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जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त, विदाई समारोह में अपनी यात्रा को किया याद - जस्टिस इंदिरा बनर्जी सेवामुक्त

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी (Justice Indira Banerjee) शीर्ष अदालत में जज के तौर पर चार साल की सेवा के बाद शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गईं. उन्होंने 7 अगस्त 2018 को पद भार संभाला था. अपने अंतिम कार्य दिवस पर उन्होंने न्यायपालिका में अपनी पूरी यात्रा को याद किया.

जस्टिस इंदिरा बनर्जी
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Published : Sep 23, 2022, 9:02 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी (Justice Indira Banerjee) शीर्ष अदालत में जज के रूप में 4 साल की सेवा के बाद शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गईं. उन्होंने 7 अगस्त, 2018 को पदभार ग्रहण किया था. उन्होंने 1985 में कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी, जहां उन्होंने बाद में 5 फरवरी 2002 को न्यायाधीश का पद ग्रहण किया. फिर 2016 में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और 5 अप्रैल, 2017 को उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया.

अपने विदाई समारोह में अब तक की अपनी यात्रा को याद करते हुए, न्यायमूर्ति बनर्जी ने बताया कि कैसे उनका कभी भी कानूनी पेशे में प्रवेश करने का इरादा नहीं था और कैसे उनके पिता उनके बार में शामिल होने का विरोध कर रहे थे. उन्होंने कहा कि ज्वाइन करने के बाद उनके लिए चैंबर मिलना बहुत मुश्किल था और फिर कई दिन ऐसे भी आए जब उन्हें निराश होकर कई दिनों तक काम नहीं मिला. उन्होंने कहा कि 'धैर्य रखना चाहिए, हार नहीं माननी चाहिए, निराश नहीं होना चाहिए.'

पढ़ें: शिवाजी पार्क में शिंदे गुट को नहीं मिली दशहरा रैली की इजाजत, HC ने खारिज की याचिका

उन्होंने कहा कि न्यायाधीश होने के लिए बलिदान की जरूरत होती है और न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करने की जरूरत होती है कि न्याय मिले. जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा कि 'यह एक लंबी यात्रा रही है, बार में 16.5 साल और बेंच पर 20 साल 7.5 महीने .... लंबी यात्रा, उतार-चढ़ाव आए हैं.' शीर्ष अदालत में नियुक्त अन्य महिला न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति सुजाता वी मनोहर, न्यायमूर्ति रूमा पाल, न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा, न्यायमूर्ति रंजना पी. देसाई, न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी इस दौरान मौजूद​थीं.

अपने अंतिम कार्य दिवस पर, न्यायमूर्ति बनर्जी ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) उदय उमेश ललित के साथ रस्मी पीठ साझा की. न्यायमूर्ति ललित ने उनके दो दशक लंबे करियर में न्यायपालिका में उनके योगदान की प्रशंसा की. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 'हम सभी को न्यायमूर्ति बनर्जी की कमी खलेगी. बीस साल के न्यायिक करियर में उन्होंने सब कुछ दिया है. उनमें हर वह गुण है, जो एक न्यायाधीश में होना चाहिए. पीठ में हमें उनकी कमी बहुत खलेगी और निश्चित तौर पर वह हमेशा हमारे दिलों में रहेंगी. हम आपके सुखद भविष्य की कामना करते हैं.'

पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट ने शराब की बोतलों पर स्वास्थ्य चेतावनी सुनिश्चित करने संबंधी याचिका खारिज की

न्यायमूर्ति बनर्जी ने शीर्ष अदालत में अपने पहले दिन को याद करते हुए कहा कि 'यह उसी दिन की तरह लग रहा है, जब वह सात अगस्त, 2018 को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) दीपक मिश्रा के साथ पीठ साझा कर रही थी.' उन्होंने कहा कि 'मुझे उम्मीद है कि भविष्य में और भी महिलाएं (शीर्ष न्यायपालिका में) होंगी. आशा है कि कमजोरों को सहयोग मिलेगा और कम से कम समय में समानता और न्याय होगा. आप सभी का धन्यवाद.'

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी (Justice Indira Banerjee) शीर्ष अदालत में जज के रूप में 4 साल की सेवा के बाद शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गईं. उन्होंने 7 अगस्त, 2018 को पदभार ग्रहण किया था. उन्होंने 1985 में कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी, जहां उन्होंने बाद में 5 फरवरी 2002 को न्यायाधीश का पद ग्रहण किया. फिर 2016 में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और 5 अप्रैल, 2017 को उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया.

अपने विदाई समारोह में अब तक की अपनी यात्रा को याद करते हुए, न्यायमूर्ति बनर्जी ने बताया कि कैसे उनका कभी भी कानूनी पेशे में प्रवेश करने का इरादा नहीं था और कैसे उनके पिता उनके बार में शामिल होने का विरोध कर रहे थे. उन्होंने कहा कि ज्वाइन करने के बाद उनके लिए चैंबर मिलना बहुत मुश्किल था और फिर कई दिन ऐसे भी आए जब उन्हें निराश होकर कई दिनों तक काम नहीं मिला. उन्होंने कहा कि 'धैर्य रखना चाहिए, हार नहीं माननी चाहिए, निराश नहीं होना चाहिए.'

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उन्होंने कहा कि न्यायाधीश होने के लिए बलिदान की जरूरत होती है और न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करने की जरूरत होती है कि न्याय मिले. जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा कि 'यह एक लंबी यात्रा रही है, बार में 16.5 साल और बेंच पर 20 साल 7.5 महीने .... लंबी यात्रा, उतार-चढ़ाव आए हैं.' शीर्ष अदालत में नियुक्त अन्य महिला न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति सुजाता वी मनोहर, न्यायमूर्ति रूमा पाल, न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा, न्यायमूर्ति रंजना पी. देसाई, न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा भी इस दौरान मौजूद​थीं.

अपने अंतिम कार्य दिवस पर, न्यायमूर्ति बनर्जी ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) उदय उमेश ललित के साथ रस्मी पीठ साझा की. न्यायमूर्ति ललित ने उनके दो दशक लंबे करियर में न्यायपालिका में उनके योगदान की प्रशंसा की. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 'हम सभी को न्यायमूर्ति बनर्जी की कमी खलेगी. बीस साल के न्यायिक करियर में उन्होंने सब कुछ दिया है. उनमें हर वह गुण है, जो एक न्यायाधीश में होना चाहिए. पीठ में हमें उनकी कमी बहुत खलेगी और निश्चित तौर पर वह हमेशा हमारे दिलों में रहेंगी. हम आपके सुखद भविष्य की कामना करते हैं.'

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न्यायमूर्ति बनर्जी ने शीर्ष अदालत में अपने पहले दिन को याद करते हुए कहा कि 'यह उसी दिन की तरह लग रहा है, जब वह सात अगस्त, 2018 को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) दीपक मिश्रा के साथ पीठ साझा कर रही थी.' उन्होंने कहा कि 'मुझे उम्मीद है कि भविष्य में और भी महिलाएं (शीर्ष न्यायपालिका में) होंगी. आशा है कि कमजोरों को सहयोग मिलेगा और कम से कम समय में समानता और न्याय होगा. आप सभी का धन्यवाद.'

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