पटना : देश में बीजेपी (BJP) की मुखालफत के लिए एक बार फिर विपक्ष गोलबंद हो, इसकी रणनीति बनाने में लालू यादव ( Lalu Yadav ) जुट गए हैं. जाति जनगणना ( Caste Census ) के मुद्दे पर जिस तरीके से लालू ने रफ्तार पकड़ी है और लगातार राजनीतिक मुलाकात कर रहे हैं, उससे विपक्ष अपनी एकजुटता की राजनीति की धार को दिशा भी देना चाह रही है और मुद्दे के साथ लड़ाई भी.
इसके पीछे की मूल वजह में भले ही 2022 में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव ना हो, लेकिन इन राज्यों में होने वाला चुनाव राजनीति की इसी विसात के आस-पास हो. लालू जिन लोगों से मिल रहे हैं उनकी सियासी दिशा होनी चाहिए. हालांकि लालू के राजनीति वाली बात से कोई गुरेज भी नहीं कर रहा है और इसके बाद एक चर्चा शुरू हो गई है कि जिस जेपी आंदोलन से ऐसे नेताओं को जीवन मिला था और मंडल कमीशन को रफ्तार दी थी, उसमें एक बार लालू निखिल मंडल कमीशन ( Mandal Commission ) की चर्चा करके देश की राजनीति में एक नई बहस खड़ी कर दी है.
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तबीयत ठीक हुई तो राजनीति में विपक्ष की बिगड़ी नब्ज को ठीक करने के लिए लालू यादव सड़क पर उतर गए हैं. लालू यादव, मुलायम सिंह यादव से मिले, शरद यादव से मिले और सभी लोगों को देश में चल रहे राजनीतिक हालात पर एकजुट होने की बात कही. इसी बीच लालू यादव ने यह भी कह दिया कि बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल के कमीशन में जिन बिंदुओं को रखा गया था देश में सभी लागू होने चाहिए.
लालू यादव के इस बयान के बाद एक बार फिर देश की राजनीति में चर्चा शुरू हो गई है कि विकास बनाम जाति की जो सियासत देश में है उसमें विपक्षी दल विकास के मुद्दे पर बीजेपी से बिछड़ते जा रहे हैं या विकास के मुद्दे पर बीजेपी को खेल नहीं पा रहे हैं. शायद यही वजह है कि जातीय मुद्दे पर इन दोनों की ज्यादा मजबूती दिख रही है. जिसके कारण गोलबंदी एक बार फिर से राजनीतिक विरोध का शक्ल ले रही है.
लालू यादव सियासत की हर नब्ज को समझते हैं. शरद यादव को राज्यसभा में होना चाहिए, यह कहकर लालू यादव ने संकेत दे दिया कि शरद यादव की डूब रही राजनीतिक करियर को सहारे की जरूरत है और इसमें दो राय नहीं कि आने वाले समय में बिहार से कहीं राजद शरद यादव को राज्यसभा न भेज दे.
इसके पीछे की भी राजनीति बड़ी साफ है. शरद यादव ने बिहार में चलने वाली एनडीए और नीतीश को स्थापित करने में एक पिलर की भूमिका निभाई थी. अगर शरद लालू के खेमे में जाते हैं, तो नीतीश पर लालू की एक जीत भी कही जा सकती है. दूसरा पक्ष यह भी है कि जिस फोरम को लालू खड़ा करना चाह रहे हैं, इनमें वही लोग हैं जिन लोगों को उस जेपी आंदोलन से राजनीतिक जीवन मिला था.
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मंडल कमीशन के बाद अपनी दूसरी पीढ़ी को भी उसी जातीय मंत्र के भरोसे सत्ता की कुंजी दिलाना चाहते हैं. यह लालू की एक सोच हो सकती है, लेकिन यह यहीं तक है, यह कहा नहीं जा सकता. क्योंकि बीजेपी ने जाति जनगणना का जो राग छेड़ा है, विपक्ष ने देश के कई मुद्दे को छोड़कर सिर्फ जाति-जाति करना शुरू कर दिया है.
लालू यादव दिल्ली में शरद से मिले, मुलायम सिंह यादव से मिले लेकिन, सोनिया गांधी से मिलने का कोई समय नहीं मांगा. मकसद यह भी हो सकता है कि मंडल कमीशन और जेपी आंदोलन से जिन लोगों को जलाना चाहते हैं, उसमें कांग्रेस विरोध सबसे ऊपर था. मंडल कमीशन 1989 में ऐसे राजनीतिक दलों के लिए अभयदान था जो क्षेत्रीय दल के रूप में सत्ता में आए.
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बीजेपी ने 1989 में राम रथ पर सवार होकर देश की गद्दी को हथियाया. ऐसे में मंडल कमीशन की बात और जेपी आंदोलन की धुरी बीजेपी की वोट बैंक को प्रभावित कर पाएगी, यह फौरी तौर पर नहीं कहा जा सकता. लेकिन कांग्रेस के विरोध में इन दलों के साथ जो वोट बैंक जुड़ा था और विकास के मुद्दे पर भटका है, वह गोलबंद हो सकता है. यह नेपत्थ की सियासत में माना जा सकता है.
लालू ने मंडल कमीशन की सभी मांगों को लागू करने के लिए जिस राजनैतिक गोटी को खेला है, वह सवाल तो जरूर खड़ा करेगा कि जाति आधारित राजनीति और जाति की राजनीति, जो देश में गोलबंद है उसका फायदा लालू के मिलने वाले लोगों के दल को हो जाए, लेकिन इससे जिस दल को बनाने की बात लालू कर रहे हैं अगर वह गोल बंद होता है तो केंद्र की सियासत में बीजेपी और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर वैसे चेहरे जरूर सामने आ सकते हैं जो कभी लालू के मजबूत होने मुलायम की आधार के बदौलत बीपी, चंद्रशेखर, आईके गुजराल और देवेगौड़ा जैसे देश के नेतृत्व के आधार को खड़ा करने की दिशा दे सके.
मुलायम के लिए अखिलेश, लालू के लिए तेजस्वी और दूसरे राजनीतिक दलों के लिए वह लोग इसमें शामिल हो सकते हैं, जिनके बाद राज्य की सियासत को उनकी दूसरी पीढ़ी ने पकड़ लिया है. लेकिन दिल्ली की गद्दी तक जाने के लिए मजबूत मुद्दे की तलाश है. लालू की सक्रियता शायद इस बात को बता भी सकती है कि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से इसका आगाज किया जाए.
23 का इंतजार और 24 में नए फतह की तैयारी है. अब इस राजनीतिक राष्ट्रीय स्तर पर क्या असर होता है और इसके विरोध में कौन सी सियासत सामने आती है, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन एक जाति समीकरण का लालू ने आगाज कर दिया है, जो राजनीति में चर्चा का विषय है.