ETV Bharat / bharat

Scindia Family King Maker: राजनीति की 'किंग मेकर' फैमिली और 'सियासी महल' का असर, क्या इस रुतबे को बरकरार रख पाएंगे सिंधिया

मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया महल का काफी दखल देखने मिलता है, ये दखल कोई आज से नहीं बल्कि विजयाराजे सिंधिया के समय से हैं. जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे, तो कहा जाता था कि चंबल-अंचल की राजनीति महल से ही होती है. वहीं बीजेपी में शामिल होने के बाद काफी कुछ समीकरण बदले हैं. यह चुनाव कहीं न कहीं सिंधिया सिंधिया के साख का भी चुनाव है.

Scindia Palace Role in MP
सियासी महल
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 3, 2023, 8:20 PM IST

Updated : Nov 3, 2023, 8:26 PM IST

वरिष्ठ पत्रकार की राय

ग्वालियर। राजशाही से राजपथ तक और सिंहासन से सियासत तक ये सफर ये फैसले आसान नहीं होते, लेकिन आजादी के बाद बहुत सारे खानदान सियासत में शुमार होने के लिये आ गये. जहां कुछ रियासतों को कामयाबी मिली और कुछ इतिहास के पन्ने में गुम हो गये, लेकिन ग्वालियर का एक शाही खानदान ऐसा भी है. जिसकी तीन पीढ़ियां शाही ठाठ का त्याग कर राजनीति के क्षेत्र में कार्य कर रही है. हम बात कर रहे हैं सिंधिया वंश की. जिसकी तीन पीढ़ियों का देश और प्रदेश की राजनीति में अहम योगदान रहा है.

हमेशा से सिंधिया राजवंश की पीढ़ी ने राजनीति में किंग नहीं बल्कि किंग मेकर की भूमिका में आगे रहे हैं, तो पढ़िए ग्वालियर संवाददाता अनिल गैर की सिंधिया वंश की सियासी इतिहास के इस महल की कहानी...

सिंधिया राजवंश की कहानी: सिंधिया राजवंश ने 1947 तक भारत के स्वतंत्रता तक ग्वालियर पर शासन किया. तब महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने भारत में अपनी रियासत को विलय करने की मंजूरी तत्कालीन प्रधानमंत्री को दे दी. ग्वालियर अन्य रियासतों के साथ विलय के साथ मध्य भारत का नया राज्य बन गया और जाॅर्ज जीवाजीराव ने राज्य प्रमुख के रूप में 28 माई 1948 से 31 अक्टूबर 1956 तक कार्य किया. जीवाजीराव सिंधिया आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में किसी राजवंश परिवार के पहले राजनीतिक हस्ती थे और देश के प्रधानमंत्री नेहरू के काफी करीबी माने जाते थे.

विजयाराजे सिंधिया को राजनीति में उतारा: नेहरू भी इस बात को जानते थे. कोई भी राजवंश हस्ती का सीधा संबंध जनता से होता है, इसलिये उन्होंने जीवाजीराव सिंधिया से उनकी पत्नी विजयाराजे सिंधिया को कांग्रेस में शामिल होने के लिये कहा. विजयाराजे सिंधिया को कांग्रेस में शामिल करने के बाद चुनावी रण में उतारने के लिये तैयार किया. विजयाराजे सिंधिया 1957 में पहली बार चुनावी रण में उतरीं और विजयी हुईं, लेकिन 1962 में महाराजा जीवाजीराव सिंधिया का देहांत हो गया.

Scindia Family King Maker
अटल बिहारी वीजपेयी के साथ विजयाराजे सिंधिया

विजयाराजे के बाद माधवराव ने लड़ा चुनाव: 1962 में राजमाता विजयाराज सिंधिया लोकसभा के लिये निर्वाचित हुईं और इस प्रकार सिंधिया परिवार की चुनावी राजनीति में जीवन यात्रा प्रारंभ हुई. वह 1967 और 1962 , 1967, 1971, 1978 और 1989 और 1990 के चुनाव में रिकार्ड तोड़ जीत हासिल की. राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के कई दिग्गज जैसे महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और केपी सिंह को चुनावी रण में मात दी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की प्रभावशाली नेता होने के बावजूद भी उनके पुत्र माधवराव सिंधिया 1971 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव लडे़ और लोकसभा के लिये निर्वाचित हुए. 25 जनवरी 2001 में उनका निधन हो गया. माधवराव सिंधिया भी केंद्र की राजनीति में पहले ऐसे व्यक्ति थे. जिन्होंने ग्वालियर के साथ-साथ प्रदेश का प्रतिनिधत्व किया. कई मंत्री पदों पर रहकर ग्वालियर के लिये कार्य किया.

Scindia Palace Role in MP
माधवराव सिंधिया

पिता के निधन के बाद बेटे ज्योतिरादित्य हुए सक्रिय: माधवराव के निधन के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया सक्रिय राजनीति में आये और 2004 में पहली बार शिवपुरी और गुना लोकसभा सीट से निर्वचित हुये. सिंधिया राजवंश की राजपथ तक यात्रा यहां तक खत्म नहीं होती, बल्कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया की एक पुत्री वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान पूर्व सीएम है और दूसरी बेटी यशोधरा राजे मध्यप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री है. मतलब राजमाता की जो सियासी विरासत है. इस संभालने का काम उनकी बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजेश सिंधिया ने भी किया है और वह अभी भी निरंतर जारी है.

Scindia Palace Role in MP
यशोधरा राजे सिंधिया

यहां पढ़ें...

कभी चंबल-अंचल में महल से चलती थी कांग्रेस की राजनीति: ग्वालियर की बात की जाए तो सिंधिया रियासत का बोलबाला ग्वालियर में रहा है और सक्रिय राजनीति में दखल भी. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आये हैं. जब वह कांग्रेस में थे, तो ग्वालियर चंबल-अंचल के सबसे कद्दावर नेता माने जाते थे. बताया जाता है, कैसे ग्वालियर चंबल अंचल में कांग्रेस की राजनीति उनके महल यानी जय विलास पैलेस से चलती थी. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में हैं, तो लगातार अपना कद बढ़ाने के लिए पूरी दम लगा रहे हैं, लेकिन बीजेपी में अपने कद और किंग मेकर की भूमिका में आने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ेगा, क्योंकि यहां पर पहले से ही कई ऐसे दिग्गज नेता हैं, जो पार्टी में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं.

इसलिए ज्योतारादित्य सिंधिया कांग्रेस की राह पर चल रही है. अभी हाल में ही उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को महल में बुलाकर शाही भोज कराया और फिर पीएम नरेंद्र मोदी को अपने स्कूल में बुलाया. यहां पीएम मोदी ने सिंधिया को गुजरात का दामाद बताया और जमकर तारीफ की.

Scindia
ज्योतिरादित्य सिंधिया

चंबल अंचल में खुद को सर्वमान्य बनाने की होड़ में लगे सिंधिया: वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते हैं कि जब कांग्रेस में थे, तो वह पूरे ग्वालियर चंबल अंचल के सर्वेसर्वा थे. अपने महल से ही कांग्रेस को चलाते थे. वैसा ही वह बीजेपी में कोशिश कर रहे हैं. अपने आपको अंचल का सबसे बड़ा सर्वमान्य नेता बनाने की होड़ में लगे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने आप को ग्वालियर चंबल अंचल का किंग मेकर बनाने की तैयारी में हैं और उसके लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार की राय

ग्वालियर। राजशाही से राजपथ तक और सिंहासन से सियासत तक ये सफर ये फैसले आसान नहीं होते, लेकिन आजादी के बाद बहुत सारे खानदान सियासत में शुमार होने के लिये आ गये. जहां कुछ रियासतों को कामयाबी मिली और कुछ इतिहास के पन्ने में गुम हो गये, लेकिन ग्वालियर का एक शाही खानदान ऐसा भी है. जिसकी तीन पीढ़ियां शाही ठाठ का त्याग कर राजनीति के क्षेत्र में कार्य कर रही है. हम बात कर रहे हैं सिंधिया वंश की. जिसकी तीन पीढ़ियों का देश और प्रदेश की राजनीति में अहम योगदान रहा है.

हमेशा से सिंधिया राजवंश की पीढ़ी ने राजनीति में किंग नहीं बल्कि किंग मेकर की भूमिका में आगे रहे हैं, तो पढ़िए ग्वालियर संवाददाता अनिल गैर की सिंधिया वंश की सियासी इतिहास के इस महल की कहानी...

सिंधिया राजवंश की कहानी: सिंधिया राजवंश ने 1947 तक भारत के स्वतंत्रता तक ग्वालियर पर शासन किया. तब महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने भारत में अपनी रियासत को विलय करने की मंजूरी तत्कालीन प्रधानमंत्री को दे दी. ग्वालियर अन्य रियासतों के साथ विलय के साथ मध्य भारत का नया राज्य बन गया और जाॅर्ज जीवाजीराव ने राज्य प्रमुख के रूप में 28 माई 1948 से 31 अक्टूबर 1956 तक कार्य किया. जीवाजीराव सिंधिया आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में किसी राजवंश परिवार के पहले राजनीतिक हस्ती थे और देश के प्रधानमंत्री नेहरू के काफी करीबी माने जाते थे.

विजयाराजे सिंधिया को राजनीति में उतारा: नेहरू भी इस बात को जानते थे. कोई भी राजवंश हस्ती का सीधा संबंध जनता से होता है, इसलिये उन्होंने जीवाजीराव सिंधिया से उनकी पत्नी विजयाराजे सिंधिया को कांग्रेस में शामिल होने के लिये कहा. विजयाराजे सिंधिया को कांग्रेस में शामिल करने के बाद चुनावी रण में उतारने के लिये तैयार किया. विजयाराजे सिंधिया 1957 में पहली बार चुनावी रण में उतरीं और विजयी हुईं, लेकिन 1962 में महाराजा जीवाजीराव सिंधिया का देहांत हो गया.

Scindia Family King Maker
अटल बिहारी वीजपेयी के साथ विजयाराजे सिंधिया

विजयाराजे के बाद माधवराव ने लड़ा चुनाव: 1962 में राजमाता विजयाराज सिंधिया लोकसभा के लिये निर्वाचित हुईं और इस प्रकार सिंधिया परिवार की चुनावी राजनीति में जीवन यात्रा प्रारंभ हुई. वह 1967 और 1962 , 1967, 1971, 1978 और 1989 और 1990 के चुनाव में रिकार्ड तोड़ जीत हासिल की. राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के कई दिग्गज जैसे महेंद्र सिंह कालूखेड़ा और केपी सिंह को चुनावी रण में मात दी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की प्रभावशाली नेता होने के बावजूद भी उनके पुत्र माधवराव सिंधिया 1971 में कांग्रेस पार्टी से चुनाव लडे़ और लोकसभा के लिये निर्वाचित हुए. 25 जनवरी 2001 में उनका निधन हो गया. माधवराव सिंधिया भी केंद्र की राजनीति में पहले ऐसे व्यक्ति थे. जिन्होंने ग्वालियर के साथ-साथ प्रदेश का प्रतिनिधत्व किया. कई मंत्री पदों पर रहकर ग्वालियर के लिये कार्य किया.

Scindia Palace Role in MP
माधवराव सिंधिया

पिता के निधन के बाद बेटे ज्योतिरादित्य हुए सक्रिय: माधवराव के निधन के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया सक्रिय राजनीति में आये और 2004 में पहली बार शिवपुरी और गुना लोकसभा सीट से निर्वचित हुये. सिंधिया राजवंश की राजपथ तक यात्रा यहां तक खत्म नहीं होती, बल्कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया की एक पुत्री वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान पूर्व सीएम है और दूसरी बेटी यशोधरा राजे मध्यप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री है. मतलब राजमाता की जो सियासी विरासत है. इस संभालने का काम उनकी बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजेश सिंधिया ने भी किया है और वह अभी भी निरंतर जारी है.

Scindia Palace Role in MP
यशोधरा राजे सिंधिया

यहां पढ़ें...

कभी चंबल-अंचल में महल से चलती थी कांग्रेस की राजनीति: ग्वालियर की बात की जाए तो सिंधिया रियासत का बोलबाला ग्वालियर में रहा है और सक्रिय राजनीति में दखल भी. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आये हैं. जब वह कांग्रेस में थे, तो ग्वालियर चंबल-अंचल के सबसे कद्दावर नेता माने जाते थे. बताया जाता है, कैसे ग्वालियर चंबल अंचल में कांग्रेस की राजनीति उनके महल यानी जय विलास पैलेस से चलती थी. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में हैं, तो लगातार अपना कद बढ़ाने के लिए पूरी दम लगा रहे हैं, लेकिन बीजेपी में अपने कद और किंग मेकर की भूमिका में आने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ेगा, क्योंकि यहां पर पहले से ही कई ऐसे दिग्गज नेता हैं, जो पार्टी में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं.

इसलिए ज्योतारादित्य सिंधिया कांग्रेस की राह पर चल रही है. अभी हाल में ही उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को महल में बुलाकर शाही भोज कराया और फिर पीएम नरेंद्र मोदी को अपने स्कूल में बुलाया. यहां पीएम मोदी ने सिंधिया को गुजरात का दामाद बताया और जमकर तारीफ की.

Scindia
ज्योतिरादित्य सिंधिया

चंबल अंचल में खुद को सर्वमान्य बनाने की होड़ में लगे सिंधिया: वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया चाहते हैं कि जब कांग्रेस में थे, तो वह पूरे ग्वालियर चंबल अंचल के सर्वेसर्वा थे. अपने महल से ही कांग्रेस को चलाते थे. वैसा ही वह बीजेपी में कोशिश कर रहे हैं. अपने आपको अंचल का सबसे बड़ा सर्वमान्य नेता बनाने की होड़ में लगे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने आप को ग्वालियर चंबल अंचल का किंग मेकर बनाने की तैयारी में हैं और उसके लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं.

Last Updated : Nov 3, 2023, 8:26 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.