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अयोध्या राम मंदिर उद्घाटन: मानव शरीर की तरह है देवालय, प्राण प्रतिष्ठा इसलिए है जरूरी

Archaeologist RC Bhatt explained importance of consecration of temple इन दिनों पूरे देश में अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर चर्चा है. हर कोई 22 जनवरी को अयोध्या जाना चाहता है. राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के शुभ अवसर का साक्षी बनना चाहता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है. जानिए गढ़वाल केंद्रीय विवि के प्रति कुलपति और वरिष्ठ आर्कियोलॉजिस्ट आरसी भट्ट से.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 8, 2024, 10:52 AM IST

Updated : Jan 8, 2024, 1:58 PM IST

consecration of temple
अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर क्या कहते हैं आर्कियोलॉजिस्ट

श्रीनगर (उत्तराखंड): 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में नव निर्मित राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. देश के वरिष्ठ आर्कियोलॉजिस्ट और गढ़वाल केन्द्रीय विवि के प्रति कुलपति प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है. उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में मंदिर को जीवंत प्राणी की संज्ञा दी गयी है.

प्राण प्रतिष्ठा का महत्व: वरिष्ठ आर्कियोलॉजिस्ट प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि भगवान श्री राम का हमारे देश में धर्मिक और सामाजिक जीवन में बहुत महत्व है. उन्होंने कहा कि भारतीय की सनातन संस्कृति में अन्य धर्मों के पूजा स्थलों की अवधारणा से हमारी अवधारणा भिन्न है. उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में मंदिर सिर्फ प्रार्थना का स्थल नही है, बल्कि पूजा का स्थल भी है. भारतीय धर्म ग्रंथों में इसके विधान निहित किये गए हैं.

स्थापत्य कला ग्रंथों में प्राण प्रतिष्ठा का जिक्र: प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि इस सम्बंध में 5वीं सदी से लेकर 13वीं सदी के दौरान विभिन्न स्थापत्य ग्रंथों की रचना की गई है. इनमें मंदिर स्थापत्यकला को लेकर बहुत सी बातें लिखी गयी हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर को पुरुष की संज्ञा दी गयी है. जिस प्रकार मानवीय शरीर के अंग होते हैं, उसी तरह मंदिर के शरीर के भी अंग निहित किये गए हैं. जिस तरह मानव के शरीर के अंगों का विवरण मिलता है, उसी तरह मंदिर के अंगों का भी विवरण लिखा गया है.

मानव शरीर की तरह मंदिर के भी होते हैं अंग: प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि मंदिर के सबसे ऊपरी भाग को शीश (शीर्ष) कहा गया है. उसी तरह मंदिर में मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश) हिस्से हैं. ये इसलिए हैं क्योंकि मंदिर की परिकल्पना जीवित प्राणी की तरह की गई है. उन्होंने कहा कि मानव शरीर तब तक जीवंत नहीं होगा, जब तक उसमें आत्मा नहीं होगी. जब तक उसमें प्राण नहीं होंगे. उसी तरह मंदिर रूपी उस शरीर में जब तक प्राण नहीं होंगे, तब तक उसे जीवित नहीं माना जायेगा और मंदिर के प्राण मंदिर के गर्भ गृह की मूर्ति में होते हैं.

इसलिए होती है प्राण प्रतिष्ठा: वरिष्ठ आर्कियोलॉजिस्ट प्रो आरसी भट्ट ने कहा कि इसीलिए जब भी मंदिर में पूजा अर्चना की शुरुआत की जाती है, उस मूर्ति की स्थापना के कार्यक्रम को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है. इसलिए उन दिन से मंदिर को जीवंत माना जाता है. इसीलिए सनातन धर्म में पूरे मंदिर की परिक्रमा होती है. प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि जितनी पूजित मूर्ति है, उतना ही पूजित मंदिर भी है.
ये भी पढ़ें: प्राण प्रतिष्ठा पर अति उत्साहित उत्तराखंडवासी, शोभायात्रा में राम के गीतों पर झूम रहे भक्त

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर क्या कहते हैं आर्कियोलॉजिस्ट

श्रीनगर (उत्तराखंड): 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में नव निर्मित राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. देश के वरिष्ठ आर्कियोलॉजिस्ट और गढ़वाल केन्द्रीय विवि के प्रति कुलपति प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है. उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में मंदिर को जीवंत प्राणी की संज्ञा दी गयी है.

प्राण प्रतिष्ठा का महत्व: वरिष्ठ आर्कियोलॉजिस्ट प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि भगवान श्री राम का हमारे देश में धर्मिक और सामाजिक जीवन में बहुत महत्व है. उन्होंने कहा कि भारतीय की सनातन संस्कृति में अन्य धर्मों के पूजा स्थलों की अवधारणा से हमारी अवधारणा भिन्न है. उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में मंदिर सिर्फ प्रार्थना का स्थल नही है, बल्कि पूजा का स्थल भी है. भारतीय धर्म ग्रंथों में इसके विधान निहित किये गए हैं.

स्थापत्य कला ग्रंथों में प्राण प्रतिष्ठा का जिक्र: प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि इस सम्बंध में 5वीं सदी से लेकर 13वीं सदी के दौरान विभिन्न स्थापत्य ग्रंथों की रचना की गई है. इनमें मंदिर स्थापत्यकला को लेकर बहुत सी बातें लिखी गयी हैं. उन्होंने बताया कि मंदिर को पुरुष की संज्ञा दी गयी है. जिस प्रकार मानवीय शरीर के अंग होते हैं, उसी तरह मंदिर के शरीर के भी अंग निहित किये गए हैं. जिस तरह मानव के शरीर के अंगों का विवरण मिलता है, उसी तरह मंदिर के अंगों का भी विवरण लिखा गया है.

मानव शरीर की तरह मंदिर के भी होते हैं अंग: प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि मंदिर के सबसे ऊपरी भाग को शीश (शीर्ष) कहा गया है. उसी तरह मंदिर में मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश) हिस्से हैं. ये इसलिए हैं क्योंकि मंदिर की परिकल्पना जीवित प्राणी की तरह की गई है. उन्होंने कहा कि मानव शरीर तब तक जीवंत नहीं होगा, जब तक उसमें आत्मा नहीं होगी. जब तक उसमें प्राण नहीं होंगे. उसी तरह मंदिर रूपी उस शरीर में जब तक प्राण नहीं होंगे, तब तक उसे जीवित नहीं माना जायेगा और मंदिर के प्राण मंदिर के गर्भ गृह की मूर्ति में होते हैं.

इसलिए होती है प्राण प्रतिष्ठा: वरिष्ठ आर्कियोलॉजिस्ट प्रो आरसी भट्ट ने कहा कि इसीलिए जब भी मंदिर में पूजा अर्चना की शुरुआत की जाती है, उस मूर्ति की स्थापना के कार्यक्रम को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है. इसलिए उन दिन से मंदिर को जीवंत माना जाता है. इसीलिए सनातन धर्म में पूरे मंदिर की परिक्रमा होती है. प्रो आरसी भट्ट ने बताया कि जितनी पूजित मूर्ति है, उतना ही पूजित मंदिर भी है.
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Last Updated : Jan 8, 2024, 1:58 PM IST
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