नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय सेना के एक जवान की पेंशन रोकने के मामले की सुनवाई करते सोमवार को केंद्र सरकार से उसे दिव्यांग पेंशन देने पर विचार करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि सरकार ने जवान का पेंशन रोकने का भले ही एक वैध बिंदु देखा हो, लेकिन हमें भी न्याय के मानवीय पक्ष को भी ध्यान में रखना होगा. दरअसल, उक्त जवान को शराब पीने की आदत थी. इसी कारण उसे अनुशासनहीनता के लिए सेना से निष्कासित कर दिया गया था. बाद में सेना के ही ट्रिब्यूनल ने उसे पेंशन देने का आदेश दिया था.
बता दें कि अनुशासनहीनता के लिए दोषी पाए गए जवानों को पेंशन नहीं मिलती, लेकिन ट्रिब्यूनल ने उसे दिव्यांग मानते हुए पेंशन देने का आदेश दिया था. इस मामले में केंद्र सरकार की कोर्ट में दलील थी कि ट्रिब्यूनल के पेंशन देने का आदेश सही नहीं है. सरकार का तर्क था कि अनुशासनहीनता को दिव्यांगता नहीं माना जा सकता है. शराब पीने की लत अनुशासनहीनता मानी जाती है.
इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हमारी सेना के जवान जम्मू कश्मीर में कठिन परिस्थितियों में तैनात रहते हैं. हम जब शहीद हुए जवानों के ताबूत को देखते हैं तो अलग ही अहसास होता है. यह जवान कारगिल युद्ध में शामिल था. इसलिए सरकार को बड़ा दिल दिखाते हुए इस मामले को अलग से देखना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने एएसजी दीवान को इस मामले में केंद्र सरकार से निर्देश लेने और अदालत के सुझावों पर विचार करने को कहते हुए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी.