं, उनका संदेश बिल्कुल साफ है. पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में कूद पड़ी है. उनको हटा दिया जिनकी अगले दो साल में संगठन को मजबूत करने में कोई खास भूमिका नहीं है और उनको ले आए जिनके कंधों पर अगली कई लड़ाइयों की ज़िम्मेदारी डाली जानी है. पार्टी ने बड़े फैसले लेने वाली दोनों ही समितियों में फेरबदल करके जातीय समीकरण बिठाने की भी कोशिश की है.
सरकार के सबसे काबिल मंत्री माने जाने वाले नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति दोनों से बाहर कर दिया गया है. उनके साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी दोनों ही समितियों से बाहर किए गए हैं. नाम न बताने की शर्त पर पार्टी के एक नेता कहते हैं कि भूमिकाएं बदलती रहती हैं और नितिन गडकरी का काम अपने आप में सरकार और पार्टी का सर्वोत्तम प्रचार है, इससे फर्क नहीं पड़ता कि वे किसी समिति में हैं या नहीं. लेकिन सूत्र बताते हैं कि देवेंद्र फडणवीस को अब नितिन गडकरी की जगह एक कद्दावर नेता के तौर पेश किया जा रहा है. गडकरी का ज्यादा मुखर होना इसकी एक वजह मानी जा रही है.
फिलहाल जिन नए चेहरों को जगह मिली है, उनमें कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा का नाम है. ज़ाहिर है कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले उनकी अहमियत पार्टी ने समझी है. जातीय समीकरण में तालमेल बिठाने की कोशिश करते हुए बीजेपी ने पहले येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया था, लेकिन अब उन्हें पार्टी की सर्वोच्च समिति में शामिल कर लिंगायत समुदाय के जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश की गई है. साफ है निशाना 2023 का विधानसभा चुनाव है.
महाराष्ट्र में हाल ही में देवेंद्र फडणवीस को उप मुख्यमंत्री के तौर पर संतोष करना पड़ा था, लेकिन पार्टी की सबसे बड़ी समिति संसदीय बोर्ड में उन्हें जगह देकर उनमें महाराष्ट्र के अगले चुनाव तक भरोसा जताया गया. सूत्र बताते हैं कि 2024 के महाराष्ट्र चुनावों के बाद उन्हें अहम भूमिका दी जा सकती है. जिस तरह नॉर्थ ईस्ट से सर्बानंद सोनोवाल को जगह दी गई है, उसी तरह दक्षिण से के लक्ष्मण और बीएस येदुरप्पा को भी जगह देकर पार्टी में दक्षिण में पार्टी के विस्तार का कार्यक्रम तैयार किया गया है. साथ ही माइनोरिटी कमीशन के अध्यक्ष और सिख समुदाय के नेता इकबाल सिंह लालपुरा को भी शामिल कर इस समुदाय के लिए एक बड़ा मैसेज दिया गया है.
बोर्ड के इन नए सदस्यों में के लक्ष्मण और सुधा यादव ओबीसी समुदाय से हैं, सत्यनारायण जटिया अनुसूचित जाति से और सर्बानंद सोनोवाल आदिवासी समुदाय से हैं. यानी दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को भी इस महत्वपूर्ण समिति में शामिल कर पार्टी जनता को एक सीधा और साफ मैसेज देना चाहती है. नॉर्थ ईस्ट से पहली बार किसी को इस समिति में शामिल कर संदेश बहुत साफ दिया गया है कि बीजेपी के एजेंडे में उत्तर पूर्व के राज्य अहमियत रखते हैं. सुधा यादव जमीनी स्तर से पार्टी के लिए काम करती रही हैं. उनके पति कारगिल की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए थे. उन्हें इस समिति में शामिल कर महिलाओं को सम्मान दिए जाने का संदेश भी पार्टी ने दिया है. साथ ही शहीदों के परिवारों को भी एक संदेश इसमें निहित है.
कभी केंद्रीय राजनीति के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक रहे शाहनवाज हुसैन को कुछ दिन पहले ही केंद्र की राजनीति से बिहार भेजा गया था. वे वहां मंत्री थे लेकिन बिहार की सरकार गिरते ही उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. अब उन्हें केंद्रीय चुनाव समिति से भी हटा दिया गया. इसी तरह काफी दिनों से हाशिए पर रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता ओम माथुर को भी चुनाव समिति में जगह देकर राजस्थान की राजनीति को साधने की कोशिश की गई है. इससे पहले ओम माथुर ने गुजरात और उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी की हैसियत से पार्टी को जीत दिलाई थी. लेकिन काफी दिनों से वह किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं थे.
सूत्र बताते हैं कि बीजेपी 2024 तक होने वाले लोकसभा और दूसरे कई विधानसभा चुनावों के लिए बेहद गंभीर है और रिज़ल्ट ओरिएंटेड नीतियों पर काम को लेकर कटिबद्ध है, बेशक कुछ कड़े फैसले लेने पड़ें. हालंकि जानकार ये भी मानते हैं कि बड़े फैसले पर्याप्त राय-मशविरे और संबंधित बड़े नेताओं को जानकारी देने के बाद ही लिए जाते हैं, जिससे पार्टी में फैसलों को लेकर कोई मतभेद न हो.
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