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स्कूल वाले पैरेंटस से मांग रहे हैं सहमति पत्र, साइन करने से पहले नियम-कायदा जान लें

भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच चरम पर हो सकती है. आईसीएमआर और आईआईटी के मैथ्स एक्सपर्ट ने यह अनुमान लगाया है. ऐसे में एक सितंबर से स्कूलों के खुलने से पैरेंटस कन्फ्यूज हैं, बच्चों को स्कूल भेजे या नहीं. हम इस रिपोर्ट में इससे जुड़ी आशंकाओं और संभावनाओं के साथ एक्सपर्ट की राय बता रहे हैं, इससे अभिभावकों को फैसला लेने में आसानी होगी.

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Published : Aug 30, 2021, 9:37 PM IST

Updated : Aug 30, 2021, 11:32 PM IST

हैदराबाद : एक ओर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) लहर सितंबर और अक्टूबर के बीच कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी कर रहा है, दूसरी ओर एक सितंबर से करीब दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश समेत सभी राज्यों में स्कूल खुल रहे हैं. इन राज्यों के शासन ने 50 प्रतिशत क्षमता के साथ स्कूल खोलने के निर्देश दिए हैं. चिंता के इस सबब के बीच स्कूलों की ओर से मांगे गए सहमति पत्र ( consent letter) ने पैरेंट्स को दुविधा में डाल दिया है.

दरअसल स्कूल सरकारी हों या प्राइवेट, सभी ने सहमति पत्र ( consent letter) में बच्चों को कोविड से बचाकर रखने का जिम्मा पैरेंटस के सिर पर डाल दिया है. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि पैरेंटस अपने बच्चे का ख्याल रखेंगे मगर स्कूल प्रबंधन क्या कोविड प्रोटोकॉल के पालन और सैनिटेशन की व्यवस्था की गारंटी लेगा. यदि लेगा तो यह भी सहमति पत्र ( consent letter) लिखा जाना चाहिए.

मध्यप्रदेश के एक स्कूल से जारी सहमति पत्र
मध्यप्रदेश के एक स्कूल से जारी सहमति पत्र

क्या है स्कूलों का कोविड प्रोटोकॉल

  • पैरंटस यह सुनिश्चित करें कि छात्रों के पास मास्क और सैनटाइजर हो. मास्क के बिना स्कूलों में प्रवेश वर्जित होगा.
  • स्कूल में कुल छात्रों की संख्या के 50 फीसदी की ही अटेंडेंस होगी. एंट्री से पहले स्टाफ और छात्रों की थर्मल स्क्रीनिंग होगी.
  • स्कूलों में प्रार्थना सभा का नहीं होगा आयोजन, पैरंटस को यह ध्यान रखना होगा कि उनके बच्चे की स्टेशनरी सैनेटाइज किया जाए.
  • स्कूल के अंदर भोजन और स्टेशनरी की लेन-देन नहीं की जा सकती है.
  • स्कूल में थूकने और प्रोटोकॉल तोड़ने वाले छात्रों पर नियमानुसार आर्थिक दंड लगेगा.
  • यदि बच्चा किसी कारण से कोविड संक्रमित हो जाता है तो उसके इलाज की जिम्मेदारी स्कूल की नहीं, अभिभावकों की होगी.
  • स्कूल भेजने से पहले अभिभावकों को यह देखना होगा कि बच्चे में कोविड के लक्षण बुखार और खांसी नहीं हो.
  • सहमति पत्र पर साइन करने के लिए अभिभावकों पर दवाब नहीं बनाया जाएगा.
    पैरेंटस को सता रही बच्चों के भविष्य की चिंता.
    पैरेंटस को सता रही बच्चों के भविष्य की चिंता.

अगर बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगे तो क्या होगा : अभी ज्यादातर स्कूलों में ऑनलाइन क्लास हो रही है. पैरेंटस की दुविधा यह है कि स्कूल खुलने के बाद ऑनलाइन क्लासेज बंद हो जाएंगे. ऐसे में जो माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहेंगे, उनके पास दूसरा ऑप्शन क्या होगा. मजबूरन उन्हें सहमति पत्र ( consent letter) पर सिग्नेचर करना होगा या बच्चे को घर में बिना पढ़ाई-लिखाई के बैठाना होगा. पंजाब, ओडिशा, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में सीनियर क्लासेज के लिए स्कूल पहले ही खोले जा चुके हैं. सीनियर क्लास के बच्चों से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की उम्मीद की जा सकती है, मगर छोटे स्टूडेंट का क्या होगा.

बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं पैरेंट्स : अभी बच्चों के लिए कोई वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है. पैरेंटिंग ब्रांड रैबिटैट के ताजा सर्वे के अनुसार, 89.7 पर्सेंट अभिभावक अपने बच्चों को टीकाकरण के बिना स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं. जबकि 10.3 फीसदी ने कहा कि वे टीकाकरण के बिना भी अपने बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं. कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्किल के सर्वे में यह सामने आया कि 48 पर्सेंट पैरेंट्स बच्चे को बिना वैक्सीनेशन स्कूल नहीं भेजना चाहते. जबकि 30 पर्सेंट लोग उस हालत में अपने डिपेंडेंट को तभी स्कूल भेजेंगे, जब जिले में कोरोना के केस जीरो या शून्य हो. यह सर्वे अगस्त के शुरूआत में किया गया था, इसमें देशभर के 361 जिलों के अभिभावक शामिल थे.

स्कूलों में कोरोना प्रोटोकॉल का करना होगा पालन.
स्कूलों में कोरोना प्रोटोकॉल का करना होगा पालन.

स्कूल खोलने के समर्थन में हैं शिक्षाविद और एक्सपर्ट : देश के शिक्षाविदों ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर स्कूल खोलने की मांग की थी. उन्होंने स्कूल खोलने के संबंध में कई तर्क दिए थे.

  • देश के 24 राज्यों में 3 करोड़ बच्चों के पास डिजिटल डिवाइस नहीं है. ऐसे में वह करीब पिछले 17 महीने से पढ़ाई नहीं कर रहे हैं. इससे बच्चों का नुकसान हो रहा है.
  • स्कूल नहीं जाने से बच्चों का मानसिक विकास भी प्रभावित हो रहा है. वह एक्टिविटी में काफी पीछे जा रहे हैं. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से पढ़ना उनकी सेहत के लिए भी अच्छा नहीं है.
  • शिक्षा में कमी बच्चों के भविष्य पर बड़े स्तर पर प्रभाव डालेगी. स्कूलों के लंबे समय तक बंद होने से भविष्य में बच्चों के सामने गरीबी से लेकर नौकरी तक की समस्याएं आ सकती हैं.
  • महामारी विशेषज्ञ डॉ चंद्रकांत लहरिया ने भी कहा कि यह सामने आ चुका है कि बच्चों में कोरोना का खतरा बहुत कम है, इसलिए उन्हें शिक्षा से वंचित रखना गलत है.
  • कई सर्वे और शोध में ये बात साबित हो चुकी है कि बच्चों को कोरोना से नुकसान की संभावना बहुत कम है, तो स्कूलों को खोला ही जाना चाहिए.
  • आईसीएमआर के डीजी डॉ. बलराम भार्गव ने कहा था कि छोटे बच्चे वायरल इंफेक्शन को आसानी से हैंडल कर लेते हैं. उनमें रिसेप्टर्स की संख्या कम होती है. इसलिए उनके संक्रमित होने की आशंका कम है.
  • देश में अब तक 64 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की एक डोज दी जा चुकी है, जो काफी हद तक सुरक्षित माहौल बनाने के लिए पर्याप्त है. अभी जो मामले आ रहे हैं, उनमें बच्चों की संख्या बहुत कम है.
  • यूरोप के कई देशों में पूरे कोरोना काल में प्राइमरी स्कूल बंद नहीं किए गए थे. अगर भारत में सावधानी के साथ स्कूलों को खोला जाए, तो नुकसान की संभावना कम होगी.
    सोशल डिस्टेंडिंग का रखना होगा ख्याल.
    सोशल डिस्टेंसिंग का रखना होगा ख्याल.

संसद की स्टैंडिंग कमिटी भी स्कूल खोलने के पक्ष में : अभी संसद के मॉनसून सत्र में ही एजुकेशन पर संसदीय स्टैंडिंग कमेटी ने जो रिपोर्ट दी थी, वह ऑनलाइन क्लास करने वालों के लिए भी अच्छा नहीं है. कमेटी के रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल नहीं खुलने से परिवारों के सामाजिक तानेबाने पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. पूरे दिन घरों में बंद रहने से बच्चों का मेंटल हेल्थ बिगड़ रहा है, इसलिए स्कूलों को बंद नहीं रखना चाहिए.

वैसे भी ज्यादातर स्कूल फोन से अभिभावकों की राय पूछ रहे हैं. अगर आप अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजना चाहते तो प्रबंधन से बात करें ताकि ऑनलाइन क्लासेज की सुविधा मिलती रहे. यदि भेजना जरूरी है तो पता करें कि वहां के स्टाफ वैक्सीन ले चुके या नहीं. साथ ही, स्कूल में कोविड संबंधी उपायों की जानकारी लें या मुआयना कर लें. बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के अलावा साफ-सफाई, सैनिटाइजर के प्रयोग के बारे में बताएं. बीच-बीच में स्कूल जाकर वहां की स्थिति जरूर देखें.

हैदराबाद : एक ओर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) लहर सितंबर और अक्टूबर के बीच कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी कर रहा है, दूसरी ओर एक सितंबर से करीब दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश समेत सभी राज्यों में स्कूल खुल रहे हैं. इन राज्यों के शासन ने 50 प्रतिशत क्षमता के साथ स्कूल खोलने के निर्देश दिए हैं. चिंता के इस सबब के बीच स्कूलों की ओर से मांगे गए सहमति पत्र ( consent letter) ने पैरेंट्स को दुविधा में डाल दिया है.

दरअसल स्कूल सरकारी हों या प्राइवेट, सभी ने सहमति पत्र ( consent letter) में बच्चों को कोविड से बचाकर रखने का जिम्मा पैरेंटस के सिर पर डाल दिया है. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि पैरेंटस अपने बच्चे का ख्याल रखेंगे मगर स्कूल प्रबंधन क्या कोविड प्रोटोकॉल के पालन और सैनिटेशन की व्यवस्था की गारंटी लेगा. यदि लेगा तो यह भी सहमति पत्र ( consent letter) लिखा जाना चाहिए.

मध्यप्रदेश के एक स्कूल से जारी सहमति पत्र
मध्यप्रदेश के एक स्कूल से जारी सहमति पत्र

क्या है स्कूलों का कोविड प्रोटोकॉल

  • पैरंटस यह सुनिश्चित करें कि छात्रों के पास मास्क और सैनटाइजर हो. मास्क के बिना स्कूलों में प्रवेश वर्जित होगा.
  • स्कूल में कुल छात्रों की संख्या के 50 फीसदी की ही अटेंडेंस होगी. एंट्री से पहले स्टाफ और छात्रों की थर्मल स्क्रीनिंग होगी.
  • स्कूलों में प्रार्थना सभा का नहीं होगा आयोजन, पैरंटस को यह ध्यान रखना होगा कि उनके बच्चे की स्टेशनरी सैनेटाइज किया जाए.
  • स्कूल के अंदर भोजन और स्टेशनरी की लेन-देन नहीं की जा सकती है.
  • स्कूल में थूकने और प्रोटोकॉल तोड़ने वाले छात्रों पर नियमानुसार आर्थिक दंड लगेगा.
  • यदि बच्चा किसी कारण से कोविड संक्रमित हो जाता है तो उसके इलाज की जिम्मेदारी स्कूल की नहीं, अभिभावकों की होगी.
  • स्कूल भेजने से पहले अभिभावकों को यह देखना होगा कि बच्चे में कोविड के लक्षण बुखार और खांसी नहीं हो.
  • सहमति पत्र पर साइन करने के लिए अभिभावकों पर दवाब नहीं बनाया जाएगा.
    पैरेंटस को सता रही बच्चों के भविष्य की चिंता.
    पैरेंटस को सता रही बच्चों के भविष्य की चिंता.

अगर बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगे तो क्या होगा : अभी ज्यादातर स्कूलों में ऑनलाइन क्लास हो रही है. पैरेंटस की दुविधा यह है कि स्कूल खुलने के बाद ऑनलाइन क्लासेज बंद हो जाएंगे. ऐसे में जो माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहेंगे, उनके पास दूसरा ऑप्शन क्या होगा. मजबूरन उन्हें सहमति पत्र ( consent letter) पर सिग्नेचर करना होगा या बच्चे को घर में बिना पढ़ाई-लिखाई के बैठाना होगा. पंजाब, ओडिशा, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में सीनियर क्लासेज के लिए स्कूल पहले ही खोले जा चुके हैं. सीनियर क्लास के बच्चों से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने की उम्मीद की जा सकती है, मगर छोटे स्टूडेंट का क्या होगा.

बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं पैरेंट्स : अभी बच्चों के लिए कोई वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है. पैरेंटिंग ब्रांड रैबिटैट के ताजा सर्वे के अनुसार, 89.7 पर्सेंट अभिभावक अपने बच्चों को टीकाकरण के बिना स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं. जबकि 10.3 फीसदी ने कहा कि वे टीकाकरण के बिना भी अपने बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं. कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्किल के सर्वे में यह सामने आया कि 48 पर्सेंट पैरेंट्स बच्चे को बिना वैक्सीनेशन स्कूल नहीं भेजना चाहते. जबकि 30 पर्सेंट लोग उस हालत में अपने डिपेंडेंट को तभी स्कूल भेजेंगे, जब जिले में कोरोना के केस जीरो या शून्य हो. यह सर्वे अगस्त के शुरूआत में किया गया था, इसमें देशभर के 361 जिलों के अभिभावक शामिल थे.

स्कूलों में कोरोना प्रोटोकॉल का करना होगा पालन.
स्कूलों में कोरोना प्रोटोकॉल का करना होगा पालन.

स्कूल खोलने के समर्थन में हैं शिक्षाविद और एक्सपर्ट : देश के शिक्षाविदों ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर स्कूल खोलने की मांग की थी. उन्होंने स्कूल खोलने के संबंध में कई तर्क दिए थे.

  • देश के 24 राज्यों में 3 करोड़ बच्चों के पास डिजिटल डिवाइस नहीं है. ऐसे में वह करीब पिछले 17 महीने से पढ़ाई नहीं कर रहे हैं. इससे बच्चों का नुकसान हो रहा है.
  • स्कूल नहीं जाने से बच्चों का मानसिक विकास भी प्रभावित हो रहा है. वह एक्टिविटी में काफी पीछे जा रहे हैं. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से पढ़ना उनकी सेहत के लिए भी अच्छा नहीं है.
  • शिक्षा में कमी बच्चों के भविष्य पर बड़े स्तर पर प्रभाव डालेगी. स्कूलों के लंबे समय तक बंद होने से भविष्य में बच्चों के सामने गरीबी से लेकर नौकरी तक की समस्याएं आ सकती हैं.
  • महामारी विशेषज्ञ डॉ चंद्रकांत लहरिया ने भी कहा कि यह सामने आ चुका है कि बच्चों में कोरोना का खतरा बहुत कम है, इसलिए उन्हें शिक्षा से वंचित रखना गलत है.
  • कई सर्वे और शोध में ये बात साबित हो चुकी है कि बच्चों को कोरोना से नुकसान की संभावना बहुत कम है, तो स्कूलों को खोला ही जाना चाहिए.
  • आईसीएमआर के डीजी डॉ. बलराम भार्गव ने कहा था कि छोटे बच्चे वायरल इंफेक्शन को आसानी से हैंडल कर लेते हैं. उनमें रिसेप्टर्स की संख्या कम होती है. इसलिए उनके संक्रमित होने की आशंका कम है.
  • देश में अब तक 64 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की एक डोज दी जा चुकी है, जो काफी हद तक सुरक्षित माहौल बनाने के लिए पर्याप्त है. अभी जो मामले आ रहे हैं, उनमें बच्चों की संख्या बहुत कम है.
  • यूरोप के कई देशों में पूरे कोरोना काल में प्राइमरी स्कूल बंद नहीं किए गए थे. अगर भारत में सावधानी के साथ स्कूलों को खोला जाए, तो नुकसान की संभावना कम होगी.
    सोशल डिस्टेंडिंग का रखना होगा ख्याल.
    सोशल डिस्टेंसिंग का रखना होगा ख्याल.

संसद की स्टैंडिंग कमिटी भी स्कूल खोलने के पक्ष में : अभी संसद के मॉनसून सत्र में ही एजुकेशन पर संसदीय स्टैंडिंग कमेटी ने जो रिपोर्ट दी थी, वह ऑनलाइन क्लास करने वालों के लिए भी अच्छा नहीं है. कमेटी के रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल नहीं खुलने से परिवारों के सामाजिक तानेबाने पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. पूरे दिन घरों में बंद रहने से बच्चों का मेंटल हेल्थ बिगड़ रहा है, इसलिए स्कूलों को बंद नहीं रखना चाहिए.

वैसे भी ज्यादातर स्कूल फोन से अभिभावकों की राय पूछ रहे हैं. अगर आप अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजना चाहते तो प्रबंधन से बात करें ताकि ऑनलाइन क्लासेज की सुविधा मिलती रहे. यदि भेजना जरूरी है तो पता करें कि वहां के स्टाफ वैक्सीन ले चुके या नहीं. साथ ही, स्कूल में कोविड संबंधी उपायों की जानकारी लें या मुआयना कर लें. बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग के अलावा साफ-सफाई, सैनिटाइजर के प्रयोग के बारे में बताएं. बीच-बीच में स्कूल जाकर वहां की स्थिति जरूर देखें.

Last Updated : Aug 30, 2021, 11:32 PM IST
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