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सुप्रीम कोर्ट ने असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने से जुड़े आंकड़ें पेश करने को कहा

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By PTI

Published : Dec 7, 2023, 5:28 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों को दी गयी नागरिकता के आंकड़े मुहैया कराने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता के अध्ययन के अनुरोध वाली 17 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. Supreme Court,Bangladeshi immigrants in Assam

Supreme Cour
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र से एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के दौरान असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों को दी गयी नागरिकता के आंकड़ें उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राज्य सरकार को 11 दिसंबर तक एक हलफनामा दाखिल करने के लिए केंद्र को आंकड़ें उपलब्ध कराने का निर्देश दिया.

पीठ असम में गैरकानूनी शरणार्थियों से जुड़ी नागरिकता कानून की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता के अध्ययन का अनुरोध करने वाली 17 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं. उसने केंद्र से देश में विशेषरूप से पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासन से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने को कहा.

न्यायालय ने कहा, 'हमारा यह मानना है कि केंद्र सरकार को न्यायालय को आंकड़ों पर आधारित जानकारी देना आवश्यक होगा. हम सोमवार को या उससे पहले अदालत को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं.' उसने कहा कि केंद्र के हलफनामे में एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच पड़ोसी देश से भारत में विस्थापित हुए लोगों की संख्या को ध्यान में रखते हुए बांग्लादेश के उन शरणार्थियों की संख्या का जिक्र होना चाहिए जिन्हें कानून की धारा 6ए के तहत भारतीय नागरिकता दी गयी.

पीठ ने पूछा, 'उक्त अवधि के संदर्भ में विदेशी न्यायाधिकरण आदेश 1964 के तहत कितने लोगों की पहचान विदेशियों के रूप में की गयी?' पीठ ने भारत खासकर पूर्वोत्तर में अवैध प्रवासन से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी सूचना मांगी. इससे पहले, पीठ ने केंद्र से पूछा कि उसने पश्चिम बंगाल को नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के दायरे से बाहर रखते हुए असम से अलग व्यवहार क्यों किया जबकि पश्चिम बंगाल बांग्लादेश के साथ काफी बड़ी सीमा साझा करता है. नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए असम में अवैध अप्रवासियों से संबंधित है.

नागरिकता कानून की धारा 6ए को असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता से जुड़े मुद्दे से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में जोड़ा गया था. इस प्रावधान में कहा गया है कि 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के अनुसार जो लोग एक जनवरी, 1966 को या उसके बाद, लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से असम आए हैं और तब से असम के निवासी हैं, उन्हें नागरिकता के लिए धारा 18 के तहत स्वयं का पंजीकरण कराना होगा. परिणामस्वरूप, प्रावधान में असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए ‘कट-ऑफ’ (अंतिम) तारीख 25 मार्च, 1971 तय की गई.

ये भी पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े मेहुल चोकसी और उसकी पत्नी के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी का मामला किया बहाल

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र से एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के दौरान असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों को दी गयी नागरिकता के आंकड़ें उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राज्य सरकार को 11 दिसंबर तक एक हलफनामा दाखिल करने के लिए केंद्र को आंकड़ें उपलब्ध कराने का निर्देश दिया.

पीठ असम में गैरकानूनी शरणार्थियों से जुड़ी नागरिकता कानून की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता के अध्ययन का अनुरोध करने वाली 17 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं. उसने केंद्र से देश में विशेषरूप से पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध प्रवासन से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने को कहा.

न्यायालय ने कहा, 'हमारा यह मानना है कि केंद्र सरकार को न्यायालय को आंकड़ों पर आधारित जानकारी देना आवश्यक होगा. हम सोमवार को या उससे पहले अदालत को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं.' उसने कहा कि केंद्र के हलफनामे में एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच पड़ोसी देश से भारत में विस्थापित हुए लोगों की संख्या को ध्यान में रखते हुए बांग्लादेश के उन शरणार्थियों की संख्या का जिक्र होना चाहिए जिन्हें कानून की धारा 6ए के तहत भारतीय नागरिकता दी गयी.

पीठ ने पूछा, 'उक्त अवधि के संदर्भ में विदेशी न्यायाधिकरण आदेश 1964 के तहत कितने लोगों की पहचान विदेशियों के रूप में की गयी?' पीठ ने भारत खासकर पूर्वोत्तर में अवैध प्रवासन से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी सूचना मांगी. इससे पहले, पीठ ने केंद्र से पूछा कि उसने पश्चिम बंगाल को नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के दायरे से बाहर रखते हुए असम से अलग व्यवहार क्यों किया जबकि पश्चिम बंगाल बांग्लादेश के साथ काफी बड़ी सीमा साझा करता है. नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए असम में अवैध अप्रवासियों से संबंधित है.

नागरिकता कानून की धारा 6ए को असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता से जुड़े मुद्दे से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में जोड़ा गया था. इस प्रावधान में कहा गया है कि 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के अनुसार जो लोग एक जनवरी, 1966 को या उसके बाद, लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से असम आए हैं और तब से असम के निवासी हैं, उन्हें नागरिकता के लिए धारा 18 के तहत स्वयं का पंजीकरण कराना होगा. परिणामस्वरूप, प्रावधान में असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए ‘कट-ऑफ’ (अंतिम) तारीख 25 मार्च, 1971 तय की गई.

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