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अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ याचिका पर दो हफ्ते में हो निर्णय : SC - Delhi High Court

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिका में हाई कोर्ट से अस्थाना को दिल्ली का पुलिस आयुक्त नियुक्त करने और उनकी सेवा की अवधि बढ़ाने के केंद्र के फैसले को रद्द करने का अनुरोध किया गया है.

अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ याचिका
अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ याचिका
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Published : Aug 25, 2021, 3:19 PM IST

Updated : Aug 25, 2021, 9:57 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के वरिष्ठ अधिकारी राकेश अस्थाना ( Rakesh Asthana) की दिल्ली पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर वह दो सप्ताह के भीतर निर्णय करे.

1984 बैच के आईपीएस अधिकारी अस्थाना को गुजरात कैडर से यूनियन कैडर में लाया गया था. सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रह चुके अस्थाना को 31 जुलाई को सेवानिवृत्त होने से चार दिन पहले, 27 जुलाई को दिल्ली का पुलिस आयुक्त नियुक्त किया गया. उनका राष्ट्रीय राजधानी के पुलिस प्रमुख के तौर पर कार्यकाल एक साल का होगा.

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने गैर सरकारी संगठन 'सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन' (सीपीआईएल) को अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ लंबित याचिका में हस्तक्षेप के लिए उच्च न्यायालय जाने की अनुमति दी.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हम दिल्ली उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि वह दो हफ्ते के अंदर यथाशीघ्र मामले पर विचार करे जिससे हमें उच्च न्यायालय के फैसले का लाभ मिल सके. याचिकाकर्ता (सीपीआईएल) हस्तक्षेप याचिका (दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष) दायर करने के लिये स्वतंत्र है.'

केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मामला एक राज्य के पुलिस प्रमुख की नियुक्ति से संबंधित है और संबंधित उच्च न्यायालय को इसे देखना चाहिए.

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को दो हफ्ते के बजाए कुछ और समय दिया जाना चाहिए क्योंकि अब तक केंद्र को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है जिसे अपना जवाब दाखिल करना होगा.

अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिका में न्यायालय से अस्थाना को सेवा विस्तार देकर नियुक्त करने के केंद्र के आदेश को दरकिनार करने की मांग की गई है.

सुनवाई की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश ने जनहित याचिका पर सुनवाई करने में अपनी अक्षमता व्यक्त करते हुए कहा, 'मैंने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के दौरान अपनी राय व्यक्त की थी.'

उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की पूर्व में हुए एक बैठक में प्रधान न्यायाधीश ने विधिक स्थिति को सामने रखा था जिसके बाद कथित तौर पर सीबीआई निदेशक के तौर पर नियुक्ति के लिये अस्थाना के नाम पर विचार नहीं हुआ था. प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष भी इस समिति का हिस्सा थे.

प्रधान न्यायाधीश रमन ने कहा, 'यहां दो मुद्दे हैं. एक मेरी भागीदारी के बारे में… सीबीआई निदेशक के चयन के दौरान इन श्रीमान के चयन के बारे में मैंने अपनी राय व्यक्त की थी. दूसरी चीज…किसी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, सही या गलत. हम समझते हैं कि इस मामले में समय महत्वपूर्ण है. इसलिये हम इस मामले पर उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के लिये दो हफ्ते की समय सीमा तय करते हैं और हमारे पास भी उच्च न्यायालय के फैसले का लाभ होगा.'

एनजीओ की तरफ से पेश हुए प्रशांत भूषण ने गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कहा कि कई बार 'घात लगाकर याचिकाएं' सरकार के साथ मिलकर सिर्फ समय लेने के लिये दायर की जाती हैं.

न्यायालय ने भूषण को उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित याचिका में हस्तक्षेप के लिये याचिका दायर करने या एक नई याचिका दायर करने की छूट दे दी.

मेहता ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष ऐसी ही एक याचिका लंबित है और एनजीओ से वहां अपनी बात रखने को कहा जा सकता है. उन्होंने पूछा कि भूषण के किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है जिसकी वजह से उन्हें न्यायालय में याचिका दायर करनी पड़ी.

भूषण ने दलील दी कि उनकी याचिका पर पूर्व में केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति रद्द हो चुकी है और अस्थाना की नियुक्ति 'नियमों का गंभीर उल्लंघन कर' की गई है जिसके फलस्वरूप नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है.

उन्होंने कहा कि सरकार ने 'नियमों के प्रति घोर उल्लंघन' दर्शाया है और सेवानिवृत्ति के कुछ दिनों पहले अस्थाना को नियुक्त कर सेवा विस्तार दिया है.

भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत ने प्रकाश सिंह मामले में शर्तें तय की थीं कि अनुशंसा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के जरिये होनी चाहिए और नियुक्ति के समय अधिकारी का सेवाकाल कम से कम छह महीने बचा होना चाहिए.

यह भी पढ़ें- उम्मीद कार्यक्रम में शामिल हुए दिल्ली पुलिस कमिश्नर, कही ये बात

सुनवाई के अंत में मेहता ने कहा, 'जहां तक घात लगाकर याचिकाएं दायर करने की बात है, जितना कम कहा जाए बेहतर है. हमारे यहां पेशेवर जनहति याचिकाकर्ता हैं जो दौड़ में हार चुके लोगों की तरफ से याचिकाएं दायर करते हैं.'

एनजीओ ने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह केंद्र को निर्देश दे कि वह अस्थाना की गुजरात कैडर से एजीएमयूटी कैडर में अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति को मंजूरी देने वाले 27 जुलाई के आदेश को पेश करे.

एनजीओ ने उनके सेवा विस्तार और उनकी नियुक्ति के 'अवैध' होने की दलील देते हुए कहा कि उनके पास पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्त करने के लिये जरूरी छह महीने का सेवाकाल नहीं बचा था क्योंकि वह चार दिन में सेवानिवृत्त होने वाले थे.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के वरिष्ठ अधिकारी राकेश अस्थाना ( Rakesh Asthana) की दिल्ली पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर वह दो सप्ताह के भीतर निर्णय करे.

1984 बैच के आईपीएस अधिकारी अस्थाना को गुजरात कैडर से यूनियन कैडर में लाया गया था. सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रह चुके अस्थाना को 31 जुलाई को सेवानिवृत्त होने से चार दिन पहले, 27 जुलाई को दिल्ली का पुलिस आयुक्त नियुक्त किया गया. उनका राष्ट्रीय राजधानी के पुलिस प्रमुख के तौर पर कार्यकाल एक साल का होगा.

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने गैर सरकारी संगठन 'सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन' (सीपीआईएल) को अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ लंबित याचिका में हस्तक्षेप के लिए उच्च न्यायालय जाने की अनुमति दी.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'हम दिल्ली उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि वह दो हफ्ते के अंदर यथाशीघ्र मामले पर विचार करे जिससे हमें उच्च न्यायालय के फैसले का लाभ मिल सके. याचिकाकर्ता (सीपीआईएल) हस्तक्षेप याचिका (दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष) दायर करने के लिये स्वतंत्र है.'

केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मामला एक राज्य के पुलिस प्रमुख की नियुक्ति से संबंधित है और संबंधित उच्च न्यायालय को इसे देखना चाहिए.

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को दो हफ्ते के बजाए कुछ और समय दिया जाना चाहिए क्योंकि अब तक केंद्र को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है जिसे अपना जवाब दाखिल करना होगा.

अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिका में न्यायालय से अस्थाना को सेवा विस्तार देकर नियुक्त करने के केंद्र के आदेश को दरकिनार करने की मांग की गई है.

सुनवाई की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश ने जनहित याचिका पर सुनवाई करने में अपनी अक्षमता व्यक्त करते हुए कहा, 'मैंने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के दौरान अपनी राय व्यक्त की थी.'

उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की पूर्व में हुए एक बैठक में प्रधान न्यायाधीश ने विधिक स्थिति को सामने रखा था जिसके बाद कथित तौर पर सीबीआई निदेशक के तौर पर नियुक्ति के लिये अस्थाना के नाम पर विचार नहीं हुआ था. प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष भी इस समिति का हिस्सा थे.

प्रधान न्यायाधीश रमन ने कहा, 'यहां दो मुद्दे हैं. एक मेरी भागीदारी के बारे में… सीबीआई निदेशक के चयन के दौरान इन श्रीमान के चयन के बारे में मैंने अपनी राय व्यक्त की थी. दूसरी चीज…किसी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, सही या गलत. हम समझते हैं कि इस मामले में समय महत्वपूर्ण है. इसलिये हम इस मामले पर उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय के लिये दो हफ्ते की समय सीमा तय करते हैं और हमारे पास भी उच्च न्यायालय के फैसले का लाभ होगा.'

एनजीओ की तरफ से पेश हुए प्रशांत भूषण ने गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कहा कि कई बार 'घात लगाकर याचिकाएं' सरकार के साथ मिलकर सिर्फ समय लेने के लिये दायर की जाती हैं.

न्यायालय ने भूषण को उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित याचिका में हस्तक्षेप के लिये याचिका दायर करने या एक नई याचिका दायर करने की छूट दे दी.

मेहता ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष ऐसी ही एक याचिका लंबित है और एनजीओ से वहां अपनी बात रखने को कहा जा सकता है. उन्होंने पूछा कि भूषण के किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है जिसकी वजह से उन्हें न्यायालय में याचिका दायर करनी पड़ी.

भूषण ने दलील दी कि उनकी याचिका पर पूर्व में केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति रद्द हो चुकी है और अस्थाना की नियुक्ति 'नियमों का गंभीर उल्लंघन कर' की गई है जिसके फलस्वरूप नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है.

उन्होंने कहा कि सरकार ने 'नियमों के प्रति घोर उल्लंघन' दर्शाया है और सेवानिवृत्ति के कुछ दिनों पहले अस्थाना को नियुक्त कर सेवा विस्तार दिया है.

भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत ने प्रकाश सिंह मामले में शर्तें तय की थीं कि अनुशंसा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के जरिये होनी चाहिए और नियुक्ति के समय अधिकारी का सेवाकाल कम से कम छह महीने बचा होना चाहिए.

यह भी पढ़ें- उम्मीद कार्यक्रम में शामिल हुए दिल्ली पुलिस कमिश्नर, कही ये बात

सुनवाई के अंत में मेहता ने कहा, 'जहां तक घात लगाकर याचिकाएं दायर करने की बात है, जितना कम कहा जाए बेहतर है. हमारे यहां पेशेवर जनहति याचिकाकर्ता हैं जो दौड़ में हार चुके लोगों की तरफ से याचिकाएं दायर करते हैं.'

एनजीओ ने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह केंद्र को निर्देश दे कि वह अस्थाना की गुजरात कैडर से एजीएमयूटी कैडर में अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति को मंजूरी देने वाले 27 जुलाई के आदेश को पेश करे.

एनजीओ ने उनके सेवा विस्तार और उनकी नियुक्ति के 'अवैध' होने की दलील देते हुए कहा कि उनके पास पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्त करने के लिये जरूरी छह महीने का सेवाकाल नहीं बचा था क्योंकि वह चार दिन में सेवानिवृत्त होने वाले थे.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Aug 25, 2021, 9:57 PM IST
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