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CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 31 अक्टूबर को - Supreme Court on CAA

प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीएए (CAA) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा. याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को फिर सुनवाई होगी.

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उच्चतम न्यायालय
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Published : Sep 12, 2022, 8:30 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि वह संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को सुनवाई करेगा. इस कानून में 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आ चुके पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ना के शिकार गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान है. प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस आर भट की पीठ ने कहा कि मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा.

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों के लोगों को भारत की नागरिकता देने के प्रावधान वाले संशोधित कानून से मुस्लिम प्रवासियों को बाहर रखने पर विपक्षी दलों, नेताओं और अन्य लोगों ने तीखी आलोचना की है.

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि शीर्ष अदालत के समक्ष दायर याचिकाओं में कई मुद्दे उठाए गए हैं. उन्होंने कहा, 'जहां तक कुछ संशोधनों और चुनौती का संबंध है, हमारा जवाब दाखिल किया गया है. कुछ मामलों में हमारा जवाब अभी दाखिल किया जाना बाकी है.' मेहता ने कहा कि तैयारी के लिए और मामले की सुनवाई के लिए भी कुछ समय की आवश्यकता होगी.

सॉलिसिटर जनरल का कार्यालय मामलों की लिस्ट तैयार करेगा : पीठ ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल का कार्यालय उन मामलों की पूरी सूची तैयार करेगा जिन्हें याचिकाओं में उठाई गई चुनौती के आधार पर विभिन्न खंडों में रखा जाएगा. पीठ ने कहा, 'केंद्र इसके बाद चुनौतियों के इन खंडों के संबंध में अपनी उचित प्रतिक्रिया दर्ज करेगा.' साथ ही पीठ ने कहा, 'इस संबंध में जरूरी काम आज से चार सप्ताह के भीतर किया जाए.'

पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के 22 जनवरी, 2020 के आदेश पर उसका ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिसके संदर्भ में असम और पूर्वोत्तर से आने वाले मामलों को पहले ही अलग करने का निर्देश दिया गया था. पीठ ने कहा, 'इन मामलों को 31 अक्टूबर को निर्देश के लिए अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया जाता है. पीठ ने कहा, 'इस बीच, सभी नए मामलों में नोटिस जारी किए जाएं, जहां अब तक इस अदालत द्वारा नोटिस जारी नहीं किया गया है.'

पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, 'कामकाज को व्यवस्थित करें और मान लें कि हम तीन-न्यायाधीशों की पीठ का संदर्भ देंगे.' मामले में पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि ये 'बहुत महत्वपूर्ण मामले हैं जो बहुत लंबे समय से लटके हुए हैं' और इन्हें सुनने और जल्दी से निर्णय लेने की आवश्यकता है. न्यायमूर्ति ललित ने कहा, 'हमने अभी इस मुद्दे पर चर्चा की थी कि क्या हमें इस अदालत के कम से कम तीन न्यायाधीशों का संदर्भ देना चाहिए. मुझे लगा कि इन सभी प्रारंभिक बातों को समाप्त होने दें और फिर हम एक संदर्भ दे सकते हैं.'

जानिए किसकी याचिका में क्या कहा गया : इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) की प्रमुख अर्जी सहित कुल 220 याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था. जनवरी 2020 में, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि वह केंद्र की बात सुने बिना सीएए के अमल पर रोक नहीं लगाएगी. सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगते हुए शीर्ष अदालत ने देश के उच्च न्यायालयों को इस मुद्दे पर लंबित याचिकाओं पर सुनवाई से भी रोक दिया था.

सीएए को चुनौती देने वाली पार्टी आईयूएमएल ने कहा है कि यह कानून समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और धर्म के आधार पर बहिष्कार करके अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता प्रदान करने का इरादा रखता है. अधिवक्ता पल्लवी प्रताप के माध्यम से दायर आईयूएमएल की याचिका में कानून के अमल पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया गया है.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा दायर एक अर्जी में कहा गया है कि कानून संविधान के तहत परिकल्पित मूल मौलिक अधिकारों पर 'कुठाराघात' है और 'समान को असमान' मानता है. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी समेत अन्य ने संशोधित कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की हैं.

मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, गैर सरकारी संगठन 'रिहाई मंच', अधिवक्ता एम एल शर्मा और विधि छात्रों ने भी इस कानून को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है.

पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की राष्ट्रीय शराब रोकथाम नीति की मांग वाली याचिका

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि वह संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को सुनवाई करेगा. इस कानून में 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आ चुके पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ना के शिकार गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान है. प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित और न्यायमूर्ति एस आर भट की पीठ ने कहा कि मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा.

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों के लोगों को भारत की नागरिकता देने के प्रावधान वाले संशोधित कानून से मुस्लिम प्रवासियों को बाहर रखने पर विपक्षी दलों, नेताओं और अन्य लोगों ने तीखी आलोचना की है.

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि शीर्ष अदालत के समक्ष दायर याचिकाओं में कई मुद्दे उठाए गए हैं. उन्होंने कहा, 'जहां तक कुछ संशोधनों और चुनौती का संबंध है, हमारा जवाब दाखिल किया गया है. कुछ मामलों में हमारा जवाब अभी दाखिल किया जाना बाकी है.' मेहता ने कहा कि तैयारी के लिए और मामले की सुनवाई के लिए भी कुछ समय की आवश्यकता होगी.

सॉलिसिटर जनरल का कार्यालय मामलों की लिस्ट तैयार करेगा : पीठ ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल का कार्यालय उन मामलों की पूरी सूची तैयार करेगा जिन्हें याचिकाओं में उठाई गई चुनौती के आधार पर विभिन्न खंडों में रखा जाएगा. पीठ ने कहा, 'केंद्र इसके बाद चुनौतियों के इन खंडों के संबंध में अपनी उचित प्रतिक्रिया दर्ज करेगा.' साथ ही पीठ ने कहा, 'इस संबंध में जरूरी काम आज से चार सप्ताह के भीतर किया जाए.'

पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के 22 जनवरी, 2020 के आदेश पर उसका ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिसके संदर्भ में असम और पूर्वोत्तर से आने वाले मामलों को पहले ही अलग करने का निर्देश दिया गया था. पीठ ने कहा, 'इन मामलों को 31 अक्टूबर को निर्देश के लिए अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया जाता है. पीठ ने कहा, 'इस बीच, सभी नए मामलों में नोटिस जारी किए जाएं, जहां अब तक इस अदालत द्वारा नोटिस जारी नहीं किया गया है.'

पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा, 'कामकाज को व्यवस्थित करें और मान लें कि हम तीन-न्यायाधीशों की पीठ का संदर्भ देंगे.' मामले में पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि ये 'बहुत महत्वपूर्ण मामले हैं जो बहुत लंबे समय से लटके हुए हैं' और इन्हें सुनने और जल्दी से निर्णय लेने की आवश्यकता है. न्यायमूर्ति ललित ने कहा, 'हमने अभी इस मुद्दे पर चर्चा की थी कि क्या हमें इस अदालत के कम से कम तीन न्यायाधीशों का संदर्भ देना चाहिए. मुझे लगा कि इन सभी प्रारंभिक बातों को समाप्त होने दें और फिर हम एक संदर्भ दे सकते हैं.'

जानिए किसकी याचिका में क्या कहा गया : इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) की प्रमुख अर्जी सहित कुल 220 याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था. जनवरी 2020 में, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि वह केंद्र की बात सुने बिना सीएए के अमल पर रोक नहीं लगाएगी. सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार से चार सप्ताह में जवाब मांगते हुए शीर्ष अदालत ने देश के उच्च न्यायालयों को इस मुद्दे पर लंबित याचिकाओं पर सुनवाई से भी रोक दिया था.

सीएए को चुनौती देने वाली पार्टी आईयूएमएल ने कहा है कि यह कानून समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और धर्म के आधार पर बहिष्कार करके अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता प्रदान करने का इरादा रखता है. अधिवक्ता पल्लवी प्रताप के माध्यम से दायर आईयूएमएल की याचिका में कानून के अमल पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया गया है.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा दायर एक अर्जी में कहा गया है कि कानून संविधान के तहत परिकल्पित मूल मौलिक अधिकारों पर 'कुठाराघात' है और 'समान को असमान' मानता है. राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी समेत अन्य ने संशोधित कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की हैं.

मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, गैर सरकारी संगठन 'रिहाई मंच', अधिवक्ता एम एल शर्मा और विधि छात्रों ने भी इस कानून को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया है.

पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की राष्ट्रीय शराब रोकथाम नीति की मांग वाली याचिका

(पीटीआई-भाषा)

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