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योगी से जुड़ा नफरत फैलाने वाला भाषण मामले पर शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्यूबी ने उच्च न्यायालय में उल्लिखित मुद्दों में से एक का जिक्र किया, जो इस प्रकार है, क्या राज्य किसी आपराधिक मामले में प्रस्तावित आरोपी के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के तहत आदेश पारित कर सकता है, जो इस बीच मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाते हैं और संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत प्रदत्त व्यवस्था के अनुसार कार्यकारी प्रमुख हैं.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
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Published : Aug 25, 2022, 9:20 AM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को वर्ष 2007 के कथित नफरत फैलाने वाले भाषण से संबंधित उस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad high Court) के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Uttar Pradesh Yogi Adityanath) शामिल हैं. उच्च न्यायालय (Allahabad high Court) के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ सुनवाई कर रही है. फरवरी, 2018 में दिये गये अपने फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि उसे जांच या मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी देने से इनकार करने की निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई प्रक्रियागत त्रुटि नहीं मिली.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्यूबी ने उच्च न्यायालय में उल्लिखित मुद्दों में से एक का जिक्र किया, जो इस प्रकार है, क्या राज्य किसी आपराधिक मामले में प्रस्तावित आरोपी के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के तहत आदेश पारित कर सकता है, जो इस बीच मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाते हैं और संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत प्रदत्त व्यवस्था के अनुसार कार्यकारी प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को उच्च न्यायालय द्वारा नहीं निपटाया गया था.

पीठ ने कहा, एक और मुद्दा, एक बार जब आप निर्णय और सामग्री के अनुसार गुण-दोष देखते हैं, तो यदि कोई मामला नहीं बनता है, तो मंजूरी का सवाल कहां है. शीर्ष अदालत ने कहा, अगर कोई मामला है, तो मंजूरी का सवाल आएगा. अगर कोई मामला नहीं है, तो मंजूरी का सवाल ही कहां है. इस पर अय्यूबी ने कहा कि मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने के कारण मामला बंद करने की रिपोर्ट दाखिल की गई है. उत्तर प्रदेश की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि मामले में कुछ भी नहीं बचा है. उन्होंने कहा कि सीडी को सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (सीएफएसएल) को भेजा गया था और पता लगा कि इसमें छेड़छाड़ की गई थी.

रोहतगी ने कहा कि न्यायालय को जुर्माना लगाकर मामले को खरिज कर देना चाहिए. रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2008 में एक टूटी हुई काम्पैक्ट डिस्क (सीडी) दी थी और फिर पांच साल बाद उन्होंने कथित तौर पर अभद्र भाषा की एक और सीडी दे दी.

पढ़ें: बिलकिस बानो केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, सभी दोषियों की रिहाई का है मामला

दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों को लेकर तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और अन्य लोगों के खिलाफ गोरखपुर के एक थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी. यह आरोप लगाया था कि आदित्यनाथ द्वारा कथित अभद्र भाषा के बाद उस दिन गोरखपुर में हिंसा की कई घटनाएं हुईं थी.

पीटीआई-भाषा

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बुधवार को वर्ष 2007 के कथित नफरत फैलाने वाले भाषण से संबंधित उस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad high Court) के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Uttar Pradesh Yogi Adityanath) शामिल हैं. उच्च न्यायालय (Allahabad high Court) के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ सुनवाई कर रही है. फरवरी, 2018 में दिये गये अपने फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि उसे जांच या मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी देने से इनकार करने की निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई प्रक्रियागत त्रुटि नहीं मिली.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्यूबी ने उच्च न्यायालय में उल्लिखित मुद्दों में से एक का जिक्र किया, जो इस प्रकार है, क्या राज्य किसी आपराधिक मामले में प्रस्तावित आरोपी के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के तहत आदेश पारित कर सकता है, जो इस बीच मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाते हैं और संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत प्रदत्त व्यवस्था के अनुसार कार्यकारी प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को उच्च न्यायालय द्वारा नहीं निपटाया गया था.

पीठ ने कहा, एक और मुद्दा, एक बार जब आप निर्णय और सामग्री के अनुसार गुण-दोष देखते हैं, तो यदि कोई मामला नहीं बनता है, तो मंजूरी का सवाल कहां है. शीर्ष अदालत ने कहा, अगर कोई मामला है, तो मंजूरी का सवाल आएगा. अगर कोई मामला नहीं है, तो मंजूरी का सवाल ही कहां है. इस पर अय्यूबी ने कहा कि मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने के कारण मामला बंद करने की रिपोर्ट दाखिल की गई है. उत्तर प्रदेश की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि मामले में कुछ भी नहीं बचा है. उन्होंने कहा कि सीडी को सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (सीएफएसएल) को भेजा गया था और पता लगा कि इसमें छेड़छाड़ की गई थी.

रोहतगी ने कहा कि न्यायालय को जुर्माना लगाकर मामले को खरिज कर देना चाहिए. रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2008 में एक टूटी हुई काम्पैक्ट डिस्क (सीडी) दी थी और फिर पांच साल बाद उन्होंने कथित तौर पर अभद्र भाषा की एक और सीडी दे दी.

पढ़ें: बिलकिस बानो केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, सभी दोषियों की रिहाई का है मामला

दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों को लेकर तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और अन्य लोगों के खिलाफ गोरखपुर के एक थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी. यह आरोप लगाया था कि आदित्यनाथ द्वारा कथित अभद्र भाषा के बाद उस दिन गोरखपुर में हिंसा की कई घटनाएं हुईं थी.

पीटीआई-भाषा

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