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पीएम मोदी ने किया था सलमा डैम का उद्घाटन, उस पर भी तालिबान ने जमाया कब्जा

तालिबान का दावा है कि उसने सलमा डैम पर भी कब्जा कर लिया है. दरअसल यह वही डैम है जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया था. 2016 में भारत-अफगानिस्तान की दोस्ती का प्रतीक बने सलमा डैम का उद्घाटन पीएम मोदी व अफगान राष्ट्रपति गनी ने मिलकर किया था.

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Published : Aug 13, 2021, 9:36 PM IST

हैदराबाद : अफगानिस्तान में तालिबान तेजी से शहरों व सरकारी प्रतिष्ठानों पर कब्जा जमाता जा रहा है. शुक्रवार को तालिबान ने दावा किया कि उसने सलमा डैम पर भी कब्जा कर लिया है जो कई मायनों में चौंकाने वाला है. दरअसल, सलमा डैम भारत व अफगानिस्तान की दोस्ती का प्रतीक भी माना जाता है.

वर्तमान में अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्से तालिबान के कब्जे में हैं और अब राजधानी काबुल से सिर्फ कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हैं. इस बीच तालिबान ने नया दावा किया है कि उसने सलमा डैम पर भी कब्जा जमा लिया है. अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में आने वाले सलमा डैम को भारत-अफगान फ्रेंडशिप डैम के रूप में जाना जाता है. तालिबान के प्रवक्ता ने इस डैम पर कब्जा करने का दावा करके दुनिया को हैरत में डाल दिया है.

तालिबान का कब्जा
तालिबान का कब्जा

वहीं अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय प्रवक्ता फवाद अमन ने बताया था कि तालिबान के आतंकियों ने सलमा डैम पर हमला करने का प्रयास किया. उन्होंने ट्वीट किया कि तालिबान का सलमा डैम पर किया गया हमला विफल रहा है. बीती रात तालिबान ने हेरात प्रांत में हमला करके सलमा डैम को धवस्त करने की कोशिश की, लेकिन काउंटर अटैक में बड़ी संख्या में तालिबानियों को नुकसान पहुंचा है.

ब्रिटेन के गढ़ पर भी तालिबानी कब्जा

अफगानिस्तान के जिस दक्षिणी सूबे हेलमंद को गत 20 साल में अधिकतर समय तालिबान से बचाने की ब्रिटिश सेना कोशिश करती रही, उसपर तालिबान ने कब्जा कर लिया है. हेलमंद की राजधानी लश्कर गाह पर तालिबान के कब्जे की शुक्रवार को हुई पुष्टि की गूंज ब्रिटेन में सुनाई दी क्योंकि अमेरिका और नाटो गठबंधन के साथ अफगानिस्तान में लड़ते हुए जिन 457 ब्रिटिश सैनिकों की मौत हुई थी उनमें अधिकतर की जान हेलमंद प्रांत में ही गई थी. वर्ष 2006 से 2014 तक हेलमंद का कैम्प बैस्टन कॉम्प्लेक्स ब्रिटिश सैन्य अभियान का मुख्यालय रहा.

तालिबान का अफगानिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर कब्जा हो गया है और सवाल उठ रहे हैं कि क्यों नहीं ब्रिटिश सैनिक हेलमंद में अमेरिकी सैनिकों की 11 सितंबर तक वापसी की योजना तक वहां रहे. गौरतलब है कि गठबंधन बलों के पुनर्गठन के तहत ब्रिटेन ने वर्ष 2006 में अपने सैनिकों को हेलमंद भेजा था. शुरुआत में उनका कार्य स्थिरता और पुनर्निर्माण परियोजनाओं को सुरक्षा प्रदान करना था लेकिन जल्द ही ब्रिटिश सैनिक भी सैन्य अभियान में शामिल हो गए. हेलमंद का कैम्प बैस्टन ब्रिटिश ऑपरेशन हैरिक का मुख्यालय बना जहां पर करीब 9,500 ब्रिटिश सैनिक तैनात थे.

तालिबान का कब्जा
तालिबान का कब्जा

क्या बाइडेन ने की गलती

ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार में रक्षा मंत्री रहे और अफगानिस्तान में बतौर अपनी सेवा दे चुके जॉनी मर्सर ने कहा कि बाइडेन ने बड़ी गलती की है लेकिन ब्रिटेन को उनका अनुकरण नहीं करना चाहिए था. अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल में नाटो के अन्य देशों के साथ सहयोग जुटाना चाहिए था. मर्सर ने बीबीसी से कहा कि यह विचार कि हम एकतरफा तरीके से कदम नहीं उठा सकते थे और अफगान सुरक्षा बलों का समर्थन नहीं कर सकते थे, सही नहीं है. अफगानिस्तान की सुरक्षा को समर्थन करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी और इसकी वजह से कई लोगों की जान जाएगी. यह बहुत अपमानजनक है.

ब्रिटिश रक्षामंत्री ने जताई चिंता

ब्रिटेन के रक्षामंत्री बेल वालेस ने भी अफगानिस्तान की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है लेकिन कहा कि सरकार के पास अमेरिका का अनुकरण करने के अलावा कोई चारा नहीं था. वालेस ने दावा किया कि अफगानिस्तान में मौजूद चार हजार ब्रिटिश नागरिकों को लाने में मदद के लिए करीब छह हजार सैनिकों को भेजने का फैसला अफरा-तफरी में तत्काल नहीं लिया गया बल्कि इसकी योजना महीनों पहले बनाई गई थी.

इससे पहले अमेरिका ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह अफगानिस्तान की मदद करने और काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास से कुछ कर्मचारियों को निकालने के लिए तीन हजार अतिरिक्त सैनिकों को भेज रहा है. येल विश्वविद्यालय में वरिष्ठ शोधकर्ता ब्रिटिश सरकार के पूर्व अंतरराष्ट्रीय विकास मंत्री व लेखक रोरी स्टीवर्ट ने अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के फैसले की आलोचना की थी और इसे गैर जरूरी खतरनाक फैसला बताया था. उन्होंने कहा कि इससे लाखों अफगान शरणार्थी बन जाएंगे. उन्होंने कहा कि हमने रातोंरात एक और सीरिया बना दिया.

पूरे दक्षिणी हिस्से में तालिबान का नियंत्रण

अफगानिस्तान में दो दशक से जारी जंग से अमेरिकी और नाटो बलों की औपचारिक रूप से वापसी के महज कुछ सप्ताह पहले तालिबान ने शुक्रवार को चार और प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा करते हुए देश के समूचे दक्षिणी भाग पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया और धीरे-धीरे काबुल की तरफ बढ़ रहा है. तालिबान ने हेलमंद प्रांत की राजधानी लश्करगाह पर कब्जा कर लिया है. अफीम के बड़े केंद्र हेलमंद की प्रांतीय राजधानी लश्करगाह अफगानिस्तान सरकार के हाथों से फिसल गई है.

तालिबान का कब्जा
तालिबान का कब्जा

लगभग दो दशक के युद्ध के दौरान यहां सैकड़ों की संख्या में विदेशी सैनिक वहां मारे गए थे. तालिबान लड़ाकों ने 34 प्रांतों में से हाल के दिनों में एक दर्जन से अधिक प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया है. ऐसे में जब अमेरिका कुछ सप्ताह बाद अपने आखिरी सैनिकों को वापस बुलाने वाला है तालिबान ने देश के दो-तिहाई से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है.

कब तक बच पाएगा काबुल

हालांकि काबुल अभी सीधे तौर पर खतरे में नहीं है लेकिन अन्य जगहों पर नुकसान और लड़ाइयों ने तालिबान की पकड़ को और मजबूत कर दिया है. नवीनतम अमेरिकी सैन्य खुफिया आकलन से पता चलता है कि काबुल 30 दिनों के भीतर विद्रोहियों के दबाव में आ सकता है और अगर मौजूदा रुख जारी रहा तो तालिबान कुछ महीनों के भीतर देश पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर सकता है. यदि तालिबान यही गति बनाए रखता है तो अफगान सरकार को आने वाले दिनों में पीछे हटने और राजधानी और केवल कुछ अन्य शहरों की रक्षा के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

चरमपंथी समूह ने दक्षिण में हेलमंद के अलावा उरुजगान और जाबुल प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा कर लिया है. हेलमंद में प्रांतीय परिषद के प्रमुख अताउल्लाह अफगान का कहना है कि तालिबान ने भारी लड़ाई के बाद प्रांतीय राजधानी लश्करगाह पर कब्जा कर लिया और सरकारी प्रतिष्ठानों पर अपना सफेद झंडा फहरा दिया है. उन्होंने कहा कि लश्करगाह के बाहर स्थित राष्ट्रीय सेना के तीन ठिकाने सरकार के नियंत्रण में हैं.

यह भी पढ़ें-अफगान संकट : हिंसा रोकने, शांति प्रक्रिया में तेजी लाने के आह्वान के साथ दोहा वार्ता समाप्त

जाबुल प्रांत में प्रांतीय परिषद के प्रमुख अत्ता जान हकबायन ने कहा कि राजधानी कलात तालिबान के नियंत्रण में चली गई है और अधिकारी पास के एक सैन्य शिविर में हैं और वे वहां से निकलने की तैयारी कर रहे हैं. अफगानिस्तान के दक्षिणी उरुजगन प्रांत के दो जनप्रतिनिधियों ने कहा कि स्थानीय अधिकारियों ने प्रांतीय राजधानी तिरिन कोट को तेजी से आगे बढ़ रहे तालिबान के हवाले कर दिया है. बिस्मिल्लाह जान मोहम्मद और कुदरतुल्ला रहीमी ने शुक्रवार को इसकी पुष्टि की. पश्चिमी हिस्से में गोर प्रांत में प्रांतीय परिषद के प्रमुख फजल हक एहसन ने कहा कि तालिबान ने प्रांतीय राजधानी फिरोज कोह पर भी कब्जा कर लिया है.

(एक्स्ट्रा इनपुट-भाषा)

हैदराबाद : अफगानिस्तान में तालिबान तेजी से शहरों व सरकारी प्रतिष्ठानों पर कब्जा जमाता जा रहा है. शुक्रवार को तालिबान ने दावा किया कि उसने सलमा डैम पर भी कब्जा कर लिया है जो कई मायनों में चौंकाने वाला है. दरअसल, सलमा डैम भारत व अफगानिस्तान की दोस्ती का प्रतीक भी माना जाता है.

वर्तमान में अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्से तालिबान के कब्जे में हैं और अब राजधानी काबुल से सिर्फ कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हैं. इस बीच तालिबान ने नया दावा किया है कि उसने सलमा डैम पर भी कब्जा जमा लिया है. अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में आने वाले सलमा डैम को भारत-अफगान फ्रेंडशिप डैम के रूप में जाना जाता है. तालिबान के प्रवक्ता ने इस डैम पर कब्जा करने का दावा करके दुनिया को हैरत में डाल दिया है.

तालिबान का कब्जा
तालिबान का कब्जा

वहीं अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय प्रवक्ता फवाद अमन ने बताया था कि तालिबान के आतंकियों ने सलमा डैम पर हमला करने का प्रयास किया. उन्होंने ट्वीट किया कि तालिबान का सलमा डैम पर किया गया हमला विफल रहा है. बीती रात तालिबान ने हेरात प्रांत में हमला करके सलमा डैम को धवस्त करने की कोशिश की, लेकिन काउंटर अटैक में बड़ी संख्या में तालिबानियों को नुकसान पहुंचा है.

ब्रिटेन के गढ़ पर भी तालिबानी कब्जा

अफगानिस्तान के जिस दक्षिणी सूबे हेलमंद को गत 20 साल में अधिकतर समय तालिबान से बचाने की ब्रिटिश सेना कोशिश करती रही, उसपर तालिबान ने कब्जा कर लिया है. हेलमंद की राजधानी लश्कर गाह पर तालिबान के कब्जे की शुक्रवार को हुई पुष्टि की गूंज ब्रिटेन में सुनाई दी क्योंकि अमेरिका और नाटो गठबंधन के साथ अफगानिस्तान में लड़ते हुए जिन 457 ब्रिटिश सैनिकों की मौत हुई थी उनमें अधिकतर की जान हेलमंद प्रांत में ही गई थी. वर्ष 2006 से 2014 तक हेलमंद का कैम्प बैस्टन कॉम्प्लेक्स ब्रिटिश सैन्य अभियान का मुख्यालय रहा.

तालिबान का अफगानिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर कब्जा हो गया है और सवाल उठ रहे हैं कि क्यों नहीं ब्रिटिश सैनिक हेलमंद में अमेरिकी सैनिकों की 11 सितंबर तक वापसी की योजना तक वहां रहे. गौरतलब है कि गठबंधन बलों के पुनर्गठन के तहत ब्रिटेन ने वर्ष 2006 में अपने सैनिकों को हेलमंद भेजा था. शुरुआत में उनका कार्य स्थिरता और पुनर्निर्माण परियोजनाओं को सुरक्षा प्रदान करना था लेकिन जल्द ही ब्रिटिश सैनिक भी सैन्य अभियान में शामिल हो गए. हेलमंद का कैम्प बैस्टन ब्रिटिश ऑपरेशन हैरिक का मुख्यालय बना जहां पर करीब 9,500 ब्रिटिश सैनिक तैनात थे.

तालिबान का कब्जा
तालिबान का कब्जा

क्या बाइडेन ने की गलती

ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की पूर्ववर्ती सरकार में रक्षा मंत्री रहे और अफगानिस्तान में बतौर अपनी सेवा दे चुके जॉनी मर्सर ने कहा कि बाइडेन ने बड़ी गलती की है लेकिन ब्रिटेन को उनका अनुकरण नहीं करना चाहिए था. अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल में नाटो के अन्य देशों के साथ सहयोग जुटाना चाहिए था. मर्सर ने बीबीसी से कहा कि यह विचार कि हम एकतरफा तरीके से कदम नहीं उठा सकते थे और अफगान सुरक्षा बलों का समर्थन नहीं कर सकते थे, सही नहीं है. अफगानिस्तान की सुरक्षा को समर्थन करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी और इसकी वजह से कई लोगों की जान जाएगी. यह बहुत अपमानजनक है.

ब्रिटिश रक्षामंत्री ने जताई चिंता

ब्रिटेन के रक्षामंत्री बेल वालेस ने भी अफगानिस्तान की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है लेकिन कहा कि सरकार के पास अमेरिका का अनुकरण करने के अलावा कोई चारा नहीं था. वालेस ने दावा किया कि अफगानिस्तान में मौजूद चार हजार ब्रिटिश नागरिकों को लाने में मदद के लिए करीब छह हजार सैनिकों को भेजने का फैसला अफरा-तफरी में तत्काल नहीं लिया गया बल्कि इसकी योजना महीनों पहले बनाई गई थी.

इससे पहले अमेरिका ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह अफगानिस्तान की मदद करने और काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास से कुछ कर्मचारियों को निकालने के लिए तीन हजार अतिरिक्त सैनिकों को भेज रहा है. येल विश्वविद्यालय में वरिष्ठ शोधकर्ता ब्रिटिश सरकार के पूर्व अंतरराष्ट्रीय विकास मंत्री व लेखक रोरी स्टीवर्ट ने अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के फैसले की आलोचना की थी और इसे गैर जरूरी खतरनाक फैसला बताया था. उन्होंने कहा कि इससे लाखों अफगान शरणार्थी बन जाएंगे. उन्होंने कहा कि हमने रातोंरात एक और सीरिया बना दिया.

पूरे दक्षिणी हिस्से में तालिबान का नियंत्रण

अफगानिस्तान में दो दशक से जारी जंग से अमेरिकी और नाटो बलों की औपचारिक रूप से वापसी के महज कुछ सप्ताह पहले तालिबान ने शुक्रवार को चार और प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा करते हुए देश के समूचे दक्षिणी भाग पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया और धीरे-धीरे काबुल की तरफ बढ़ रहा है. तालिबान ने हेलमंद प्रांत की राजधानी लश्करगाह पर कब्जा कर लिया है. अफीम के बड़े केंद्र हेलमंद की प्रांतीय राजधानी लश्करगाह अफगानिस्तान सरकार के हाथों से फिसल गई है.

तालिबान का कब्जा
तालिबान का कब्जा

लगभग दो दशक के युद्ध के दौरान यहां सैकड़ों की संख्या में विदेशी सैनिक वहां मारे गए थे. तालिबान लड़ाकों ने 34 प्रांतों में से हाल के दिनों में एक दर्जन से अधिक प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा कर लिया है. ऐसे में जब अमेरिका कुछ सप्ताह बाद अपने आखिरी सैनिकों को वापस बुलाने वाला है तालिबान ने देश के दो-तिहाई से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है.

कब तक बच पाएगा काबुल

हालांकि काबुल अभी सीधे तौर पर खतरे में नहीं है लेकिन अन्य जगहों पर नुकसान और लड़ाइयों ने तालिबान की पकड़ को और मजबूत कर दिया है. नवीनतम अमेरिकी सैन्य खुफिया आकलन से पता चलता है कि काबुल 30 दिनों के भीतर विद्रोहियों के दबाव में आ सकता है और अगर मौजूदा रुख जारी रहा तो तालिबान कुछ महीनों के भीतर देश पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर सकता है. यदि तालिबान यही गति बनाए रखता है तो अफगान सरकार को आने वाले दिनों में पीछे हटने और राजधानी और केवल कुछ अन्य शहरों की रक्षा के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.

चरमपंथी समूह ने दक्षिण में हेलमंद के अलावा उरुजगान और जाबुल प्रांतों की राजधानियों पर कब्जा कर लिया है. हेलमंद में प्रांतीय परिषद के प्रमुख अताउल्लाह अफगान का कहना है कि तालिबान ने भारी लड़ाई के बाद प्रांतीय राजधानी लश्करगाह पर कब्जा कर लिया और सरकारी प्रतिष्ठानों पर अपना सफेद झंडा फहरा दिया है. उन्होंने कहा कि लश्करगाह के बाहर स्थित राष्ट्रीय सेना के तीन ठिकाने सरकार के नियंत्रण में हैं.

यह भी पढ़ें-अफगान संकट : हिंसा रोकने, शांति प्रक्रिया में तेजी लाने के आह्वान के साथ दोहा वार्ता समाप्त

जाबुल प्रांत में प्रांतीय परिषद के प्रमुख अत्ता जान हकबायन ने कहा कि राजधानी कलात तालिबान के नियंत्रण में चली गई है और अधिकारी पास के एक सैन्य शिविर में हैं और वे वहां से निकलने की तैयारी कर रहे हैं. अफगानिस्तान के दक्षिणी उरुजगन प्रांत के दो जनप्रतिनिधियों ने कहा कि स्थानीय अधिकारियों ने प्रांतीय राजधानी तिरिन कोट को तेजी से आगे बढ़ रहे तालिबान के हवाले कर दिया है. बिस्मिल्लाह जान मोहम्मद और कुदरतुल्ला रहीमी ने शुक्रवार को इसकी पुष्टि की. पश्चिमी हिस्से में गोर प्रांत में प्रांतीय परिषद के प्रमुख फजल हक एहसन ने कहा कि तालिबान ने प्रांतीय राजधानी फिरोज कोह पर भी कब्जा कर लिया है.

(एक्स्ट्रा इनपुट-भाषा)

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