हैदराबाद: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के सामाजिक कार्यकर्ता एरेन्द्रो लीचोम्बाम को छोड़ने के आदेश दिए हैं. बीजेपी नेताओं के गाय के गोबर और गोमूत्र को कोरोना का इलाज बताने पर लीचोम्बाम ने फेसबुक पोस्ट पर उनकी आलोचना की थी. जिसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत एरेन्द्रो की गिरफ्तारी हुई थी.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की बेंच ने कहा कि 'इस कृत्य के लिए उन्हें एक दिन के लिए भी जेल में नहीं रखा जा सकता, हम आज उनकी रिहाई का आदेश देते हैं'.
सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच से अनुरोध किया कि इस मामले को कल यानि मंगलवार के लिए सूचीबद्ध किया जाए लेकिन पीठ ने आज ही अंतरिम राहत देने का आदेश दिया.
कोर्ट ने कहा कि "हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता को लगातार हिरासत में रखना अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा. इसलिये याचिकाकर्ता को इस अदालत के अंतरिम निर्देशों के अधीन और आगे के आदेशों के अधीन तत्काल रिहा किया जाएगा.
कौन हैं लीचोम्बाम ?
एरेन्द्रो लीचोम्बाम ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और वो मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला के पूर्व सहयोगी हैं. इरोम शर्मिला ने लंबे समय तक राज्य में दमन और सैन्यीकरण के खिलाफ आवाज बुंलंद की है.
अधिवक्ता शादान फरासत के माध्यम से उनके पिता एल रघुमणि सिंह द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि लीचोम्बाम की हिरासत भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के खिलाफ आलोचना करने का बदला है.
लीचोम्बाम ने क्या किया था ?
दरअसल लीचोम्बाम ने उन बीजेपी नेताओं की आलोचना करते हुए फेसबुक पोस्ट की थी जो कोविड के इलाज के लिए गाय के गोबर और गोमूत्र की वकालत करते हैं.
याचिका में कहा गया है, "एक मणिपुरी राजनीतिक कार्यकर्ता, एरेन्द्रो को पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की आलोचना के लिए दंडित करने के लिए हिरासत में लिया गया है, ये नेता गाय के गोबर और गोमूत्र को कोरोना के इलाज के रूप में वकालत करते हैं,"
लीचोम्बाम को हिरासत में लेने की कार्रवाई को 30 अप्रैल, 2021 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना भी कहा गया. जिसमें कोविड-19 के मामले में जस्टिस डीवाई चंद्रशेखर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि सोशल मीडिया पर कोविड नीतियों की आलोचना करने पर किसो को भी दंडित नहीं किया जाना चाहिए.
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