मुंबई : महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बालासाहेब थोराट की जगह नाना पटोले को नियुक्त करने और महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष पद से पटोले के इस्तीफे को लेकर लगता है कि प्रदेश सरकार में उसकी सहयोगी शिवसेना खुश नहीं है. शनिवार को पार्टी के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में उसने इसके संकेत भी दिए.
सामना के संपादकीय में शिवसेना ने यह भी कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के उस कथित रुख में भी दम है कि तीनों गठबंधन सहयोगी विधानसभा अध्यक्ष के पद को लेकर अब विचार-विमर्श के बाद फैसला लेंगे.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए पटोले ने इस हफ्ते की शुरुआत में विधानसभा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था, जबकि राज्य में एक मार्च से विधानसभा का बजट सत्र शुरू होना है. राज्य में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार है.
सामना के संपादकीय में कहा गया है कि कांग्रेस को पांच साल के लिए विधानसभा अध्यक्ष का पद दिया गया था, न कि बीच में ही इस पद पर चुनाव कराने के लिए, जिससे बचा जाना चाहिए था.
शिवसेना ने कहा, एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि तीनों दल साथ बैठेंगे और फैसला करेंगे कि विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए क्या करना है. एक बात निश्चित है कि पवार के नजरिए में दम है.
इसमें कहा गया कि यद्यपि संगठनात्मक बदलाव कांग्रेस का अंदरूनी मामला है, फिर भी इस बात को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है कि फैसलों का सरकार पर असर न हो.
शिवसेना ने कहा, दो साल पहले, स्थिति ऐसी थी कि कोई भी नेता प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान लेने को तैयार नहीं था. थोराट ने यह जिम्मेदारी ली और विधानसभा चुनावों में पार्टी को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं.
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सामना में कहा गया, संकट के समय थोराट ने जिम्मेदारी ली. नागपुर में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं. अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने कुछ रैलियों को संबोधित किया होता तो विदर्भ में कांग्रेस की सीटों की संख्या बढ़ सकती थी.
शिवसेना ने कहा कि पटोले के चयन से लगता है कि कांग्रेस ज्यादा आक्रामक चेहरे के पक्ष में है, लेकिन अत्यधिक आक्रामकता भी अच्छी नहीं.
संपादकीय में किसानों व मजदूरों के लिए काम करने वाले सरल और आक्रामक नेता के तौर पर पटोले की तारीफ की गई है, लेकिन सुझाव भी दिया कि तीन दलों वाली सरकार के सुचारू कामकाज के लिए संयम अहम है.