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अवैध मंजूरी के आधार पर भ्रष्टाचार के किसी मामले की सुनवाई को बीच में नहीं रोका जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

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Published : Aug 5, 2023, 10:54 PM IST

भ्रष्टाचार के किसी मामले की सुनवाई को अनुपस्थिति या अमान्य मंजूरी के आधार पर बीच में नहीं रोका जा सकता. ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने की, साथ ही कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना की रिपोर्ट.

SC
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुपस्थिति या अमान्य मंजूरी के आधार पर भ्रष्टाचार के किसी मामले की सुनवाई को बीच में नहीं रोका जा सकता है. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि मुकदमे के बीच में आरोपमुक्त करने की मांग करने वाली अंतरिम अर्जी सुनवाई योग्य नहीं है.

बेंच ने कहा कि 'एक बार विशेष न्यायाधीश द्वारा संज्ञान ले लिया गया और आरोपी के खिलाफ आरोप तय कर दिया गया, तो उक्त अधिनियम की धारा 19(3) के मद्देनजर मुकदमे में न तो टॉयल को रोक जा सकता था और न ही बीच में रोका जा सकता है.'

बेंच ने कहा कि 'मौजूदा मामले में हालांकि मंजूरी की वैधता का मुद्दा पहले भी उठाया गया था, लेकिन इसके लिए दबाव नहीं डाला गया था. उस स्थिति में प्रतिवादी-अभियुक्त के लिए खुला एकमात्र चरण कानून के अनुसार मुकदमे में अंतिम बहस में उक्त मुद्दे को उठाना था.'

शीर्ष अदालत ने 16 अगस्त, 2018 के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया. जिसमें आरोपी को भ्रष्टाचार निवारण की धारा 13 (2) के साथ धारा 13 (1) (ई) के तहत लगाए गए अपराधों से मुक्त कर दिया गया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि विशेष न्यायाधीश के उक्त आदेश को चुनौती देने वाली प्रतिवादी की याचिका में विशेष न्यायाधीश द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों को उच्च न्यायालय द्वारा पलटा या बदला नहीं जा सकता था और न ही धारा 19 की उपधारा (3) में निहित विशिष्ट रोक को ध्यान में रखते हुए बदला जाना चाहिए था.

बेंच ने कहा कि 'वह भी इस बारे में कोई राय दर्ज किए बिना कि वास्तव में प्रतिवादी-अभियुक्त को न्याय की विफलता कैसे हुई, जैसा कि उक्त उपधारा (3) में दर्शाया गया है.'

शीर्ष अदालत ने कहा कि न तो प्रतिवादी ने दलील दी है और न ही उच्च न्यायालय ने यह राय दी है कि प्राधिकरण द्वारा मंजूरी देने में हुई त्रुटि के कारण प्रतिवादी को न्याय में कोई विफलता हुई है या नहीं. शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि मंजूरी की वैधता के मुद्दे को जल्द से जल्द उठाना हमेशा वांछनीय होता है.

उच्च न्यायालय ने पाया था कि कर्नाटक शहरी जल आपूर्ति और ड्रेनेज बोर्ड में कार्यकारी अभियंता के रूप में कार्यरत ए सुब्बेगौड़ा के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी अवैध और अधिकार क्षेत्र के बिना थी. यह आरोप लगाया गया कि सुब्बेगौड़ा ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि यदि मंजूरी अमान्य पाई जाती है, तो ट्रायल कोर्ट आरोपी को बरी कर सकता है और पार्टियों को उस चरण में धकेल सकता है जहां सक्षम प्राधिकारी कानून के अनुसार अभियोजन के लिए नई मंजूरी दे सकता है.

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि उच्च न्यायालय विशेष अदालत के इस निष्कर्ष में हस्तक्षेप नहीं कर सकता था कि मंजूरी उचित और वैध थी, बिना कोई राय दर्ज किए कि वास्तव में आरोपी के साथ न्याय की विफलता हुई थी.

ये भी पढ़ें- नफरती भाषण की परिभाषा जटिल, असली समस्या कानून के क्रियान्वयन और निष्पादन की: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुपस्थिति या अमान्य मंजूरी के आधार पर भ्रष्टाचार के किसी मामले की सुनवाई को बीच में नहीं रोका जा सकता है. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि मुकदमे के बीच में आरोपमुक्त करने की मांग करने वाली अंतरिम अर्जी सुनवाई योग्य नहीं है.

बेंच ने कहा कि 'एक बार विशेष न्यायाधीश द्वारा संज्ञान ले लिया गया और आरोपी के खिलाफ आरोप तय कर दिया गया, तो उक्त अधिनियम की धारा 19(3) के मद्देनजर मुकदमे में न तो टॉयल को रोक जा सकता था और न ही बीच में रोका जा सकता है.'

बेंच ने कहा कि 'मौजूदा मामले में हालांकि मंजूरी की वैधता का मुद्दा पहले भी उठाया गया था, लेकिन इसके लिए दबाव नहीं डाला गया था. उस स्थिति में प्रतिवादी-अभियुक्त के लिए खुला एकमात्र चरण कानून के अनुसार मुकदमे में अंतिम बहस में उक्त मुद्दे को उठाना था.'

शीर्ष अदालत ने 16 अगस्त, 2018 के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया. जिसमें आरोपी को भ्रष्टाचार निवारण की धारा 13 (2) के साथ धारा 13 (1) (ई) के तहत लगाए गए अपराधों से मुक्त कर दिया गया.

शीर्ष अदालत ने कहा कि विशेष न्यायाधीश के उक्त आदेश को चुनौती देने वाली प्रतिवादी की याचिका में विशेष न्यायाधीश द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों को उच्च न्यायालय द्वारा पलटा या बदला नहीं जा सकता था और न ही धारा 19 की उपधारा (3) में निहित विशिष्ट रोक को ध्यान में रखते हुए बदला जाना चाहिए था.

बेंच ने कहा कि 'वह भी इस बारे में कोई राय दर्ज किए बिना कि वास्तव में प्रतिवादी-अभियुक्त को न्याय की विफलता कैसे हुई, जैसा कि उक्त उपधारा (3) में दर्शाया गया है.'

शीर्ष अदालत ने कहा कि न तो प्रतिवादी ने दलील दी है और न ही उच्च न्यायालय ने यह राय दी है कि प्राधिकरण द्वारा मंजूरी देने में हुई त्रुटि के कारण प्रतिवादी को न्याय में कोई विफलता हुई है या नहीं. शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि मंजूरी की वैधता के मुद्दे को जल्द से जल्द उठाना हमेशा वांछनीय होता है.

उच्च न्यायालय ने पाया था कि कर्नाटक शहरी जल आपूर्ति और ड्रेनेज बोर्ड में कार्यकारी अभियंता के रूप में कार्यरत ए सुब्बेगौड़ा के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी अवैध और अधिकार क्षेत्र के बिना थी. यह आरोप लगाया गया कि सुब्बेगौड़ा ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि यदि मंजूरी अमान्य पाई जाती है, तो ट्रायल कोर्ट आरोपी को बरी कर सकता है और पार्टियों को उस चरण में धकेल सकता है जहां सक्षम प्राधिकारी कानून के अनुसार अभियोजन के लिए नई मंजूरी दे सकता है.

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि उच्च न्यायालय विशेष अदालत के इस निष्कर्ष में हस्तक्षेप नहीं कर सकता था कि मंजूरी उचित और वैध थी, बिना कोई राय दर्ज किए कि वास्तव में आरोपी के साथ न्याय की विफलता हुई थी.

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