नई दिल्ली : वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने भारत के अटॉर्नी का जनरल (Attorney General for India) बनने से इनकार कर दिया है. उनका कहना है कि 'इसके पीछे कोई विशेष कारण नहीं है, लेकिन प्रस्ताव के बारे में सोचा और इसे अस्वीकार कर दिया.' इससे पहले रोहतगी जून 2014 से जून 2017 के बीच देश के अटॉर्नी जनरल रहे थे.
केंद्र ने मौजूदा अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल (91) की जगह लेने के लिए इस महीने की शुरुआत में रोहतगी को पेशकश की थी. वेणुगोपाल का कार्यकाल 30 सितंबर को समाप्त होगा. रोहतगी जून 2014 से जून 2017 तक अटॉर्नी जनरल थे. उनके बाद वेणुगोपाल को जुलाई 2017 में इस पद पर नियुक्त किया गया था. उन्हें 29 जून को देश के इस शीर्ष विधि अधिकारी के पद के लिए फिर तीन महीने लिए नियुक्त किया गया था.
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Senior advocate Mukul Rohatgi declines government of India's offer to be appointed as the Attorney General for India. He tells ANI that there is no particular reason but he thought about the offer again and declined it.
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">Senior advocate Mukul Rohatgi declines government of India's offer to be appointed as the Attorney General for India. He tells ANI that there is no particular reason but he thought about the offer again and declined it.
— ANI (@ANI) September 25, 2022Senior advocate Mukul Rohatgi declines government of India's offer to be appointed as the Attorney General for India. He tells ANI that there is no particular reason but he thought about the offer again and declined it.
— ANI (@ANI) September 25, 2022
केंद्रीय कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि वेणुगोपाल 'व्यक्तिगत कारणों' से अपनी अनिच्छा जताई थी, लेकिन 30 सितंबर तक पद पर बने रहने के सरकार के अनुरोध को उन्होंने मान लिया था. अटॉनी जनरल के रूप में वेणुगोपाल का पहला कार्यकाल 2020 में समाप्त होना था और उन्होंने सरकार से उनकी उम्र को ध्यान में रखकर जिम्मेदारियों से मुक्त कर देने का अनुरोध किया था.
लेकिन बाद में उन्होंने एक साल के नये कार्यकाल को स्वीकार कर लिया, क्योंकि सरकार इस बात को ध्यान में रखकर चाह रही थी कि वह इस पद बने रहें कि वह हाई-प्रोफाइल मामलों में पैरवी कर रहे हैं और उनका बार में लंबा अनुभव है. सामान्यत: अटॉर्नी जनरल का तीन साल का कार्यकाल होता है. वरिष्ठ वकील रोहतगी भी उच्चतम न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों में कई हाई-प्रोफाइल मामलों में पैरवी कर चुके हैं.
एक अनुभवी वकील रोहतगी शीर्ष अदालत के साथ-साथ देशभर के उच्च न्यायालयों में कई चर्चित मामलों में सरकार का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित जकिया जाफरी की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान विशेष जांच दल (एसआईटी) की पैरवी की थी.
कांग्रेस के नेता एहसान जाफरी की 28 फरवरी 2002 को गुजरात के अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हुई हिंसा के दौरान हत्या कर दी गई थी. एसआईटी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 64 लोगों को क्लीन चिट दे दी थी, जिसके खिलाफ जकिया ने शीर्ष अदालत का रुख किया था. इस साल जून में उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में मोदी और 63 अन्य को दी गई एसआईटी की क्लीन चिट को बरकरार रखा था.
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