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Twitter India CEO को दिए गए नोटिस रद्द करने के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट - petition against order of cancellation of notice

उत्तर प्रदेश सरकार ने ट्विटर अधिकारी को दिए गए नोटिस रद्द करने के आदेश के खिलाफ याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था जिस पर सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 8, 2021, 6:20 PM IST

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश सरकार ने ट्विटर इंडिया के तत्कालीन प्रबंध निदेशक मनीष माहेश्वरी को जारी नोटिस रद्द करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपनी याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया जिस पर सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख नहीं दी है.

बता दें कि नोटिस में एक उपयोगकर्ता द्वारा माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर अपलोड किए गए सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील वीडियो की जांच के तहत उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति का अनुरोध किया गया था.

राज्य सरकार की याचिका सूचीबद्ध करने का जब अनुरोध किया गया तो प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने कहा, हमें इसे देखने दीजिए. हम एक तारीख देंगे.

पीठ ने पूछा, 'मामला क्या है.' इस पर कानून अधिकारी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा ट्विटर के तत्कालीन प्रबंध निदेशक को जारी नोटिस में हस्तक्षेप किया है.

माहेश्वरी को इस साल अगस्त में ट्विटर ने अमेरिका स्थानांतरित कर दिया था. उच्च न्यायालय ने 23 जुलाई को उन्हें भेजा गया नोटिस रद्द कर दिया था.

उच्च न्यायालय ने अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 (ए) के तहत जारी नोटिस को 'दुर्भावनापूर्ण' करार देते हुए कहा कि इसपर सीआरपीसी की धारा 160 के तहत गौर किया जाना चाहिए जिससे गाजियाबाद पुलिस को उनके कार्यालय या बेंगलुरु में उनके आवासीय पते पर ऑनलाइन माध्यम से माहेश्वरी से सवाल पूछने की अनुमति मिली.

सीआरपीसी की धारा 41 (ए) पुलिस को किसी आरोपी को शिकायत दर्ज होने पर उसके सामने पेश होने के लिए नोटिस जारी करने की शक्ति देता है और यदि आरोपी नोटिस का अनुपालन करता है और सहयोग करता है, तो उसे गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं होगी.

पढ़ें :- ट्विटर ने मनीष माहेश्वरी को यूएसए शिफ्ट किया, हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देगी यूपी पुलिस

यह कहते हुए कि सीआरपीसी की धारा 41 (ए) के तहत क़ानून के प्रावधानों को "उत्पीड़न के हथियार" बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, अदालत ने कहा था कि गाजियाबाद पुलिस ने ऐसी कोई सामग्री नहीं रखी जो याचिकाकर्ता की प्रथम दृष्टया संलिप्तता को प्रदर्शित करे जबकि पिछले कई दिनों से सुनवाई चल रही है.

गाजियाबाद पुलिस ने 15 जून को ट्विटर इंक, ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (ट्विटर इंडिया), समाचार वेबसाइट द वायर, पत्रकार मोहम्मद जुबैर और राणा अय्यूब के अलावा कांग्रेस नेताओं- सलमान निजामी, मस्कूर उस्मानी, शमा मोहम्मद और लेखिका सबा नकवी के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

उन पर एक वीडियो को प्रसारित करने का मामला दर्ज किया गया था जिसमें एक बुजुर्ग व्यक्ति अब्दुल शमद सैफी ने पांच जून को आरोप लगाया था कि उन्हें कुछ युवकों ने पीटा था और 'जय श्री राम' का नारा लगाने के लिए कहा था.

पुलिस के मुताबिक, वीडियो को सांप्रदायिक अशांति फैलाने के मकसद से साझा किया गया.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश सरकार ने ट्विटर इंडिया के तत्कालीन प्रबंध निदेशक मनीष माहेश्वरी को जारी नोटिस रद्द करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपनी याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया जिस पर सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख नहीं दी है.

बता दें कि नोटिस में एक उपयोगकर्ता द्वारा माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर अपलोड किए गए सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील वीडियो की जांच के तहत उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति का अनुरोध किया गया था.

राज्य सरकार की याचिका सूचीबद्ध करने का जब अनुरोध किया गया तो प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने कहा, हमें इसे देखने दीजिए. हम एक तारीख देंगे.

पीठ ने पूछा, 'मामला क्या है.' इस पर कानून अधिकारी ने कहा कि उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा ट्विटर के तत्कालीन प्रबंध निदेशक को जारी नोटिस में हस्तक्षेप किया है.

माहेश्वरी को इस साल अगस्त में ट्विटर ने अमेरिका स्थानांतरित कर दिया था. उच्च न्यायालय ने 23 जुलाई को उन्हें भेजा गया नोटिस रद्द कर दिया था.

उच्च न्यायालय ने अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 (ए) के तहत जारी नोटिस को 'दुर्भावनापूर्ण' करार देते हुए कहा कि इसपर सीआरपीसी की धारा 160 के तहत गौर किया जाना चाहिए जिससे गाजियाबाद पुलिस को उनके कार्यालय या बेंगलुरु में उनके आवासीय पते पर ऑनलाइन माध्यम से माहेश्वरी से सवाल पूछने की अनुमति मिली.

सीआरपीसी की धारा 41 (ए) पुलिस को किसी आरोपी को शिकायत दर्ज होने पर उसके सामने पेश होने के लिए नोटिस जारी करने की शक्ति देता है और यदि आरोपी नोटिस का अनुपालन करता है और सहयोग करता है, तो उसे गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं होगी.

पढ़ें :- ट्विटर ने मनीष माहेश्वरी को यूएसए शिफ्ट किया, हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देगी यूपी पुलिस

यह कहते हुए कि सीआरपीसी की धारा 41 (ए) के तहत क़ानून के प्रावधानों को "उत्पीड़न के हथियार" बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, अदालत ने कहा था कि गाजियाबाद पुलिस ने ऐसी कोई सामग्री नहीं रखी जो याचिकाकर्ता की प्रथम दृष्टया संलिप्तता को प्रदर्शित करे जबकि पिछले कई दिनों से सुनवाई चल रही है.

गाजियाबाद पुलिस ने 15 जून को ट्विटर इंक, ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (ट्विटर इंडिया), समाचार वेबसाइट द वायर, पत्रकार मोहम्मद जुबैर और राणा अय्यूब के अलावा कांग्रेस नेताओं- सलमान निजामी, मस्कूर उस्मानी, शमा मोहम्मद और लेखिका सबा नकवी के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

उन पर एक वीडियो को प्रसारित करने का मामला दर्ज किया गया था जिसमें एक बुजुर्ग व्यक्ति अब्दुल शमद सैफी ने पांच जून को आरोप लगाया था कि उन्हें कुछ युवकों ने पीटा था और 'जय श्री राम' का नारा लगाने के लिए कहा था.

पुलिस के मुताबिक, वीडियो को सांप्रदायिक अशांति फैलाने के मकसद से साझा किया गया.

(पीटीआई-भाषा)

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