नई दिल्ली : विपक्षी लगातार सरकारी एजेंसियों को राजनैतिक उद्देश्य से इस्तेमाल किये जाने का आरोप लगा रहा है. वहीं, उच्चतम न्यायालय ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) पर दाखिल याचिका को खारिज करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारों का संरक्षण किया है. संसद में बुधवार को भी हंगामा बरकरार रहा. इन मुद्दों पर भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने विपक्ष पर निशाना साधा है. उन्होंने इस संबंध में ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का अधिकार है जो आरोपित हैं. प्रवर्तन निदेशालय का कार्य है कि वह देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाए. अगर कानून बनाने वाले स्वयं भ्रष्ट निकलें और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दें, तो ये सरासर गलत है. इसलिए ईडी के अधिकारों को उच्चतम न्यायालय ने संरक्षित कर ऐसे लोगों को करारा जवाब दिया है.
उन्होंने कहा कि ईडी भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने और उनसे पूछताछ करने का काम करती आई है. कांग्रेस की समस्या है कि वह 'एक परिवार' को मानती है. उसी परिवार को बचाने के लिए वे सड़क से लेकर संसद तक गतिरोध बना रहे हैं. भ्रष्टाचार में लिप्त 'एक परिवार' से अब एजेंसी पूछताछ कर रही है, तो इसमें विरोध करने की वजह कैसी है. लोकसभा और राज्यसभा से विपक्षी सांसदों के निलंबन को सही ठहराते हुए मनोज तिवारी ने कहा कि सांसदों के खिलाफ ये कार्रवाई सही है. उन्हें इसकी सजा मिलनी ही चाहिए.
उन्होंने कहा कि जहां तक सरकारी एजेंसियों पर सवाल उठाए जाने की बात है, तो ये भी देखना होगा कि ईडी की कार्रवाई से कई अवैध संपत्तियां कुर्क हुई हैं. जिन स्थानों से अवैध संपत्ति सामने आई हैं, वे किसी न किसी प्रभावशाली नेता या हस्तियों से जुड़े होते हैं. इस वजह से ईडी के अधिकारों के खिलाफ याचिका लगाई जा रही है. उन्होंने कहा कि सांसद जनता की समस्या उठाने के लिए होता है, लेकिन ये नेता मंत्री लगातार हंगामा कर सदन की कार्यवाही को ही बाधित कर रहे हैं. यदि सांसदों को कोई मुद्दा उठाना है तो वे सदन के समक्ष पेश करें. इस तरह सदन में हंगामा कर जनता का वक्त और पैसा क्यों बर्बाद कर रहे. उनसे जुड़े मसलों पर चर्चा होने दीजिए.
बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी के ईडी के अधिकार को बरकरार रखा है. अदालत ने कहा कि ईडी की गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं है. शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के कई प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया. हालांकि, कोर्ट ने कानून में फाइनेंस बिल के जरिए किए गए बदलाव के मामले को 7 जजों की बेंच में भेज दिया है. याचिका में जमानत की मौजूदा शर्तों पर भी सवाल उठाया गया था.