नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शादी का झांसा देकर एक महिला के साथ दुष्कर्म के आरोपी व्यक्ति को आठ हफ्ते के लिए गिरफ्तारी से छूट प्रदान की है. इसके साथ ही न्यायालय ने सवाल किया कि क्या पति-पत्नी के रूप में एक साथ रहने वाले दंपती के बीच शारीरिक संबंध को बलात्कार कहा जा सकता है.
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा, 'अगर कोई दंपती पति और पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे हैं, तो पति क्रूर हो सकता है, लेकिन क्या आप उनके शारीरिक संबंधों को बलात्कार कह सकते हैं?'
पीठ ने विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. इन याचिकाओं में एक याचिका आरोपी की भी है, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अप्रैल 2019 के आदेश को चुनौती दी गई है. उच्च न्यायालय ने आरोपी के खिलाफ उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले में दर्ज प्राथमिकी को खारिज करने से इनकार कर दिया था.
वीडियो-कॉन्फ्रेंस के जरिए हुई सुनवाई के दौरान, शिकायतकर्ता महिला की ओर से पेश वकील ने कहा कि आरोपी ने धोखे से महिला से सहमति ली थी.
वकील ने दावा किया कि आरोपी 2014 में महिला को हिमाचल प्रदेश के मनाली में एक मंदिर में ले गया जहां उन्होंने 'शादी की रस्में' निभाईं.
पीठ ने कहा, 'शादी का झूठा वादा करना गलत है. यहां तक कि किसी महिला को भी इस तरह का वादा नहीं करना चाहिए और फिर तोड़ देना चाहिए.'
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विभा दत्ता मखीजा ने कहा कि आरोपी और महिला दो साल तक 'लिव-इन रिलेशन' में थे और बाद में महिला ने शादी का झूठा वादा कर बलात्कार का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई.
मखीजा ने कहा कि प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) के तहत आरोप दर्ज किया गया है, ताकि व्यक्ति को परेशान किया जा सके.
शिकायतकर्ता महिला की ओर से पेश वकील ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसके पति होने का नाटक किया था, लेकिन बाद में उसने दूसरी महिला से शादी कर ली. उन्होंने दावा किया कि आरोपी ने महिला के साथ मारपीट की और उन्होंने इस संबंध में मेडिकल रिकॉर्ड का भी जिक्र दिया.
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