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भारत-पाक संबंधों में अहम पड़ाव साबित होगा एससीओ सैन्य अभ्यास - भारत-पाक संबंधों में अहम पड़ाव साबित होगा एसीओ सैन्य अभ्यास

भारत-पाक संबंधों में ट्रैक-2 डिप्लोमेसी से अचानक एक बंधन आ पड़ा है. लेकिन इसके वास्तविक इरादे को पूर्ण राजनयिक स्थिति की बहाली और पाकिस्तान में एससीओ सैन्य अभ्यास में भारत की भागीदारी से परीक्षित किया जाएगा. इस मामले में पूरी जानकारी दे रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ.

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Published : Mar 25, 2021, 6:35 AM IST

नई दिल्ली : भारत और उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान के बीच होने वाली ट्रैक 2 डिप्लोमेसी अचानक नर्म पड़ती दिखाई दे रही है. दरअसल, मंगलवार को भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान दिवस के अवसर पर अपने पाकिस्तानी समकक्ष इमरान खान को शुभकामनाएं दी थी.

बता दें, 1956 में संविधान को अपनाने के लिए पाकिस्तान हर साल 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस मनाता है और इसे 1940 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के लाहौर प्रस्ताव के पारित होने को भी चिह्नित करता है. जिसने ब्रिटिश भारत के मुसलमानों के लिए एक अलग मातृभूमि स्थापित करने का संकल्प लिया था.

ट्रैक 2 की डिप्लोमेसी का नतीजा

22 मार्च के पत्र में मोदी ने लिखा कि भारत, पाकिस्तान के लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध चाहता है. इसके लिए भरोसे का माहौल, आतंक और शत्रुता से रहित होना चाहिए. यूएई रॉयल्स के मध्यस्थता के प्रयास से लेकर दोनों देशों के खुफिया और सुरक्षा प्रतिष्ठानों के बीच बातचीत में 'बैक चैनल' ट्रैक 2 की डिप्लोमेसी का नतीजा है कि संबंध सुधरते दिखाई दिए, लेकिन नए विकास का दो प्रमुख मापदंडों पर परीक्षण करना होगा.

शंघाई सहयोग संगठन अभ्यास

पहला यह कि दोनों देश अपनी पूर्ण राजनयिक स्थिति को कितनी जल्दी बहाल करेंगे ताकि प्रतिनियुक्तियों के लिए उच्चायुक्त नियुक्त किए जाएं, जो संचार लाइनों को जीवित रखते हैं. दूसरा यह कि क्या भारत, पाकिस्तान के शहर पब्बी में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के तत्वावधान में सैन्य अभ्यास में भाग लेने का विकल्प चुनेगा? क्योंकि अगर ऐसा होता है तो भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अपनी बढ़ती निकटता को फिर से परिभाषित करना होगा.

भारत के कदम पर रहेगी नजर

दरअसल, पाकिस्तानी धरती पर एससीओ अभ्यास में रूस और चीन भाग लेंगे. यदि भारत भाग नहीं लेता है तो यह अमेरिकी कैंप में पहले से कहीं अधिक मजबूती से खुद को बनाए रखेगा. हालांकि नियमित रूप से पीएम मोदी की मिसाइल कई घटनाओं का अनुसरण करती है जो 14 फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से सक्रिय शत्रुता का कारण बनी थी.

कैसे सुधर रहे संबंध

पहला कदम 25 फरवरी को युद्ध विराम संधि की अचानक घोषणा से दिखाई दिया. दोनों देश नागरिकों के बीच गंभीर संपार्श्विक क्षति से बचना चाहते थे, जो निरंतर और भारी गोलाबारी के कारण हो रहा था. 28 जनवरी 2021 तक इस वर्ष 299 संघर्ष विराम उल्लंघन (सीएफवी) हुए हैं. इतना ही नहीं 2017 में सीएफवी की संख्या 971, 2018 में 1,629, 2019 में 3,168 थी, जो 2020 में बढ़कर 5,133 हो गई थी.

कश्मीर अभी भी केंद्रीय मुद्दा

दूसरा, 20 मार्च को पीएम मोदी ने समकक्ष पीएम इमरान खान को कोविड संक्रमण से जल्द ठीक होने की कामना की. इसने दोनों के बीच ठंडे संबंधों के गर्माहट का संकेत दिया क्योंकि आमतौर पर दोनों नेताओं के बीच आदान-प्रदान कम चलता है. पीएम खान और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के 17 और 18 मार्च को इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग में दिए गए उनके बयानों के बाद तीन बयानों में आम तौर पर कहा था कि दोनों देशों को अतीत को दफनाना और आगे बढ़ना है. हालांकि दोनों कश्मीर मुद्दे की केंद्रीयता को रेखांकित करना नहीं भूले.

यह भी पढ़ें-दिल्ली में एलजी को ज्यादा अधिकार देने वाला बिल राज्य सभा से पारित

लेकिन बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि भविष्य में जो कुछ सामने आएगा वह दक्षिण एशियाई राजनीति की दिशा निर्धारित करेगा.

नई दिल्ली : भारत और उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान के बीच होने वाली ट्रैक 2 डिप्लोमेसी अचानक नर्म पड़ती दिखाई दे रही है. दरअसल, मंगलवार को भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान दिवस के अवसर पर अपने पाकिस्तानी समकक्ष इमरान खान को शुभकामनाएं दी थी.

बता दें, 1956 में संविधान को अपनाने के लिए पाकिस्तान हर साल 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस मनाता है और इसे 1940 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के लाहौर प्रस्ताव के पारित होने को भी चिह्नित करता है. जिसने ब्रिटिश भारत के मुसलमानों के लिए एक अलग मातृभूमि स्थापित करने का संकल्प लिया था.

ट्रैक 2 की डिप्लोमेसी का नतीजा

22 मार्च के पत्र में मोदी ने लिखा कि भारत, पाकिस्तान के लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध चाहता है. इसके लिए भरोसे का माहौल, आतंक और शत्रुता से रहित होना चाहिए. यूएई रॉयल्स के मध्यस्थता के प्रयास से लेकर दोनों देशों के खुफिया और सुरक्षा प्रतिष्ठानों के बीच बातचीत में 'बैक चैनल' ट्रैक 2 की डिप्लोमेसी का नतीजा है कि संबंध सुधरते दिखाई दिए, लेकिन नए विकास का दो प्रमुख मापदंडों पर परीक्षण करना होगा.

शंघाई सहयोग संगठन अभ्यास

पहला यह कि दोनों देश अपनी पूर्ण राजनयिक स्थिति को कितनी जल्दी बहाल करेंगे ताकि प्रतिनियुक्तियों के लिए उच्चायुक्त नियुक्त किए जाएं, जो संचार लाइनों को जीवित रखते हैं. दूसरा यह कि क्या भारत, पाकिस्तान के शहर पब्बी में आयोजित होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के तत्वावधान में सैन्य अभ्यास में भाग लेने का विकल्प चुनेगा? क्योंकि अगर ऐसा होता है तो भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अपनी बढ़ती निकटता को फिर से परिभाषित करना होगा.

भारत के कदम पर रहेगी नजर

दरअसल, पाकिस्तानी धरती पर एससीओ अभ्यास में रूस और चीन भाग लेंगे. यदि भारत भाग नहीं लेता है तो यह अमेरिकी कैंप में पहले से कहीं अधिक मजबूती से खुद को बनाए रखेगा. हालांकि नियमित रूप से पीएम मोदी की मिसाइल कई घटनाओं का अनुसरण करती है जो 14 फरवरी 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से सक्रिय शत्रुता का कारण बनी थी.

कैसे सुधर रहे संबंध

पहला कदम 25 फरवरी को युद्ध विराम संधि की अचानक घोषणा से दिखाई दिया. दोनों देश नागरिकों के बीच गंभीर संपार्श्विक क्षति से बचना चाहते थे, जो निरंतर और भारी गोलाबारी के कारण हो रहा था. 28 जनवरी 2021 तक इस वर्ष 299 संघर्ष विराम उल्लंघन (सीएफवी) हुए हैं. इतना ही नहीं 2017 में सीएफवी की संख्या 971, 2018 में 1,629, 2019 में 3,168 थी, जो 2020 में बढ़कर 5,133 हो गई थी.

कश्मीर अभी भी केंद्रीय मुद्दा

दूसरा, 20 मार्च को पीएम मोदी ने समकक्ष पीएम इमरान खान को कोविड संक्रमण से जल्द ठीक होने की कामना की. इसने दोनों के बीच ठंडे संबंधों के गर्माहट का संकेत दिया क्योंकि आमतौर पर दोनों नेताओं के बीच आदान-प्रदान कम चलता है. पीएम खान और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के 17 और 18 मार्च को इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग में दिए गए उनके बयानों के बाद तीन बयानों में आम तौर पर कहा था कि दोनों देशों को अतीत को दफनाना और आगे बढ़ना है. हालांकि दोनों कश्मीर मुद्दे की केंद्रीयता को रेखांकित करना नहीं भूले.

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लेकिन बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि भविष्य में जो कुछ सामने आएगा वह दक्षिण एशियाई राजनीति की दिशा निर्धारित करेगा.

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