ETV Bharat / bharat

धेमाजी बम विस्फोट मामला : SC ने आरोपियों को बरी करने के HC के आदेश के खिलाफ नोटिस जारी किया

author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 12, 2024, 5:07 PM IST

Supreme Court : असम के धेमाजी बम विस्फोट मामले में हाई कोर्ट द्वारा बरी किए जाने पर असम सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया है. मामले में हाई कोर्ट ने 24 अगस्त 2023 को ट्रायल कोर्ट के 4 जुलाई 2019 के फैसले को पलट दिया था. पढ़िए पूरी खबर... Dhemaji bomb blast case

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : असम के धेमाजी जिले में हुए बम विस्फोट के मामले में आरोपियों को गौहाटी हाई कोर्ट के द्वारा बरी किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को असम सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया है. बता दें कि 15 अगस्त 2004 में असम के धेमाजी जिले में हुए बम विस्फोट में 10 बच्चों और तीन महिलाओं की मौत हो गई थी. मामले में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने असम सरकार द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी किया. सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर असम राज्य के एएजी नलिन कोहली, असम के स्थायी वकील अंकित रॉय, वकील निमिषा मेनन और वकील श्रुति अग्रवाल ने बहस की.

मामले में हाई कोर्ट ने 24 अगस्त 2023 को ट्रायल कोर्ट के 4 जुलाई 2019 के फैसले को पलट दिया था, जिसमें उल्फा सदस्यों सहित पांच आरोपियों को दोषी ठहराया गया था और उन्हें घटना के लिए जिम्मेदार बताया गया था. इस संबंध में हाई कोर्ट में असम सरकार ने विभिन्न धाराओं का हवाला होते हुए तर्क दिया था. वहीं राज्य सरकार की याचिका में कहा गया कि हाई कोर्ट ने जतिन डोवारी के इकबालिया बयान को इस आधार पर खारिज करके आरोपी की सजा को गलत तरीके से उलट दिया है कि इसे दस साल की अत्यधिक देरी के बाद वापस ले लिया गया था. साथ ही याचिका में तर्क दिया गया कि हाई कोर्ट ने जतिन डोवारी के इकबालिया बयान को इस आधार पर खारिज करके गलती की कि बयान बाद में वापस ले लिया गया था.

इस संबंध में यह कहा गया कि हाई कोर्ट ने इस बात पर विचार नहीं किया कि इकबालिया बयान 12 अक्टूबर, 2004 को दर्ज किया गया था. दूसरी तरफ जतिन डोवारी 15 साल की लंबी देरी के बाद 26 फरवरी, 2019 को अपने बयान से मुकर गए. वहीं याचिका में कहा गया कि इस प्रकार उक्त बयान की वापसी उक्त इकबालिया बयान की विश्वसनीयता के लिए महत्वहीन थी. इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि संजय दत्त बनाम महाराष्ट्र राज्य (2013) में माना गया है कि इकबालिया बयान और बयान वापस लेने के बीच में समय अंतराल का उचित ध्यान रखा जाना चाहिए. साथ ही याचिका में कहा गया है लंबे समय तक देरी के मामले में इस तरह की वापसी सारहीन होगी.

हाई कोर्ट के फैसले में यह गलत तरीके से दर्ज किया गया है कि इकबालिया बयान जतिन डोवारी को किसी भी तरह से दोषी नहीं ठहराता है. इसमें कहा गया है कि उक्त बयान को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जतिन डोवारी ने आपराधिक साजिश रची और बम लगाने में अन्य प्रतिवादियों को उकसाया. याचिका में कहा गया है कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त निर्विवाद सबूत हैं कि गैरकानूनी गतिविधियों की साजिश में आरोपी उत्तरदाता 15 अगस्त, 2004 को हुए दुर्भाग्यपूर्ण बम विस्फोट के दोषी हैं, उन्हें पूरी जानकारी थी और उनका इरादा था कि इससे भाग लेने वाले व्यक्तियों की मौत हो जाएगी.

ये भी पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट का सीईसी और ईसी की नियुक्ति पर नए कानून पर रोक लगाने से इनकार

नई दिल्ली : असम के धेमाजी जिले में हुए बम विस्फोट के मामले में आरोपियों को गौहाटी हाई कोर्ट के द्वारा बरी किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को असम सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया है. बता दें कि 15 अगस्त 2004 में असम के धेमाजी जिले में हुए बम विस्फोट में 10 बच्चों और तीन महिलाओं की मौत हो गई थी. मामले में जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने असम सरकार द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी किया. सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर असम राज्य के एएजी नलिन कोहली, असम के स्थायी वकील अंकित रॉय, वकील निमिषा मेनन और वकील श्रुति अग्रवाल ने बहस की.

मामले में हाई कोर्ट ने 24 अगस्त 2023 को ट्रायल कोर्ट के 4 जुलाई 2019 के फैसले को पलट दिया था, जिसमें उल्फा सदस्यों सहित पांच आरोपियों को दोषी ठहराया गया था और उन्हें घटना के लिए जिम्मेदार बताया गया था. इस संबंध में हाई कोर्ट में असम सरकार ने विभिन्न धाराओं का हवाला होते हुए तर्क दिया था. वहीं राज्य सरकार की याचिका में कहा गया कि हाई कोर्ट ने जतिन डोवारी के इकबालिया बयान को इस आधार पर खारिज करके आरोपी की सजा को गलत तरीके से उलट दिया है कि इसे दस साल की अत्यधिक देरी के बाद वापस ले लिया गया था. साथ ही याचिका में तर्क दिया गया कि हाई कोर्ट ने जतिन डोवारी के इकबालिया बयान को इस आधार पर खारिज करके गलती की कि बयान बाद में वापस ले लिया गया था.

इस संबंध में यह कहा गया कि हाई कोर्ट ने इस बात पर विचार नहीं किया कि इकबालिया बयान 12 अक्टूबर, 2004 को दर्ज किया गया था. दूसरी तरफ जतिन डोवारी 15 साल की लंबी देरी के बाद 26 फरवरी, 2019 को अपने बयान से मुकर गए. वहीं याचिका में कहा गया कि इस प्रकार उक्त बयान की वापसी उक्त इकबालिया बयान की विश्वसनीयता के लिए महत्वहीन थी. इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि संजय दत्त बनाम महाराष्ट्र राज्य (2013) में माना गया है कि इकबालिया बयान और बयान वापस लेने के बीच में समय अंतराल का उचित ध्यान रखा जाना चाहिए. साथ ही याचिका में कहा गया है लंबे समय तक देरी के मामले में इस तरह की वापसी सारहीन होगी.

हाई कोर्ट के फैसले में यह गलत तरीके से दर्ज किया गया है कि इकबालिया बयान जतिन डोवारी को किसी भी तरह से दोषी नहीं ठहराता है. इसमें कहा गया है कि उक्त बयान को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जतिन डोवारी ने आपराधिक साजिश रची और बम लगाने में अन्य प्रतिवादियों को उकसाया. याचिका में कहा गया है कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त निर्विवाद सबूत हैं कि गैरकानूनी गतिविधियों की साजिश में आरोपी उत्तरदाता 15 अगस्त, 2004 को हुए दुर्भाग्यपूर्ण बम विस्फोट के दोषी हैं, उन्हें पूरी जानकारी थी और उनका इरादा था कि इससे भाग लेने वाले व्यक्तियों की मौत हो जाएगी.

ये भी पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट का सीईसी और ईसी की नियुक्ति पर नए कानून पर रोक लगाने से इनकार

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.