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Same Sex Marriage : 'आम शादियों की तरह समलैंगिकों की शादी में भी आ सकता है स्थायित्व' - section 377 crime

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकों की शादी में भी स्थायित्व आ सकता है, थोड़ा समय लगेगा, लेकिन समाज इसे स्वीकार करेगा. कोर्ट ने कहा कि उन्हें स्पेशल मैरिज एक्ट के तरह मान्यता दी जा सकती है.

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Published : Apr 20, 2023, 5:30 PM IST

नई दिल्ली : समलैंगिकता मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकता को अपराध की कैटेगरी से पहले ही बाहर निकाला जा चुका है, और अब इसे विवाह की ओर एक स्थिर रूप देने पर भी विचार किया जा सकता है, हालांकि, वह चरण आने में अभी समय है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम अभी मध्यवर्ती चरण में हैं. पिछले 69 सालों में कानून विकसित हुआ है.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि समलैंगिकता को एकबारगी संबंध नहीं कह सकते हैं, यह संबंध भी स्थिर है, यह भी टिकने वाला है, यही वजह है कि हमने इसे क्राइम की सूची से बाहर निकाल दिया. और बाहर निकालने का मतलब है कि हमने कहीं न कहीं उन संबंधों को मान्यता दी है. जज ने कहा कि हम चाहते हैं कि जो भी इस तरह के संबंध हैं, उनमें भी स्थायित्व हो, और वह हैं तो उनकी स्वीकार्यता भी हो.

इस मामले पर सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में लाया गया था, और उस समय इस कानून का उद्देश्य उन लोगों को शामिल करना था, जो व्यक्तिगत कानूनों के इतर अपने संबंधों को स्थायित्व देना चाहते थे. इसलिए अब इस दायरे में समलैंगिक विवाह को भी लाने पर विचार किया जाए, तो इसमें क्या हर्ज है. कोर्ट ने कहा कि समान लिंग वालों के संबंधों पर भी ध्यान देने का वक्त आ गया है. समलैंगिक संबंधों को सही ठहराने वाले याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधि एएम सिंघवी ने कहा कि हमारा कानून ऐसे संबंधों को जगह देने के लिए सक्षम है.

सिंघवी ने माना कि जिस समय स्पेशल मैरिज एक्ट बना था, उस समय संसद में बहस हुई थी और उस समय इस तरह के संबंधों पर विचार भी नहीं किया गया होगा. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि उस समय विचार नहीं किया जा सका, या इसके बारे में नहीं सोचा गया, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. जज ने कहा कि संबंधों का इवोल्यूशन होता है, और समाज को आपको समय देना पड़ता है.

पीठ ने कहा कि हम नीतिगत विकल्प बनाएंगे, लेकिन अंततः कानून तो विधायिका बनाएगी. कोर्ट ने कहा कि हम कुछ ऐसा करने जा रहे हैं, जो कानून में नहीं है, उसके बारे में सोचा भी नहीं गया यानी इस कानून की संपूर्णता पर फिर से विचार कर रहे हैं.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि जिस वक्त हमने धारा 377 को यह मान लिया कि यह अपराध नहीं है, यानि हमने महत्वपूर्ण कदम उठा लिया था, इसका अर्थ यह भी था कि हम उनके संबंधों को कहीं न कहीं स्वीकार कर रहे हैं, इसलिए हमने इसे मध्यवर्ती चरण कहा है और इसका नेक्स्ट स्टेज मैरिज को स्वीकार करना होगा.

ये भी पढ़ें :Same Sex Marriage : समलैंगिक शादियों की स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय से उसकी पूर्ण शक्ति का इस्तेमाल करने का आग्रह

नई दिल्ली : समलैंगिकता मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकता को अपराध की कैटेगरी से पहले ही बाहर निकाला जा चुका है, और अब इसे विवाह की ओर एक स्थिर रूप देने पर भी विचार किया जा सकता है, हालांकि, वह चरण आने में अभी समय है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम अभी मध्यवर्ती चरण में हैं. पिछले 69 सालों में कानून विकसित हुआ है.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि समलैंगिकता को एकबारगी संबंध नहीं कह सकते हैं, यह संबंध भी स्थिर है, यह भी टिकने वाला है, यही वजह है कि हमने इसे क्राइम की सूची से बाहर निकाल दिया. और बाहर निकालने का मतलब है कि हमने कहीं न कहीं उन संबंधों को मान्यता दी है. जज ने कहा कि हम चाहते हैं कि जो भी इस तरह के संबंध हैं, उनमें भी स्थायित्व हो, और वह हैं तो उनकी स्वीकार्यता भी हो.

इस मामले पर सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में लाया गया था, और उस समय इस कानून का उद्देश्य उन लोगों को शामिल करना था, जो व्यक्तिगत कानूनों के इतर अपने संबंधों को स्थायित्व देना चाहते थे. इसलिए अब इस दायरे में समलैंगिक विवाह को भी लाने पर विचार किया जाए, तो इसमें क्या हर्ज है. कोर्ट ने कहा कि समान लिंग वालों के संबंधों पर भी ध्यान देने का वक्त आ गया है. समलैंगिक संबंधों को सही ठहराने वाले याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधि एएम सिंघवी ने कहा कि हमारा कानून ऐसे संबंधों को जगह देने के लिए सक्षम है.

सिंघवी ने माना कि जिस समय स्पेशल मैरिज एक्ट बना था, उस समय संसद में बहस हुई थी और उस समय इस तरह के संबंधों पर विचार भी नहीं किया गया होगा. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि उस समय विचार नहीं किया जा सका, या इसके बारे में नहीं सोचा गया, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. जज ने कहा कि संबंधों का इवोल्यूशन होता है, और समाज को आपको समय देना पड़ता है.

पीठ ने कहा कि हम नीतिगत विकल्प बनाएंगे, लेकिन अंततः कानून तो विधायिका बनाएगी. कोर्ट ने कहा कि हम कुछ ऐसा करने जा रहे हैं, जो कानून में नहीं है, उसके बारे में सोचा भी नहीं गया यानी इस कानून की संपूर्णता पर फिर से विचार कर रहे हैं.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि जिस वक्त हमने धारा 377 को यह मान लिया कि यह अपराध नहीं है, यानि हमने महत्वपूर्ण कदम उठा लिया था, इसका अर्थ यह भी था कि हम उनके संबंधों को कहीं न कहीं स्वीकार कर रहे हैं, इसलिए हमने इसे मध्यवर्ती चरण कहा है और इसका नेक्स्ट स्टेज मैरिज को स्वीकार करना होगा.

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