नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को उस नियम को खत्म करने से इनकार कर दिया, जिसके तहत उम्मीदवार एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकते हैं. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, यह एक नीतिगत मामला और राजनीतिक लोकतंत्र का मुद्दा है. बेंच में शामिल जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला ने जोर देकर कहा, इसका फैसला संसद को करना है.
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में आम चुनाव में एक उम्मीदवार को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से लड़ने से रोकने की मांग की गई थी. सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण से कहा कि एक राष्ट्रीय पार्टी का नेता भी अपनी अखिल भारतीय छवि दिखाना चाहता है और यह दिखाना चाहता है कि मैं पश्चिम, पूर्व, उत्तर और दक्षिण भारत से खड़ा हो सकता हूं.
पीठ ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है और ऐतिहासिक शख्सियतें हैं ,जिनकी उस तरह की लोकप्रियता थी. पीठ ने कहा कि अगर संसद संशोधन करना चाहती है, तो वह कर सकती है, लेकिन अदालत ऐसा नहीं करेगी.
वकील ने तर्क दिया कि यदि उम्मीदवार दो निर्वाचन क्षेत्रों से खड़े हैं तो उन्हें अधिक जमा करने के लिए कहा जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि उम्मीदवार कई कारणों से अलग-अलग सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं और क्या यह लोकतंत्र को आगे बढ़ाएगा यह संसद पर निर्भर है.
गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि यदि कोई उम्मीदवार दो सीटों से चुनाव लड़ता है और दोनों सीटों से निर्वाचित होता है, तो उसे एक सीट खाली करनी होगी, जिससे उपचुनाव होगा. यह राजकोष पर एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ होगा. उन्होंने कहा कि 1996 के संशोधन से पहले, चुनाव में एक उम्मीदवार कितनी सीटों पर चुनाव लड़ सकता है, इस पर कोई रोक नहीं थी. संशोधन ने उस संख्या को दो तक सीमित कर दिया.
शीर्ष अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि एक उम्मीदवार को एक से अधिक सीट से चुनाव लड़ने की अनुमति देना विधायी नीति का मामला है.