वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की योजनाओं की सौगात अब तक दे चुके हैं. इसी के तहत गंगा पर बनाए गए बंदरगाह की सौगात व्यापारियों के लिए बड़ी सुविधा मानी जा रही थी, लेकिन 184 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुए इस बंदरगाह पर तीन साल के वक्त में अब तक सिर्फ चार मालवाहक जहाज ही आ सके हैं.
अब जब गर्मी अपने चरम पर पहुंचती जा रही है, गंगा में कम हो रहे पानी की वजह से जून तक इस बंदरगाह पर जहाजों का आवागमन नहीं हो सकेगा.
यानी लगभग 3 महीने से ज्यादा वक्त तक यहां पर गंगा के रास्ते होने वाली माल ढुलाई प्रभावित होगी. इसके बाद अब एक बार फिर से इस बंदरगाह के निर्माण और इसके फायदे पर सवाल उठने लगे हैं.
जून तक होगा आवागमन प्रभावित
हर साल अप्रैल से गर्मी की शुरुआत के बाद मई और जून तक गर्मी की वजह से गंगा में पानी का स्तर कम होता है. सबसे ज्यादा बुरी हालत गाजीपुर और इससे सटे इलाकों में होती है. यहां गंगा में पानी की कमी की वजह से हर साल बड़े जहाजों के आवागमन पर असर पड़ता है.
इस बार भी वाराणसी-गाजीपुर सीमा से सटे चंद्रावती के पास गंगा नदी में मात्र 1.4 मीटर ही जल स्तर मौजूद है. ऐसे में बड़े जहाज इस रास्ते से गंगा से होते हुए बनारस में कैसे पहुंचेंगे? ये सवाल बड़ा है. यही वजह है कि जून के अंत और जुलाई के पहले सप्ताह तक फिलहाल बंदरगाह पर बड़े जहाजों के आवागमन पर रोक लगा दी गई है.
2018 में बना बंदरगाह, पीएम ने किया था उद्घाटन
रामनगर के रालहुपुर स्थित बंदरगाह का निर्माण भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने करवाया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में इसका उद्घाटन किया था. दावा किया गया था कि वाराणसी-पटना जल मार्ग के जरिये असम के साथ ही बांग्लादेश तक माल भेजना और मंगाना आसान हो जाएगा. रोजगार भी बढ़ेगा, लेकिन न ही ये व्यापारियों के लिए लाभकारी हुआ और न ही गंगा में ड्रेजिंग का काम शुरू होने की वजह से गंगा की गहराई बढ़ सकी.
इसकी वजह से ये बंदरगाह पूरी तरह से फेल साबित हुआ. हालात ये है कि बीते दिनों फरवरी के महीने में एक मालवाहक जहाज पटना से आगे बढ़ा तो गंगा में पानी कम होने की वजह से बीच रास्ते में ही फंस गया और अब जब गर्मी अपने चरम पर है तब गंगा में पानी की कमी की वजह से हालात और भी बदतर होंगे.
184 करोड़ लागत, आये अब तक 4 मालवाहक जहाज
गंगा में बने पहले मल्टी मॉडल टर्मिनल के रूप में विकसित किए जा रहे इस बंदरगाह को 2018 में जल सड़क और हवाई तीनों मार्ग से जोड़ने के दावे करते हुए इसका निर्माण किया गया था.
अधिकारिक सूत्रों की माने तो इस बंदरगाह पर नवंबर 2018 में शुरुआत के बाद पेप्सीको कंपनी का माल रविंद्र नाथ टैगोर जहाज के जरिए कोलकाता भेजा गया था. इसके बाद 2019 में डाबर कंपनी का माल लेकर दूसरा मालवाहक जहाज यहां पहुंचा था.
2019 में एक और जहाज कोलकाता-पटना के रास्ते होते हुए बनारस आया था. हाल ही में फरवरी के महीने में 2021 में 40 टन भूसा लेकर एक जहाज यहां से कोलकाता के लिए रवाना हुआ है, लेकिन इसके बाद अब तक यह बंदरगाह भी जहाजों के आने और जाने का इंतजार कर रहा है. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है. 184 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुआ यह वाटर वे व्यापारियों के लिए तो फिलहाल अच्छा साबित नहीं हुआ है.
अब तक 320 मीट्रिक टन माल आया या गया
इनलैंड वाटरवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया के सोर्सेज के मुताबिक, अब तक करीब 320 मीट्रिक टन माल गंगा के रास्ते मालवाहक जहाज के जरिए इस बंदरगाह पर आया है या गया है.
2018 से लेकर अब तक यह बंदरगाह मात्र 4 जहाजों का ही गवाह बन सका है. व्यापारी खुद मानते हैं कि इसका इस्तेमाल पहले भी नहीं हो रहा था. अब जब गंगा में पानी कम है, तो इसका इस्तेमाल होना बिल्कुल संभव नहीं है.
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व्यापारियों का कहना है कि ये मानकर चला जा रहा था कि ये बंदरगाह कम खर्च में व्यापारियों को बड़ा फायदा देगा और कोलकाता से माल आने में आसानी होगी, लेकिन अब गंगा में पानी की वजह से इसे एक बार फिर से बंद किया जा रहा है. जिसकी वजह से व्यापारियों के चेहरे पर मायूसी नज़र आ रही है.