ETV Bharat / bharat

शीर्ष अदालत ने कहा- महामारी से बचाने के प्रयास में हम लोगों को आग से मार रहे हैं

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की उस अधिसूचना पर रोक लगा दी, जिसमें उसने अस्पतालों को मार्च, 2022 तक अग्नि सुरक्षा प्रमाण पत्र के बिना चलाने की अनुमति दी थी.

SAVING
SAVING
author img

By

Published : Aug 27, 2021, 6:29 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात सरकार की 8 जुलाई, 2021 की अधिसूचना पर रोक लगा दी, जिसमें उसने कोविड 19 महामारी को देखते हुए अस्पतालों को मार्च, 2022 तक भवन उपयोग (बीयू) और अग्नि सुरक्षा प्रमाण पत्र के बिना चलाने की अनुमति दी थी.

अदालत ने मुताबिक लोगों को महामारी से बचाने के प्रयास में हम लोगों को आग से मार रहे हैं. अदालत ने कहा कि यह राज्यों का दायित्व है कि मरीजों की देखभाल करे. सभी सरकारों ने स्थानों को अस्पतालों में बदल दिया. इसका कोई औचित्य नहीं है कि हम लोगों की सुरक्षा को जोखिम में डालें. जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की.

सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम लोगों को महामारी से बचाने के बजाय आग से लोगों को मार रहे हैं. अगर 2 कमरे की जगह को अस्पताल में तब्दील किया जाता है, तो आपको अनुमति लेनी होगी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सब कुछ नहीं कर सकते लेकिन जो हमारी पहुंच में है, हमें करना चाहिए.

न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि अस्पताल निवेश बन गए हैं. वहीं गुजरात सरकार ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि तीसरी लहर को देखते हुए यह कदम सिर्फ एक व्यावहारिक कदम था.

इसे भी पढ़ें : अनाथ छात्रों की शिक्षा बाधित नहीं होनी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

आपकाे बता दें कि अदालत 26 नवंबर, 2020 को राजकोट गुजरात के अस्पताल में आग की घटना के संबंध में स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कोविड रोगियों सहित रोगियों की मौत हो गई थी. अदालत ने अस्पतालों में फायर एनओसी के संबंध में गुजरात से रिपोर्ट मांगी थी.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात सरकार की 8 जुलाई, 2021 की अधिसूचना पर रोक लगा दी, जिसमें उसने कोविड 19 महामारी को देखते हुए अस्पतालों को मार्च, 2022 तक भवन उपयोग (बीयू) और अग्नि सुरक्षा प्रमाण पत्र के बिना चलाने की अनुमति दी थी.

अदालत ने मुताबिक लोगों को महामारी से बचाने के प्रयास में हम लोगों को आग से मार रहे हैं. अदालत ने कहा कि यह राज्यों का दायित्व है कि मरीजों की देखभाल करे. सभी सरकारों ने स्थानों को अस्पतालों में बदल दिया. इसका कोई औचित्य नहीं है कि हम लोगों की सुरक्षा को जोखिम में डालें. जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की.

सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम लोगों को महामारी से बचाने के बजाय आग से लोगों को मार रहे हैं. अगर 2 कमरे की जगह को अस्पताल में तब्दील किया जाता है, तो आपको अनुमति लेनी होगी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सब कुछ नहीं कर सकते लेकिन जो हमारी पहुंच में है, हमें करना चाहिए.

न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि अस्पताल निवेश बन गए हैं. वहीं गुजरात सरकार ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि तीसरी लहर को देखते हुए यह कदम सिर्फ एक व्यावहारिक कदम था.

इसे भी पढ़ें : अनाथ छात्रों की शिक्षा बाधित नहीं होनी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

आपकाे बता दें कि अदालत 26 नवंबर, 2020 को राजकोट गुजरात के अस्पताल में आग की घटना के संबंध में स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कोविड रोगियों सहित रोगियों की मौत हो गई थी. अदालत ने अस्पतालों में फायर एनओसी के संबंध में गुजरात से रिपोर्ट मांगी थी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.