मुंबई : शिवसेना के मुखपत्र सामना (Shiv Sena mouthpiece Saamana ) के आज के अंक में प्रकाशित संपादकीय में नोटिस पीरियड पूरा किये बिना नौकरी छोड़ने वालों से 'जीएसटी' (GST) वसूलने की सरकार के प्रस्ताव पर सवाल उठाया गया है. शिवसेना ने पत्र के माध्यम से केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार नौकरी (Job ) पेशा वालों को भी नहीं बख्शने वाली है. लॉकडाउन (lockdown) के कारण देश में नौकरीपेशा करने वालों की हालत पहले से ही बिगड़ी हुई है. इसपर नौकरी छोड़ने पर 18 प्रतिशत (18% GST) जीएसटी वसूल करने का प्रस्ताव बिल्कुल नाजायज है.
पत्र में कहा गया कि 'जीएसटी' के कई झटके देश की सामान्य जनता और अर्थव्यवस्था को लग रहे हैं, फिर भी केंद्र जीएसटी के प्रेम में आकंठ डूबा हुआ है. जीएसटी और उसके भुगतान को लेकर कोई कितना भी बोले, फिर भी उसे नजरअंदाज करना जितना हो सके उतनी सरकार की तिजोरी भरते रहना, लोगों के भले ही पॉकेट खाली हो जाए वह चलेगा, लेकिन सरकार का खजाना भरना चाहिए. इसी तरह की भूमिका केंद्र सरकार की जीएसटी और अन्य आर्थिक निर्णयों के संबंध में रही है.
इस खबर के अनुसार नौकरी छोड़ने वाले श्रमिकों को अब 18 प्रतिशत जीएसटी का झटका लगने की संभावना है. नौकरी छोड़ते समय नोटिस पीरियड न देने वाले कर्मचारियों को इसका झटका लगेगा. कहा जा रहा है कि नोटिस अवधि पूरी न करके दूसरी जगह नौकरी करने वाले कर्मचारियों के वेतन पर 18 प्रतिशत जीएसटी (18% GST ) वसूल करने का प्रस्ताव है. भारत पेट्रोलियम की सहायक कंपनी ओमान रिफाइनरी के मामले में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क प्राधिकरण ने इस आशय का निर्णय लिया है. इसके तहत कंपनियों द्वारा भरा जाने वाला टेलीफोन बिल, कंपनी कर्मचारियों का ग्रुप इंश्योरेंस, नोटिस अवधि के बदले में दिए जाने वाले वेतन आदि जीएसटी के दायरे में आने की संभावना है. केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क प्राधिकरण का यह निर्णय न केवल हंगामेदार, बल्कि लुटेरू मनोवृत्ति का है.
नोटिस अवधि न देकर जब कोई कर्मचारी वेतन लेने को तैयार होता है तब वह उसकी ‘मजबूरी’ होती है. इसीलिए तो पगार-पानी छोड़ने को तैयार होता है. अब जबकि सरकार उस पर भी जीएसटी लगाने का विचार कर रही है तो उसकी स्थिति ‘न घर का न घाट का’ जैसी ही होगी. अर्थात वेतन भी दो और ऊपर से 18 फीसदी जीएसटी (18% GST ) का भुगतान भी करो. केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क प्राधिकरण (customs authority ) की स्थापना केवल जनता की जेब ढीली करने के लिए ही की गई है क्या? अब जो सरकारी तिजोरी में पैसा डालने का नया फंडा उन्होंने खोजा है वह सरकार के व्यापारिक रवैये के अनुरूप है. कल को ऐसा आरोप लगा तो उसे दोष वैसे दिया जा सकता है? अब यह निर्णय एक संस्था तक मर्यादित है या सभी के लिए लागू होगा, इस बारे में स्पष्टता नहीं है फिर भी मूलरूप से प्राधिकारिण का यह दृष्टिकोण आपत्तिजनक है.
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सरकार की तिजोरी में पैसा आना चाहिए इसे लेकर दो मत होने का कोई मतलब नहीं. लेकिन उसके लिए आम जनता को नोटिस अवधि के वेतन पर भी जीएसटी की कुल्हाड़ी चलाना, ऐसा उसका अर्थ नहीं निकलता. वेतन और व्यक्तिगत जीवन में उन्नति हो इसलिए व्यक्ति नई नौकरी करता है. ऐसे समय में उसकी नोटिस अवधि के वेतन पर जीएसटी वसूलना यानी उसकी प्रगति के सपनों पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा ही है. यह निश्चित रूप से सरकार के खजाने को भरने का तरीका नहीं है.
पहले से कोरोना और लॉकडाउन (lockdown) के कारण आम कर्मचारियों का जीना मुहाल हो गया है. लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं. उसी में अब नौकरी छोड़ते समय वेतन पर भी जीएसटी वसूल किया जाएगा तो कैसे चलेगा? मतलब वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें कम होकर भी देश के अंदर पेट्रोल-डीजल की कीमतें सौ के पार पहुंचाकर और छोटी बचत पर ब्याज दरों को कम कर ‘दिग्भ्रमित’ करते हुए सरकारी तिजोरी भरने वाली यही सरकार है. इनसे क्या अलग उम्मीद करें? अब फिर से कर्मचारियों के नौकरी छोड़ते समय वेतन पर जीएसटी की कुल्हाड़ी चलाने की एक और गलती सरकार से होगी तो मुश्किल ही है. अल्प बचत पर ब्याज कम करने की गलती जैसे सरकार ने सुधारी उसी तरह यह गलती भी समय पर सुधारी जाए. यह सही है कि सरकार के खजाने में इजाफा हो. लेकिन उसके लिए सरकार जनता की जेबें कितना नोचेगी, यह असली सवाल है.