नई दिल्ली : भारत की शीर्ष अदालत ने राज्य विधानसभा चुनावों से पहले नए चुनावी बांड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग करने वाले गैर सरकारी संगठन की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है. भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने आज सुनवाई की और चुनावी बांड के संभावित दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने केंद्र को इसकी जांच करने को कहा है.
बेंच ने सवाल किया कि यदि किसी राजनीतिक दल को सौ करोड़ के बॉन्ड मिलते हैं, तो इन बॉन्डों का इस्तेमाल करने पर सरकार किस प्रकार नियंत्रण कर रही है?
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गैर सरकारी संगठन के वकील एडवोकेट प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि चुनावी बॉन्ड के जरिए कालाधन वैध होगा, मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा मिलेगा, सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी के साथ बड़ी कंपनियों की वित्तीय सहायता को बढ़ावा मिलेगा, जिससे लोकतंत्र में पारदर्शिता कम हो सकती है. उन्होंने कहा कि यहां तक कि आरबीआई और ईसी ने भी इसकी बिक्री पर आपत्ति व्यक्त की है.
कालाधन पर एटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चुनाव में फंडिंग केवल चेक या डीडी के जरिए होगी और राजनैतिक पार्टियों को आयकर रिटर्न फाइल करना अनिवार्य है. इसलिए चुनाव में कालाधन का प्रयोग संभव नहीं है.