नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को राज्य में सांप्रदायिक हिंसा (communal violence in the Tripura) पर दो पत्रकारों की रिपोर्ट (two journalist's reports) पर त्रिपुरा पुलिस की ओर से दर्ज प्राथमिकी (FIRs registered by Tripura Police) से होने वाली कार्यवाही पर रोक लगा दी. इसके साथ ही अदालत ने दो पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए आरोप दर्ज करने पर त्रिपुरा राज्य से जवाब मांगा है.
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ समृद्धि सकुनिया और स्वर्ण झा द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने त्रिपुरा में हालिया हिंसा के कवरेज के लिए उनके खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी.
त्रिपुरा में कथित धार्मिक तोड़फोड़ की हालिया घटनाओं पर रिपोर्टिंग करने वाली दो पत्रकारों पर सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने, शांति भंग करने के इरादे से अपमान करने और आपराधिक साजिश रचने से संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है.
उन्होंने सोशल मीडिया पर गोमती जिले में जले हुए प्रार्थना हॉल और आधे जले हुए कुरान को दिखाते हुए वीडियो पोस्ट किया था जो कथित रूप से नकली बताए जा रहे थे.
शुरुआत में त्रिपुरा पुलिस के साथ पूछताछ के लिए जाने से इनकार कर दिया था, लेकिन अदालत के आदेश के बाद उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था. सीआरपीसी की धारा 46(4) के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर किसी भी महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है.
इसलिए, त्रिपुरा पुलिस ने इसके लिए अदालत से अनुमति मांगी थी और इसे मंजूर कर लिया गया था. बाद में गोमती में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने उन्हें यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि हालांकि अपराध गंभीर प्रकृति के हैं, लेकिन उन्हें पुलिस हिरासत में रखने की आवश्यकता नहीं है और ऐसा करने से उनके व्यक्तिगत आजादी पर अंकुश लगेगा.